अहंकारी नहीं, विनम्र बनें
अहंकारी नहीं, विनम्र बनें रूसके एक महान् विचारक हुए हैं-‘आस्पेन्स्की ‘सत्यका सिद्धान्त’ नामक उनकी एक कृतिको श्रेष्ठतम कृतियोंमें स्थान प्राप्त
अहंकारी नहीं, विनम्र बनें रूसके एक महान् विचारक हुए हैं-‘आस्पेन्स्की ‘सत्यका सिद्धान्त’ नामक उनकी एक कृतिको श्रेष्ठतम कृतियोंमें स्थान प्राप्त
सैकड़ों साल बीत गये, किन्हीं दो नदियोंके पवित्र संगमपर एक तपोधन ब्राह्मण रहते थे। उनका नाम कौशिक था। वे अपने
ईश्वरीय विधान ही कल्याणकारी एक छोटेसे गाँवमें एक व्यापारी था। उसके पास रुपयोंकी कुछ बहुतायत हो गयी उनसे उसने माल
नये दारोगाने जगन्मित्रकी जमीन जप्त करनेका | अ निश्चय किया। लोगोंने उसे समझाया- ‘इस परम संतको हमलोगोंने यह भूमि इनाममें
प्राचीन कालमें एक राजा थे, जिनका नाम था इन्द्रम्र से बड़े दानी, धर्मज्ञ और सामर्थ्यशाली थे। धनार्थियोंको वे सहस्र स्वर्णमुद्राओंसे
किसी नरेशको पक्षी पालनेका शौक था। अपने पाले पक्षियोंमें एक चकोर उन्हें इतना प्रिय था कि उसे वे अपने हाथपर
श्रीचैतन्य महाप्रभु उन दिनों नवद्वीपमें निमाईके नामसे ही जाने जाते थे। उनकी अवस्था केवल सोलह वर्षकी थी। व्याकरणकी शिक्षा समाप्त
जर्मनीके बसंवीक प्रदेशमें प्रमुख नगर है नोवर । इसके पास ही हैमेलिन नामका एक शहर है। इसकी एक ओर तो
महामतिमान् आचार्य चाणक्य मैगस्थनीज यूनानका राजदूत बनकर जब भारत आया तब उसने चन्द्रगुप्त मौर्यके प्रधानमन्त्री चाणक्यकी प्रशंसा सुनकर उनसे मिलनेकी
दो भाई बर्माके शान प्रान्तमें एक धनी किसान रहता था। मरते समय उसने अपने दोनों बेटोंको बराबर बराबर सम्पत्ति बाँट