
चमत्कार नहीं, सदाचार चाहिये
गौतम बुद्धके समयमें एक पुरुषने एक बहुमूल्य चन्दनका एक रत्नजटित शराव (बड़ा प्याला) ऊँचे खंभेपर टाँग दिया और उसके नीचे

गौतम बुद्धके समयमें एक पुरुषने एक बहुमूल्य चन्दनका एक रत्नजटित शराव (बड़ा प्याला) ऊँचे खंभेपर टाँग दिया और उसके नीचे

जर्मनमा द्वितीय जोसेफ बहुत दयालु हृदयके पुरुष थे। वे अक्सर साधारण कपड़े पहनकर प्रजाकी हालत जाननेके लिये अकेले ही निकल

एक साधुसे हजरत इब्राहीमने पूछा- ‘सच्चे साधुका लक्षण क्या है?’ साधुने उत्तर दिया- ‘मिला तो खा लिया, न मिला तो

एक साधु थे। उनका जीवन इतना पवित्र तथा सदाचारपूर्ण था कि दिव्य आत्माएँ तथा देवदूत उनके दर्शनके लिये प्रायः आते

एक बड़ा सुन्दर मकान है। उसके नीचे अनाजकी दूकान है। दूकानके सामने अनाजकी ढेरी लगी है। एक बकरा आया। उसने

एक वनमें वटवृक्षकी जड़में सौ दरवाजोंका बिल बनाकर पलित नामका एक बुद्धिमान् चूहा रहता था । उसी वृक्षकी शाखापर लोमश

जीविकाका दान चन्द्रनगरके राजा चन्द्रभान रोज सबेरै एक घण्टेक दान देते थे। रोजाना झुण्ड-के-झुण्ड भिखारी आते और दान ले जाते।

पैसा आपका है, लेकिन संसाधन समाजके हैं! जर्मनी एक उन्नत औद्योगिक देश है। बहुत-से लोग सोचेंगे कि वहाँके लोग बड़े

‘छाँड़ बिरानी आस’ (पात्र – किसान, किसानका बड़ा लड़का लखन, छोटा लड़का किशुन, चिड़ियाका जोड़ा और उसके दो बच्चे।) किसान-

कामासक्तिसे विनाश शंखचूड नामसे प्रसिद्ध एक बलवान् यक्ष था, जो कुबेरका सेवक था । इस भूतलपर उसके समान गदायुद्ध विशारद