
आध्यात्मिक पंचतन्त्र
आध्यात्मिक पंचतन्त्र मिस्त्रीकी डली एक चींटी नमकके पर्वतपर रहती थी, दूसरी चींटी मिस्रीके पर्वतपर। एक दिन नमकवाली चींटी, मिस्रीवाली चींटीसे

आध्यात्मिक पंचतन्त्र मिस्त्रीकी डली एक चींटी नमकके पर्वतपर रहती थी, दूसरी चींटी मिस्रीके पर्वतपर। एक दिन नमकवाली चींटी, मिस्रीवाली चींटीसे

बेटेकी सीख यह उन दिनोंकी बात है, जब न्यायाधीशके रूपमें श्रीमहादेव गोविन्द रानाडेकी ख्याति बढ़ती जा रही थी। कानूनी कार्यवाहीसे

स्वर्गीय काश्मीरनरेश महाराज प्रतापसिंहजी बड़े ही कट्टर आस्तिक, धर्मपरायण तथा गो-ब्राह्मणोंके अनन्य भक्त थे। ब्राह्मणोंको देखते ही खड़े हो जाते

महाराज छत्रसाल स्वयं नगरमें घूमते थे और प्रजाजनोंसे उनका कष्ट पूछते थे। ‘जिस राजाके राज्यमें प्रजाके लोग दुःख पाते हैं,

पुण्डरीक नाम के एक बड़े भगवद्भक गृहस्थ ब्राह्मण थे। साथ ही वे बड़े धर्मात्मा, सदाचारी, तपस्वी तथा कर्मकाण्डनिपुण थे वे

एक राजा एक बार यज्ञ करने जा रहे थे। यज्ञमें बलि देनेके लिये एक बकरा उन्होंने मँगवाया। बकरा पकड़कर लाया

एक बार व्यासजीके मनमें ब्याहकी अभिलाषा हुई। उन्होंने जाबालि मुनिसे कन्या माँगी। जाबालिने अपनी चेटिका नामकी कन्या उन्हें दे दी।

बादशाह अकबर बहुत उत्सुक था अपने सङ्गीताचार्य तानसेनके गुरु स्वामी श्रीहरिदासजीका सङ्गीत सुननेके लिये । परंतु वे परम वीतराग व्रजभूमि

एक मुंशीजी थे। वे थे तो बड़े अच्छे ओहदेपर, पर थे पुराने पियक्कड़ शराबसे जो हानि होती है वह तो

पराधीनतामें सुख कहाँ? एक मोटे-ताजे पालतू कुत्तेके साथ एक भूखे दुबले-पतले बाघकी भेंट हुई। प्रथम परिचय हो जानेके -‘भाई, एक