
सुहृद्
एक दिन संत इब्राहिमने रास्तेमें एक मूच्छित शराबीको देखा। उसका शरीर धूलमें सन गया था, मुँहमें धूल लिपटी हुई थी

एक दिन संत इब्राहिमने रास्तेमें एक मूच्छित शराबीको देखा। उसका शरीर धूलमें सन गया था, मुँहमें धूल लिपटी हुई थी

लालच बुरी बला है – वृद्ध व्याघ्र-विप्रकथा (श्रीशरद कौटिल्यजी मुदगिल) एक समय किसी वनमें एक बूढ़ा बाघ स्नानकर हाथमें कुशा

संत खैयास अपने शिष्यके साथ वनमें जा रहे थे। नमाजका समय हुआ और झरनेके पानीसे ‘वजू’ करके दोनोंने चद्दर बिछायी,

सद्गुरुकी सीख गुरुवर ‘सप्तमनाथजी’ नालन्दा विश्वविद्यालयके आचार्यरत्न थे, वे गुरुदेव ही नहीं, शिष्योंको ही अपना ‘देव’ माननेवाले सच्चे ‘शिष्यदेव’ थे,

अहमदाबादके प्रसिद्ध संत सरयूदासजी महाराज एक बार रेलगाड़ीकी तीसरी श्रेणीमें बैठकर डाकोर जा रहे थे। गाड़ीमें बड़ी भीड़ थी। कहीं

अंगुलिमालके नामके श्रवणमात्रसे ही समस्त कोशल राज्य त्रस्त और संतप्त हो उठता था । गुरुके दक्षिणा स्वरूप मैत्रायणीपुत्र वनमें रहता

अपरिचितकी मदद विद्यासागरने एक दिन अपने एक विश्वस्त कर्मचारीसे कहा-‘देखो, कलूटोलामें अमुक गलीके अमुक नम्बरके घरमें एक मद्रासी भद्रपुरुष रहते

किसी शहरमें एक बड़ा धर्मात्मा राजा राज्य करता था। उसके दानधर्मका प्रवाह कभी बंद नहीं होता था। एक दिन उसके

एक धनवान् सेठकी कोठीके नीचे ही एक मोची बैठा करता था। वह जूते बनाता जाता था और भजनगाता जाता था।

एक बार धामणगाँवमें बहुत बड़ा अकाल पड़ा। अ लोग अन्नके लिये तड़प-तड़पकर मर रहे थे। गाँवके पटवारी माणकोजी बोधलासे यह