
पहले कर्तव्य पीछे पुत्रका विवाह
‘माताजी! इतनी गम्भीरतासे क्या देख रही हैं ?’ ‘कुछ नहीं शिवा! यही कि आस-पास सभी किलोंपर तेरी विजय- वैजयन्ती फहरा

‘माताजी! इतनी गम्भीरतासे क्या देख रही हैं ?’ ‘कुछ नहीं शिवा! यही कि आस-पास सभी किलोंपर तेरी विजय- वैजयन्ती फहरा

मौन ही व्याख्यान है एक लड़कीका पति आया है। वह अपने बराबरीके युवकोंके साथ बाहरवाले कमरेमें बैठा है। इधर वह

संत इगनाशियस लायलाके जीवनकी एक घटना है। उनकी कृपासे एक भयानक व्यभिचारी पुण्यात्मा हो गया। रातका समय था। बड़े जोरका

महापुरुषोंके बोधपरक जीवन प्रसंग ईश्वरचन्द्र विद्यासागर – कुछ प्रेरक-प्रसंग (डॉ0 श्रीरामशंकरजी द्विवेदी) बड़ा आदमी बंगालमें गोलदीघीके दक्षिणी किनारके एक दुमजला

गुरु नानकदेव अपनी यात्रामें घूमते हुए एक ग्राममें रुके थे। उस दिन उनके पास गाँवका एक लुहार मक्केकी दो मोटी

एक लड़की थी। एक दिन उसने एक पण्डितजीको कथा कहते हुए सुना कि ‘भगवान्का एक नाम लेनेसे मनुष्य दुस्तर भवसागरसे

पाण्डवोंका वनवास-काल समाप्त हो गया। दुर्योधनने युद्धके बिना उन्हें पाँच गाँव भी देना स्वीकार नहीं किया। युद्ध अनिवार्य समझकर दोनों

हैहय क्षत्रियोंके वंशमें एक परपुरञ्जय नामक राजकुमार हो गये हैं। एक बार वे वनमें आखेटके लिये गये। वृक्षोंकी आइसे उन्होंने

नित्य प्रसन्न राम आज रो रहे हैं। माता कौसल्या उद्विग्र हो गयी हैं। उनका लाल आज किसी प्रकार शान्त नहीं

एक बहिरा मनुष्य नियमपूर्वक कथा सुनने जाया करता था। जब कथावाचकजीको पता लगा कि वह बहिरा है और कथाका एक