
श्रीमारुति-गर्व-भङ्ग
हनुमान्जी जब लङ्का-दहन करके लौट रहे थे, तब उन्हें समुद्रोल्लङ्घन, सीतान्वेषण, रावण-मद-मर्दन एवं लङ्का-दहन आदि कार्योंका कुछ गर्व हो गया

हनुमान्जी जब लङ्का-दहन करके लौट रहे थे, तब उन्हें समुद्रोल्लङ्घन, सीतान्वेषण, रावण-मद-मर्दन एवं लङ्का-दहन आदि कार्योंका कुछ गर्व हो गया

विपन्न विधवाकी मदद श्री ईश्वरचन्द्र विद्यासागर वस्तुतः विद्याके सागर थे। उनके जीवनकी एक अनुकरणीय घटना है। उन्हें पता चला कि

कानपुरमें एक दिन आप अपनी मौजमें गङ्गामें लेटे है थे। थोड़ी दूरपर एक मगरमच्छ निकला। किनारे है बड़े श्रीप्यारेलालने चिल्लाकर

‘महेन्द्र विद्रोही हो गया है, सम्राट् । वह अधिकार और ऐश्वर्यमें इतना उन्मत्त है कि उसे आपके धर्मराज्यके सिद्धान्तोंका तनिक

यूरोपियन संत-साहित्यके इतिहासमें इटलीके प्रसिद्ध संत अस्सीसाईवाले फ्रांसिसका नाम अमर है। विरक्त जीवनसे पूर्व समयकी एक घटना है। वे नौजवान

एक दिन एक घमंडी युवकने इंगलैंडकी महारानी एलिजाबेथके आदरभाजन तथा प्रख्यात शूर सर वॉल्टर रैलेको द्वन्द्वयुद्धकी चुनौती दी। उस समय

हुगलीके सरकारी वकील स्वर्गीय शशिभूषण वन्द्योपाध्याय एक दिन वैशाखके महीनेमें दोपहरकी कड़कती लूमें एक किरायेकी गाड़ीमें बैठकर एक प्रतिष्ठित व्यक्तिके

संकटका साथी एक शिकारी था। एक दिन सुबहसे उसे कोई शिकार नहीं मिला। इससे वह उद्विग्न हो उठा। उसके पास

माता कैकेयीकी इच्छा और पिता दशरथजीकी मूक आज्ञासे राघवेन्द्र श्रीरामचन्द्र वन जानेको तैयार हुए। उनकी वन जानेकी बात सुनकर लक्ष्मणजीने

हुगलीके सरकारी वकील स्वर्गीय शशिभूषण वन्द्योपाध्याय एक दिन वैशाखके महीनेमें दोपहरकी कड़कती लूमें एक किरायेकी गाड़ीमें बैठकर एक प्रतिष्ठित व्यक्तिके