
थेरीगाथाकी बौद्ध भिक्षुणियाँ – कतिपय प्रसंग
थेरीगाथाकी बौद्ध भिक्षुणियाँ – कतिपय प्रसंग बौद्ध धार्मिक साहित्य, जो पाली भाषामें है, उसमें ‘तिपिटक’ (संस्कृत-त्रिपिटक)- का विशेष स्थान है।

थेरीगाथाकी बौद्ध भिक्षुणियाँ – कतिपय प्रसंग बौद्ध धार्मिक साहित्य, जो पाली भाषामें है, उसमें ‘तिपिटक’ (संस्कृत-त्रिपिटक)- का विशेष स्थान है।

पट्टन-साम्राज्यके महामन्त्री उदयनके पुत्र बाहड़ जैनोंके शत्रुञ्जयतीर्थका पुनरुद्धार करके दिवंगत पिताकी अपूर्ण इच्छा पूरी कर देना चाहते थे। तीर्थोद्धारका कार्य

कुसंगका परिणाम गंगाजी के किनारे गृध्रकूट नामक पर्वतपर एक विशाल पाकड़ वृक्ष था। उसके खोखले भाग (कोटर) में एक अन्धा

महाभारत युद्धके 10 वें दिन भीष्मपितामहके ही बतलाये मार्गसे शिखण्डीकी आड़ लेकर अर्जुनने उन्हें घायल कर दिया और अन्ततोगत्वा उन्हें

पवित्र सह्याचलके अञ्चलमें पहले कोई करवीरपुर नामका एक नगर था। वहाँ धर्मदत्त नामका एक पुण्यात्मा ब्राह्मण रहता था। एक बार

किसी नरेशके मनमें तीन प्रश्न आये- 1. प्रत्येक कार्यके करनेका महत्त्वपूर्ण समय कौन-सा ? 2. महत्त्वका काम कौन-सा ? 3.

जैसी नीयत, वैसी बरकत दानधर्मा प्रकृति भी नीयतके अनुसार बरक्कत (बढ़ोत्तरी) देती है, यह एक सर्वमान्य सिद्धान्त है। एक बार

संत ज्ञानेश्वर और संत नामदेव महाराज तीर्थ यात्रा करते-करते हस्तिनापुर (दिल्ली) पहुँचे। संतोंके आने से दिल्लीमें नामदेव कीर्तनकी धूम मच

बहुत दिनोंकी बात है। बगदादमें हसन नामका एक व्यक्ति रहता था। वह खलीफाके यहाँ नौकर था। उसने नौकरीसे बहुत धन

घोर दुष्काल पड़ा था। लोग दाने-दानेके लिये भटक रहे थे। भगवान् बुद्ध से जनताका यह कष्ट सहा नहीं गया। उन्होंने