
शिव-पार्वतीकी कृपा
एक अयाची वृत्तिके महात्मा काशी गये। सुबहसे शाम हो गयी, पर न तो उन्होंने किसीसे कुछ माँगा और न कुछ

एक अयाची वृत्तिके महात्मा काशी गये। सुबहसे शाम हो गयी, पर न तो उन्होंने किसीसे कुछ माँगा और न कुछ

महाराज काशीनरेशकी एक कन्या थी, जो परम विदुषी और धार्मिक भावनासे युक्त होकर दिन-रात धर्मकी चर्चा किया करती थी। उसे

परमात्माकी मृत्यु इंग्लैण्ड में एक धर्मपरायण अंग्रेज दम्पती रहते थे। किसी व्यवसायमें घाटा पड़ जानेसे पति महोदय बड़े चिन्तित रहने

एक सेठजीने अन्नसत्र खोल रखा था। दानकी भावना तो कम थी, मुख्य भावना तो थी कि समाज उन्हें दानवीर समझे,

पापका परिणाम – दारुण रोग बात पुरानी है, परंतु है सच्ची। पुराने पंजाबके मुजफ्फरगढ़ जिलेमें जंगलके समीप एक छोटा-सा ग्राम

आयु कुल चार वर्ष ईरानके बादशाह नौशेरवाँका, जो भी मिले उसीसे कुछ-न-कुछ सीखनेका स्वभाव हो गया था। अपने इस गुणके

नीमसे मधु नहीं टपकता सुमन्त्र महाराज दशरथके प्रधान सचिव, सखा और सारथि थे। श्रीरामके प्रति इनका सहज स्नेह और वात्सल्य

एक वृद्ध महाशय अपने बचपनके साथी श्यामजीके पुत्र रामजीके यहाँ आये। उन्होंने कहा-‘बच्चे रामजी ! दुःख है कि श्यामजीको गुजरे

एक बड़ा दानी राजा था, उसका नाम था जानश्रुति । उसने इस आशयसे कि लोग सब जगह मेरा ही अन्न

वेरूलके निकट देवगाँवके आऊदेवकी कन्या बहिणाबाई और उसके पति गङ्गाधरराव पाठक पट्टीदारी के झगड़ेसे ऊबकर घर त्याग कोल्हापुरमें आकर बस