
हारिये न हिम्मत
‘हारिये न हिम्मत’ पंजाब केसरी महाराजा रणजीतसिंहको जब गुप्तचरोंसे समाचार मिला कि कबाइलियोंका दल राज्यकी सीमामें प्रवेश कर गया है
‘हारिये न हिम्मत’ पंजाब केसरी महाराजा रणजीतसिंहको जब गुप्तचरोंसे समाचार मिला कि कबाइलियोंका दल राज्यकी सीमामें प्रवेश कर गया है
कौन कबतक साथ देगा ? एक आदमीके तीन दोस्त थे। जब वह आदमी मरने लगा तो तीनों दोस्त उसके पास
सीख एक गुरुकी उत्तर भारतके पहाड़ी इलाकेमें एक गुरुका आश्रम था। उनके पास सुदूर क्षेत्रोंसे शिष्य शिक्षा ग्रहण करने आते
सन् 1916 की 23 जुलाईको लोकमान्य तिलककी 60 वीं वर्षगाँठ थी। दो वर्ष पूर्व ही वे माँडलेमें छ: वर्षकी सजा
धर्मराज युधिष्ठिरके समीप कोई ब्राह्मण याचना करने आया। महाराज युधिष्ठिर उस समय राज्यके कार्य अत्यन्त व्यस्त थे। उन्होंने नम्रतापूर्वक ब्राह्मणसे
ध्यानयोगसे बढ़कर दूसरा कोई उत्तम सुखका साधन नहीं पहलेकी बात है, अलर्क नामसे प्रसिद्ध एक राजर्षि थे, जो बड़े ही
(महावीर हनूमान्जी ) जयत्यतिबलो रामो लक्ष्मणश्च महाबलः । राजा जयति सुग्रीवो राघवेणाभिपालितः ॥ दासोऽहं कोसलेन्द्रस्य रामस्याक्लिष्टकर्मणः । हनूमान् शत्रुसैन्यानां निहन्ता
महाराज ययातिने दीर्घकालतक राज्य किया था। अन्तमें सांसारिक भोगोंसे विरक्त होकर अपने छोटे पुत्र पुरुको उन्होंने राज्य दे दिया और
महेश मंडल जातिका था नमः शूद्र- चाण्डाल। दिनभर मजदूरी करके कुछ पैसे लाता, उसीसे अपना तथा अपनी स्त्री, पुत्र, कन्या-
निष्काम सेवा एक बार प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीनने एक कुम्हारकी देखा, जो बहुत सुन्दर मिट्टीके बरतन बना रहा था। आइंस्टीनको उसके