
अहंकार- नाश
किसी राष्ट्रकार्य – धुरन्धर अथवा साधारण से व्यक्तिमें समस्त दुर्गुणोंका अग्रणी अहंकार या अभिमान जब प्रवेश पा जाता है, तब

किसी राष्ट्रकार्य – धुरन्धर अथवा साधारण से व्यक्तिमें समस्त दुर्गुणोंका अग्रणी अहंकार या अभिमान जब प्रवेश पा जाता है, तब

“मैंने जीवनपर्यन्त पाप ही पाप किये हैं-रग कम्बल और चमड़ेके व्यापारसे ही जीविका चलायी, जिसको लोग अच्छा काम नहीं समझते।

प्राचीन कालमें सिंहलद्वीपके अनुराधपुर नगरसे बाहर एक टीला था, उसे चैत्यपर्वत कहा जाता था। उसपर महातिष्य नामके एक बौद्ध भिक्षु

कवि श्रीपतिजी निर्धन ब्राह्मण थे, पर थे बड़े तपस्वी, धर्मपरायण, निर्भीक भगवद्धक भगवान्में आपका पूर्ण विश्वास था। आप भिक्षा माँगकर

एक संत नौकामें बैठकर नदी पार कर रहे थे। संध्याका समय था। आखिरी नाव थी, इससे उसमें बहुत भीड़ थी।

जीवनकी प्राथमिकताएँ दर्शनशास्त्रके एक प्रोफेसरने कक्षामें आकर मेजपर काँचकी एक बरनी रख दी। फिर उसमें टेबल-टेनिसकी गेंद भर दी और

एक शास्त्रीजी थे भक्त थे। ये नावपर गोकुलसे मथुराको चले। साथ कुछ बच्चे और स्त्रियाँ भी थीं। नौका उलटे प्रवाहकी

शत्रुता और मित्रता साथ-साथ नहीं रह सकती काम्पिल्य नगर में ब्रह्मदत्त नामका राजा राज करता था। उसके महलमें पूजनी नामक

एक युवक बचपनसे एक महात्माके पास आया- | — जाया करता था। सत्संगके प्रभावसे भजनमें भी उसका चित्त लगता था।

रविशंकर महाराज एक गाँवमें सवा सौ मन गुड़ बाँट रहे थे। एक लड़कीको वे जब गुड़ देने लगे, तब उसने