
हस्त-लेखका मूल्य
1925 के जूनमें, जब गांधीजीका खादी-प्रचार तथा चरखा उद्योगका प्रयत्न चल रहा था, देशबन्धु चितरञ्जन दासने उनसे दार्जिलिंगमें अपने यहाँ

1925 के जूनमें, जब गांधीजीका खादी-प्रचार तथा चरखा उद्योगका प्रयत्न चल रहा था, देशबन्धु चितरञ्जन दासने उनसे दार्जिलिंगमें अपने यहाँ

मनुष्यका चरित्र किसी जिज्ञासुने एक ज्ञानीसे पूछा-‘हर मनुष्यकी बनावट तो एक जैसी होती है, फिर कुछ लोग पतनके गर्त में

‘महाराजा मेघवाहनके धार्मिक शासनमें भी असहाय और निरपराधका वध हो यह तो घोर लज्जाकी बात है मुझे बचाओ, मेरे प्राण

एक बार श्रीसूरदासजी बादशाह अकबरके दरबारमें विराज रहे थे। उनसे पूछा गया कि ‘कविता सर्वोत्तम किसकी है, निष्पक्ष भावसे बतलाइये।’

कर भला, तो हो भला बेंजामिन फ्रैंकलिनने एक धनी व्यक्तिकी मेजपर बीस डॉलरकी सोनेकी गिन्नी रखते हुए कहा- ‘आपने बिगड़े

आर्यसमाजके संस्थापक श्रीस्वामी दयानन्दजी सरस्वतीके अत्यन्त निकटके श्रद्धालु भक्तोंमें थे पंजाबके पण्डित श्रीगुरुदत्तजी विद्यार्थी । स्वामीजीके देहावसान के अनन्तर उनके

भगवान् बुद्धका एक पूर्ण नामक शिष्य उनके समीप एक दिन आया और उसने तथागतसे धर्मोपदेश प्राप्त करके ‘सुनापरंत’ प्रान्तमें धर्मप्रचारके

भगवान् व्यास सभी जीवोंकी गति तथा भाषाको समझते हैं। एक बार जब वे कहीं जा रहे थे, तब रास्तेमें उन्होंने

पूर्वकालमें काश्यप नामक एक बड़ा तपस्वी और संयमी ऋषिपुत्र था। उसे किसी धनमदान्ध वैश्यने अपने रथके धक्केसे गिरा दिया। गिरने

इटली के एक धर्मयाजक (पादरी) पर बड़े-बड़े कष्ट आये; परंतु उनके मनमें कभी ताव नहीं आया। लोग उन्हें गालियाँ बकते