भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य को ही सबसे बड़ा धन माना गया है और इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है और इन्होंने ही संसार में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार किया। इस दिन घर के द्वार पर तेरस दीपक जलाए जाने की प्रथा है। धनतेरस दो शब्दों से मिलकर बना है – पहला धन और दूसरा तेरस जिसका अर्थ होता है धन का तेरह गुना। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के कारण इस दिन को वैद्य समाज धन्वंतरि जयंती के रूप में मनाता है।
इसलिए मनाया जाता है धनतेरस का पर्व
शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। जिस तिथि को भगवान धन्वंतरि समुद्र से निकले, वह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। भगवान धन्वंतरि समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परंपरा चली आ रही है। भगवान धन्वंतरि को विष्णु भगवान का अंश माना जाता है और इन्होंने ही पूरी दुनिया में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार किया। भगवान धन्वंतरि के बाद माता लक्ष्मी दो दिन बाद समुद्र से निकली थीं इसलिए उस दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इनकी पूजा-अर्चना करने से आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है।
धनतेरस की पौराणिक कथा
एकबार मृत्यु के देवता यमराज ने यमदूतों से प्रश्न किया कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में तुमको कभी किसी पर दया आती है। यमदूतों ने कहा कि नहीं महाराज, हम तो केवल आपके दिए हुए निर्देषों का पालन करते हैं। फिर यमराज ने कहा कि बेझिझक होकर बताओं कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में दया आई है। तब एक यमदूत ने कहा कि एकबार ऐसी घटना हुई है, जिसको देखकर हृदय पसीज गया। एक दिन हंस नाम का राजा शिकार पर गया था और वह जंगल के रास्ते में भटक गया था और भटकते-भटकते दूसरे राजा की सीमा पर चला गया। वहां एक हेमा नाम का शासक था, उसने पड़ोस के राजा का आदर-सत्कार किया। उसी दिन राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म भी दिया।
ज्योतिषाचार्यों ने की भविष्यवाणी
ज्योतिषों ने ग्रह-नक्षत्र के आधार पर बताया कि इस बालक की विवाह के चार बाद ही मृत्यु हो जाएगी। तब राजा ने आदेश दिया कि इस बालक को यमुना तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखा जाए और स्त्रियों की परछाईं भी वहां तक नहीं पहुंचनी चाहिए। लेकिन विधि के विधान को कुछ और ही मंजूर था। संयोगवश राजा हंस की पुत्री यमुना तट पर चली गई और वहां राजा के पुत्र को देखा। दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद ही राजा के पुत्र की मृत्यु हो गई। तब यमदूत ने कहा कि उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हृदय पसीज गया था। सारी बातें सुनकर यमराज ने कहा कि क्या करें, यह तो विधि का विधान है और मर्यादा में रहते हुए यह काम करना पड़ेगा।
यमराज ने बताया उपाय
यमदूतों ने पूछा कि ऐसा कोई उपाय है, जिससे अकाल मृत्यु से बचा जा सके। तब यमराज ने कहा कि धनतेरस के दिन विधि विधान के साथ पूजा-अर्चना और दीपदान करने से अकाल मृत्यु नहीं होती। इसी घटना की वजह से धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दीपदान किया जाता है।
Health is considered as the biggest wealth in Indian culture and this day is also celebrated as National Ayurveda Day. It is believed that Lord Dhanvantari is considered a part of Lord Vishnu and it is he who propagated and spread medical science in the world. It is customary to light a Teras lamp at the door of the house on this day. Dhanteras is made up of two words – first Dhan and second Teras which means thirteen times of wealth. Vaidya Samaj celebrates this day as Dhanvantari Jayanti due to the appearance of Lord Dhanvantari.
That’s why the festival of Dhanteras is celebrated
According to the legends mentioned in the scriptures, during the churning of the ocean, Lord Dhanvantari appeared with the nectar urn in his hands. The date on which Lord Dhanvantari emerged from the ocean was Trayodashi Tithi of Krishna Paksha of Kartik month. Lord Dhanvantari had appeared from the sea with an urn, hence the tradition of buying utensils on this occasion is going on. Lord Dhanvantari is considered to be a part of Lord Vishnu and it is he who propagated and spread medical science all over the world. After Lord Dhanvantari, Goddess Lakshmi came out of the sea after two days, hence the festival of Deepawali is celebrated on that day. Worshiping them leads to the attainment of health and happiness.
legend of dhanteras
Once Yamraj, the god of death, asked the eunuchs that do you ever take pity on anyone for taking human life. The eunuchs said that no sir, we only follow the instructions given by you. Then Yamraj said that feel free to tell whether there has ever been mercy in taking human life. Then a eunuch said that once such an incident has happened, seeing which the heart throbs. One day a king named Hans went on a hunt and he got lost in the forest path and wandered on the border of another king. There was a ruler named Hema, who respected the neighboring king. On the same day the king’s wife also gave birth to a son.
astrologers predicted The astrologers told on the basis of the planets and constellations that this child would die only after four years of marriage. Then the king ordered that this child should be kept as a celibate in a cave on the banks of Yamuna and even the shadow of women should not reach there. But the constitution of law had something else to accept. Coincidentally, the daughter of King Hans went to the banks of Yamuna and saw the king’s son there. Both of them got married to Gandharva. Four days after the marriage, the king’s son died. Then the eunuch said that hearing the pitying lament of that newlywed was heart-wrenching. Hearing all the things, Yamraj said that what to do, it is a law of law and this work will have to be done while living in dignity. Yamraj told the remedy The eunuchs asked if there was any way to avoid premature death. Then Yamraj said that on the day of Dhanteras, there is no premature death by worshiping and donating lamps with the law. Due to this incident, on the day of Dhanteras, Lord Dhanvantari and Mother Lakshmi are worshiped and lamps are donated.