एकादशी मन और शरीर को एकाग्र कर देती है, लेकिन हर एकादशी विशेष प्रभाव उत्पन्न करती है।ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी को अचला या अपरा एकादशी कहा जाता है। इसका पालन करने से व्यक्ति की गलतियों का प्रायश्चित होता है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति का नाम यश बढ़ता है इसके प्रभाव से व्यक्ति के पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। यह व्रत व्यक्ति के संस्कारों को शुद्ध कर देता है । 👉फल प्राप्ती
जो फल तीनों पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है। यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।
इसकी प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।
एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया। दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।
हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।
Ekadashi concentrates the mind and body, but each Ekadashi produces a special effect. Jyeshtha Krishna Ekadashi is called Achala or Apara Ekadashi. By following this, a person’s mistakes are expunged. With the effect of this fast, a person’s name and fame increases, due to its effect, the souls of the person’s ancestors get peace. This fast purifies the sanskars of a person. 👉 attainment of fruit
The fruit that is obtained by bathing in all the three Pushkars on Kartik Purnima or by offering pindadan to ancestors on the banks of the Ganges, is obtained by fasting on Apara Ekadashi. Bathing in Prayagraj in the sun of Capricorn, fasting on Shivratri, bathing in the river Gomti in Jupiter in Leo, visiting Kedarnath or Badrinath in Kumbh, bathing in Kurukshetra during a solar eclipse, donating gold or donating semi-pregnant cows The fruit that is obtained from fasting, the same fruit is obtained from the fast of Apara Ekadashi. This fast is an ax to cut the sinful tree. Like fire to burn sinful fuel, like the sun to dispel the darkness of sin, like a lion to kill antelopes. Therefore, man must observe this fast while being afraid of sins. By fasting on Apara Ekadashi and worshiping God, a man gets rid of all sins and goes to Vishnu Lok.
According to its popular legend, in ancient times there was a pious king named Mahidhwaj. His younger brother Vajradhwaj was very cruel, unrighteous and unjust. He used to hate his elder brother. That sinner killed his elder brother one night and buried his body under a wild peepal tree. Due to this untimely death, the king started living on the same Peepal in the form of a ghost and started doing many mischiefs.
One day suddenly a sage named Dhaumya passed by. He saw the ghost and learned his past from Tapobal. With his penance, he understood the cause of the ghost mischief. The sage was pleased and removed that ghost from the Peepal tree and preached the knowledge of the other world. The merciful sage himself fasted on Apara (Achala) Ekadashi to get rid of the king’s ghost vagina and offered his virtue to the ghost to get rid of him from Agati. Due to the effect of this virtue, the king was freed from the ghost vagina. Giving thanks to the sage, he took a divine body and went to heaven sitting in the Pushpak Vimana.
Hey Rajan! I have told this story of Apara Ekadashi for public interest. By reading or listening to it, man is freed from all sins.