
अशर्फियोंसे घृणा
एक दिन एक सिंधी सज्जन किसी कामनासे संत मथुरादासजीको खोजता हुआ उनके पास आया और अशर्फियोंकी थैली सामने रखकर अपनी

एक दिन एक सिंधी सज्जन किसी कामनासे संत मथुरादासजीको खोजता हुआ उनके पास आया और अशर्फियोंकी थैली सामने रखकर अपनी

समर्थ होकर भी चिकित्सा न करनेवाला निन्दाका पात्र होता है अभिमन्युके पुत्र राजा परीक्षित् धर्मके अनुसार इस पृथ्वीका पालन करते

क्या हुआ जो स्थूलभद्र पहिले अत्यन्त विलासी थे और उन्होंने बारह वर्ष नर्तकी कोशाके यहाँ व्यतीत किये थे। जब उनके

‘सहनशीलता किसे कहते हैं?’ किसीने हुसेन मंसूरसे प्रश्न किया। उन्होंने उत्तर दिया- ‘हाथ-पैर काटकर शरीरको शूलीपर लटका दिया जाय, फिर

एक बार देवर्षिके मनमें यह जाननेकी इच्छा हुई कि जगत्में सबसे महान् कौन है। उन्होंने सोचा कि चलूँ भगवान् के

मालिककी कृपाको दूसरे सेवकगण सहन नहीं कर पाते दक्षिणमें महिलारोप्य नामकी नगरी थी। वहाँ वर्धमान नामका धनिक रहता था। पूर्णरूपसे

चन्दनका कोयला बनाते हम एक राजा वन-भ्रमणको गया। रास्ता भटककर, भूख-प्याससे व्याकुल हुआ वह एक लकड़हारे के झोंपड़ेपर पहुँचा। लकड़हारेने

महापुरुषोंके प्रति किये गये अपराधका दुष्परिणाम आंगिरस गोत्रमें उत्पन्न एक सद्गुणसम्पन्न सदाचारी विद्वान् ब्राह्मण थे। उन्होंके यहाँ जड़भरतका जन्म हुआ

प्रसिद्ध बादशाह हारून- अल रशीदके एक लड़केने एक दिन आकर अपने पितासे कहा कि ‘अमुक सेनापतिके लड़केने मुझको माँकी गाली

भगवान्पर निर्भरता श्रीगंगाजीके पार जानेके लिये नावमें कुछ स्त्री बैठे हुए • थे। जब नाव गंगाजीके बीचमें पहुँची तो पुरुष