
परिहासका दुष्परिणाम
द्वारकाके पास पिंडारकक्षेत्रमें स्वभावतः घूमते हुए कुछ ऋषि आ गये थे। उनमें थे विश्वामित्र, असित, कण्व, दुर्वासा, भृगु, अङ्गिरा, कश्यप,

द्वारकाके पास पिंडारकक्षेत्रमें स्वभावतः घूमते हुए कुछ ऋषि आ गये थे। उनमें थे विश्वामित्र, असित, कण्व, दुर्वासा, भृगु, अङ्गिरा, कश्यप,

हिष्मक राष्ट्रमें सुकुल नामका एक धर्मात्मा राजा राज्य करता था। नगरके पास ही एक व्याध पक्षियोंको फँसाकर उन्हें बेचकर अपनी

एक अंग्रेज अफ़सर एक जगह बाँध बँधवाने आया । जिस दिन बाँधके पूरा होनेमें एक दिन बच रहा था, उसी

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरघुनाथजीको पता लगा कि उनके परम भक्त विभीषणको कहीं ब्राह्मणोंने बाँध लिया है। श्रीराघवेन्द्रने चारों ओर दूत भेजे,

बादशाह अकबर राजधानीसे बाहर निकले थे। अनेक बार एक-दो विद्वानोंको साथ लेकर बिना किसी धूम -घड़ाके और आडम्बरके प्रजाकी दशाका

(12) अब चिन्ता किस बातकी स्वामी केशवानन्द, जिन्होंने शिक्षाका व्यापक प्रचार किया, राज्यसभाके सदस्य थे। एक दिन उनके एक सहकर्मीने

कर्मकी जड़ें (प्रो0 सुश्री प्रेमाजी पाण्डुरंगन ) एक हरा-भरा चरागाह था, जहाँ श्रीकृष्णकी गायें चरा करती थीं। आश्चर्यको बात यह

‘भगवान् बुद्धदेवकी जय ! ‘ गगन-मण्डल गूँज उठा तथागतके नामघोषसे। कितने दिनों बाद कपिलवस्तुके प्राणप्रिय नरेश शुद्धोदनके पुत्र सिद्धार्थ राजधानीमें

(6) वीणाके तार भगवान् बुद्धका एक शिष्य था श्रौण। श्रौण कभी राजा था। एक बार भगवान् बुद्ध उसके राज्यमें गये

एक बार श्रमण महावीर कुम्मार ग्रामसे कुछ दूर संध्या-वेलामें ध्यानस्थ खड़े थे। एक गोपाल आया और ध्यानस्थ महावीरसे बोला- ‘रे