
प्रलोभनसे अविचलित रहनेका गौरव-बोध
प्रलोभनसे अविचलित रहनेका गौरव-बोध सौराष्ट्रके एक छोटे से राज्यकी पुराने जमानेकी बात है। बन्दरगाहके अधिकारके विषयमें अंग्रेजोंके साथ एक शर्तनामा

प्रलोभनसे अविचलित रहनेका गौरव-बोध सौराष्ट्रके एक छोटे से राज्यकी पुराने जमानेकी बात है। बन्दरगाहके अधिकारके विषयमें अंग्रेजोंके साथ एक शर्तनामा

एक गाँवमें एक साधु आये। उन्हें पता लगा कि गाँवमें एक ऐसा व्यक्ति है जो किसी प्रकारके आचार विचार, व्रत

विडालव्रतवालोंसे सावधान रहना चाहिये एक बार एक बिलाव शक्तिहीन ही जानेके कारण गंगाजीके तटपर हाथ उठाकर खड़ा हो गया और

एशियाके दमश्क नगरमें मुश्तफा नामका एक धनी और बुद्धिमान् व्यापारी रहता था वह अपने पुत्र सैयदको दूरदर्शी और विचक्षण बनाना

परमात्माके भक्ति-साम्राज्यमें निवास करनेवाले संत सदा अभय होते हैं। वे किसीसे भी नहीं डरते। सोलह सौ वर्ष पहलेकी एक घटना

मनुष्यका कर्म ही उसकी मृत्युका कारण पूर्वकालमें गौतमी नामवाली एक बूढ़ी ब्राह्मणी थी, जो शान्तिके साधनमें लगी रहती थी। एक

उत्तर प्रदेशमें राजघाटके पास किसी गाँवमें एक विद्वान् पण्डितजी रहते थे। घरमें उनकी विदुषी पत्नी थी। पण्डितजी एक बार बीमार

सन् 1897 की बात है, लोकमान्य तिलक दाजी साहेब खरेके बँगलेपर उतरे। रातके 9 ॥ बजे एक यूरोपियन पुलिस सुपरिंटेंडेंट

गुरुदेवने श्रीरामानुजाचार्यको अष्टाक्षर नारायण-मन्त्रका उपदेश करके समझाया- ‘वत्स! यह परम पावन मन्त्र एक बार भी जिसके कानमें पड़ जाता है,

एक संत कपड़े सीकर अपना निर्वाह करते थे। एक ऐसा व्यक्ति उस नगरमें था जो बहुत कपड़े सिलवाता था और