. रविवार दिनांक 06.11.2022 तदनुसार संवत् २०७९ कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को होने वाला है श्रीहरि विष्णु का शयन से जागने के बाद महादेव से प्रथम मिलन। कैसा होगा यह मिलन:-कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व भगवान शिव और भगवान विष्णु के एकाकार स्वरूप को समर्पित है। देवप्रबोधिनी एकादशी पर भगवान विष्णु चार माह की नींद से जागते हैं और चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव की पूजा करते हैं। इस तिथि पर जो भी मनुष्य हरि अर्थात भगवान विष्णु और हर अर्थात भगवान शिव की पूजा करता है, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। ऐसा वरदान स्वयं भगवान विष्णु ने नारद जी के माध्यम से मानवजन को दिया था।
इसीलिए इस दिन को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता है। आइए, जानते हैं इस व्रत के महत्व और इससे जुड़ी हुई पौराणिक घटनाओं के बारे में :- "प्रचलित कथा" सतयुग की एक घटना का विवरण धार्मिक पुस्तकों में मिलता है। इसके अनुसार, जब भगवान विष्णु को अपनी भक्ति से प्रसन्न कर राजा बलि उन्हें अपने साथ पाताल ले गए, उस दिन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि थी। चार माह तक बैकुंठ लोक श्रीहरि के बिना सूना रहा और सृष्टि का संतुलन गड़बड़ाने लगा। तब माँ लक्ष्मी विष्णुजी को वापस बैकुंठ लाने लिए पाताल गईं। इस दौरान राजा बलि को भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि वह हर साल चार माह के लिए उनके पास पाताल रहने आएँगे। इसलिए भगवान विष्णु हर साल चार माह के लिए पाताल अपने भक्त बलि के पास जाते हैं। जिस दिन माँ लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु बैकुंठ धाम वापस लौटे, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि थी। इस दिन भगवान विष्णु के बैकुंठ लौटने के उत्सव को उनके जागने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रीहरि जागने के बाद चतुर्दशी तिथि को भगवान शिव की पूजा के लिए काशी आए। यहाँ उन्होंने भगवान शिव को एक हजार कमल पुष्प अर्पित करने का प्रण किया। पूजा-अनुष्ठान के समय भगवान शिव ने श्रीहरि विष्णुजी की परीक्षा लेने के लिए एक कमल पुष्प गायब कर दिया।
जब श्रीहरि को एक कमल कम होने का अहसास हुआ तो उन्होंने कमल के स्थान पर अपनी एक आँख (कमल नयन) शिवजी को अर्पित करने का प्रण किया। जैसे ही श्रीहरि अपनी आँख अर्पित करनेवाले थे, वहाँ शिवजी प्रकट हो गए। शिवजी ने विष्णुजी के प्रति अपना प्रेम और आभार प्रकट किया। साथ ही उन्हें हजार सूर्यों के समान तेज से परिपूर्ण सुदर्शन चक्र भेंट किया। भगवान शिव के आशीर्वाद और उनके प्रति विष्णुजी के प्रेम के कारण ही इस दिन को हरिहर व्रत-पूजा का दिन कहा जाता है। भगवान विष्णु ने वरदान दिया कि जो भी मनुष्य कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी। इसीलिए इस तिथि को बैकुंठ चतुर्दशी तिथि भी कहा जाता है। "देवऋषि नारद से जुड़ी है यह कथा" सतयुग में नारदजी देवताओं और मनुष्यों दोनों के ही बीच माध्यम का कार्य करते थे। वह चराचर जगत अर्थात पृथ्वी पर आकर मनुष्यों और सभी प्राणियों का हाल लेते और कैलाश, बैकुंठ लोक और ब्रह्मलोक जाकर चराचर जगत के निवासियों की मुक्ति और प्रसन्नता से जुड़े सवालों का हल प्राप्त करते। फिर अलग-अलग माध्यमों से वह संदेश मनुष्यों तक भी पहुँचाते थे। इसी क्रम में एक बार नारदजी बैकुंठ लोक में भगवान विष्णु के पास पहुँचे और उनसे प्राणियों की मुक्ति का सरल उपाय पूछा। तब भगवान विष्णु नारदजी से कहते हैं, जो भी प्राणी मन-वचन और कर्म से पवित्र रहते हुए, बैकुंठ एकादशी पर पवित्र नदियों के जल में स्नान कर भगवान शिव के साथ मेरी पूजा करता है, वह मेरा प्रिय भक्त होता है और उसे मृत्यु के बाद बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। "पूजन विधि" इस दिन नदी, सरोवर में स्नान के बाद नदी या तालाब के किनारे 14 दीपक जलाएँ। इसके बाद भगवान विष्णु और शिव की आराधना करें। यदि संभव को तो शिव और विष्णुजी को कमल पुष्प अर्पित करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। घर में पूजा करते समय गंगाजल से मंदिर में छींटे देकर घी का दीपक जलाएँ। फिर रोली से भगवान विष्णु का तिलक करें और अक्षत अर्पित करें। साथ ही शिवजी पर चंदन का तिलक लगाएँ। मिष्ठान और भोग अर्पित करें। फिर श्रीहरि विष्णु और शिवजी की पूजा, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और आरती करें। शाम के समय दोबारा स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहने और दीपक जलाकर बहते जल में प्रवाहित कर दें। इसे दीपदान कहते हैं। दीपदान करना यदि संभव न हो तो मंदिर में दीपक जलाएँ। बुजुर्गों को उपहार देनें और जरूरतमंदों की मदद करने से लाभ मिलता है। *जय जय श्री हरि*
, Sunday date 06.11.2022 Accordingly, Samvat 2079 is going to be held on Kartik Shukla Chaturdashi, the first meeting of Shri Hari Vishnu with Mahadev after waking up from his sleep. How will this meeting happen: – It is celebrated on the Chaturdashi date of Shukla Paksha of Kartik month. This festival is dedicated to the one form of Lord Shiva and Lord Vishnu. On Devprabodhini Ekadashi, Lord Vishnu wakes up from four months’ sleep and worships Lord Shiva on Chaturdashi Tithi. On this date, whoever worships Hari i.e. Lord Vishnu and Hara i.e. Lord Shiva, he attains the world of Baikunth. Such a boon was given by Lord Vishnu himself to mankind through Narad ji.
That is why this day is called Baikuntha Chaturdashi. Come, let us know about the importance of this fast and the mythological events associated with it: – The description of an incident of “Prachit Katha” in Satyug is found in religious books. According to this, when King Bali, pleased with his devotion to Lord Vishnu, took him to Hades with him, that day was Ekadashi Tithi of Shukla Paksha of Ashadha month. For four months, Baikunth was deserted without Shri Hari and the balance of the universe was disturbed. Then Mother Lakshmi went to Hades to bring Vishnu back to Baikunth. During this, Lord Vishnu gave a boon to King Bali that he would come every year to stay with him for four months. That is why Lord Vishnu goes to his devotee Bali every year for four months. The day when Lord Vishnu returned to Baikunth Dham with Maa Lakshmi, it was Chaturdashi Tithi of Shukla Paksha of Kartik month. The festival of Lord Vishnu’s return to Baikuntha is celebrated on this day as a celebration of his awakening. After waking up on the Ekadashi Tithi of Kartik Shukla Paksha, Shri Hari came to Kashi to worship Lord Shiva on Chaturdashi Tithi. Here he vowed to offer one thousand lotus flowers to Lord Shiva. At the time of worship-ritual, Lord Shiva made a lotus flower disappear to test Shri Hari Vishnu.
When Shri Hari realized that a lotus was missing, he vowed to offer one of his eyes (Lotus Nayan) to Shiva in place of the lotus. Just as Shri Hari was about to offer his eyes, Shiva appeared there. Shiva expressed his love and gratitude towards Vishnu. At the same time, he was presented with a Sudarshan Chakra full of radiance like a thousand suns. Due to the blessings of Lord Shiva and the love of Lord Vishnu towards him, this day is called the day of Harihar Vrat-worship. Lord Vishnu granted a boon that whosoever worships Vishnu and Shiva together on the day of Kartik Shukla Chaturdashi, he will attain the world of Baikunth. That is why this date is also called Baikuntha Chaturdashi Tithi. “This story is related to Devrishi Narada.” In Satyuga, Naradji used to act as a medium between both gods and humans. He would come to the pastoral world i.e. earth, take the condition of human beings and all beings and go to Kailash, Baikunth Lok and Brahmaloka to get the solution of the questions related to the liberation and happiness of the inhabitants of the pastoral world. Then through different mediums, he used to convey the message to humans also. In this sequence, once Naradji reached Lord Vishnu in Baikunth Lok and asked him a simple solution for the salvation of beings. Then Lord Vishnu says to Naradji, whosoever, being pure in thought, word and deed, bathes in the waters of holy rivers on Baikuntha Ekadashi and worships me along with Lord Shiva, he is my dear devotee and should be put to death. After that, there is the attainment of Baikunth Lok. On this day, after bathing in a river, lake, light 14 lamps on the banks of the river or pond. After this worship Lord Vishnu and Shiva. If possible, offer lotus flowers to Shiva and Vishnu. Recite Vishnu Sahasranama. While worshiping at home, light a lamp of ghee by sprinkling it in the temple with Gangajal. Then do tilak of Lord Vishnu with Roli and offer Akshat. Also apply sandalwood tilak on Shiva. Offer sweets and bhog. Then worship Shri Hari Vishnu and Shiva, recite Vishnu Sahasranama and perform aarti. Take a bath again in the evening, wear clean clothes and light a lamp and throw it in the running water. This is called a lamp. If it is not possible to donate a lamp, then light a lamp in the temple. Giving gifts to the elderly and helping the needy benefits. *Jai Jai Shree Hari*