शरीर हमें जीवन यात्रा के वाहन के रूप में मिला है।

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मैं किसी आफिस काम के लिए फ्लाइट से बैंगलोर से मुम्बई जा रहा था।

यह विमान का इकोनॉमी क्लास था। जैसे ही मैं प्लेन में चढ़ा, मैंने अपना हैंड बैग ओवरहेड केबिन में रखा और अपनी सीट पर बैठ गया।

जब अपनी सीट बेल्ट लगा रहा था, तो मैंने एक सज्जन को देखा, जिनकी आयु शायद साठ-सत्तर साल के आस पास रही होगी। वह खिड़की की सीट पर मेरे बगल में ही बैठे थे।

अगले दिन मुंबई में मेरा एक प्रेजेंटेशन था। इसलिए मैंने अपने कागजात निकाले और अंतिम तैयारी में उनको पढ़ने लगा।

लगभग 15-20 मिनट के बाद, जब मैं अपना काम कर चुका था, मैंने दस्तावेजों को वापस बैग में सुरक्षित रूप से रखा और खिड़की से बाहर देखने लगा।

मैंने बड़ी लापरवाही भरी निगाह से अपने बगल में बैठे इस व्यक्ति के चेहरे की ओर देखा।

अचानक मेरे दिमाग में आया कि इस आदमी को मैंने पहले कहीं देखा है। मैं याद करने की कोशिश में बार-बार उन्हें देख रहा था।

वह वृद्ध थे और उनकी आँखों के नीचे और माथे पर झुर्रियाँ थीं। उनके चश्में साधारण फ्रेम वाले थे।

उनका सूट एक साधारण गहरे भूरे रंग का था, जो बहुत प्रभावशाली नहीं लग रहा था।

मैंने अपनी निगाहें उनके जूतों पर दौड़ाई। वे फॉर्मल जूतों की एक बहुत ही साधारण जोड़ी थी। वह अपने मेल का जवाब देने और अपने दस्तावेजों को देखने में व्यस्त लग रहे थे।

अचानक, उनको देखते हुए मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा और मैंने बातचीत शुरू करते हुए पूछा, “क्या आप श्री नारायण मूर्ति हैं?”

उन्होंने मेरी ओर देखा, और मुस्कुराकर उत्तर दिया, “हाँ, मैं हूँ।”

मैं चौंक पड़ा और कुछ समय के लिए अवाक रह गया! मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि उनसे आगे बातचीत कैसे जारी रखी जाए?

मैंने उन्हें फिर से देखा, लेकिन इस बार सबसे बड़े भारतीय अरबपति होने की दृष्टि से:- नारायण मूर्ति!

उनके जूते, सूट, टाई और चश्मा- सब कुछ बहुत ही साधारण था। और मजेदार तथ्य यह था कि इस व्यक्ति की सम्पति 2.3 बिलियन डॉलर थी और उन्होंने इंफोसिस की सह-स्थापना की थी।

मेरी हमेशा से बहुत अमीर बनने की इच्छा थी ताकि मैं इस दुनिया की सारी विलासिता का उपभोग कर सकूँ और बिजनेस क्लास की यात्रा कर सकूँ। और मेरे बगल वाला यह आदमी, जो पूरी एयरलाइन खरीद सकता था, मेरे जैसे मध्यम वर्ग के लोगों के साथ इकोनॉमी क्लास में यात्रा कर रहा था।

मैं खुद को रोक नहीं पाया और पूछा, “आप इकोनॉमी क्लास में यात्रा कर रहे हैं न कि बिजनेस क्लास में?”

“क्या बिजनेस क्लास के लोग जल्दी पहुँच जाते हैं?” उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया।

खैर, यह एक विचित्र प्रतिक्रिया थी और बहुत मायने भी रखती थी। और फिर, मैंने अपना परिचय दिया और बातचीत आगे बढ़ाई, “नमस्कार सर, मैं एक कॉर्पोरेट ट्रेनर हूँ और मैं पूरे भारत में कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ काम करता हूँ।”

उन्होंने अपना फोन दूर रखा और बहुत ध्यान से मेरी बात सुनने लगे। उस दो घंटे की यात्रा के दौरान हमने कई सवालों का आदान-प्रदान किया। हर सवाल के साथ बातचीत गहरी होती जा रही थी। और फिर एक ऐसा क्षण आया, जिसने इस उड़ान के अनुभव को और भी यादगार बना दिया।

मैंने सवाल किया, “श्रीमान, आप इस दुनिया में इतने सारे लोगों के आदर्श हैं। आप अपने जीवन में महान निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन, क्या आपको किसी बात का पछतावा है?”

यह सुनते ही उनका चेहरा कुछ उदास सा हो गया। उन्होंने कुछ देर तक सोचा और उत्तर दिया,

“कभी-कभी, मेरे घुटने में दर्द होता है। मुझे लगता है कि मुझे अपने शरीर का बेहतर ख्याल रखना चाहिए था। जब मैं जवान था, मैं काम में इतना व्यस्त था कि मुझे अपने शरीर का अपना ख्याल रखने का समय नहीं मिला और अब आज जब मुझे काम करना है, तो मैं नहीं कर पा रहा हु। मेरा शरीर इसकी अनुमति नहीं देता।”

“आप युवा, स्मार्ट और महत्वाकांक्षी हैं। मैंने जो गलती की है, उसे मत दोहराओ! अपने शरीर की उचित देखभाल करो और ठीक से आराम करो। यह एकमात्र शरीर ही है जो आपको ईश्वर की कृपा से तोहफे के रूप में मिला है।”

उस दिन मैंने दो चीज़ें सीखीं, एक जो उन्होंने मुझे बताई और दूसरी जो उन्होंने मुझे दिखाई।

हम सभी भौतिक रूप से बेहतर करने की उम्मीद में अपना सारा जीवन व्यतीत कर देते हैं और इस आपाधापी में हमारा स्वास्थ्य उपेक्षित हो जाता है।

हमारे शरीर की उपेक्षा करना मतलब हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को नुकसान पहुचाना।

जीवन में कोई भी विलासिता हमारी मदद नहीं करती है ,जब हमारा शरीर पीड़ित होता है। वास्तव में, जब शरीर सहयोग करना बंद कर देता है, तो सब कुछ अपने आप रुक जाता है।

यह एकमात्र शरीर ही है जो हमें इस जीवन यात्रा के वाहन के रूप में मिला है। बेहतर होगा कि हम इसे हल्के में न लें बुद्ध ने कहा है, “हमारा शरीर अनमोल है। यह इश-यात्रा के लिए हमारा वाहन है। इसके साथ सावधानी से व्यवहार करें।”

यह वह दिन था, जब मुझे वह सबक मिला, जिसकी मुझे अपने जीवन में सबसे ज्यादा जरूरत थी।

मंगलमय प्रभात
प्रणाम



I was going from Bangalore to Mumbai by flight for some office work.

This was the economy class of the plane. As soon as I boarded the plane, I placed my hand bag in the overhead cabin and took my seat.

While putting on my seat belt, I saw a gentleman who must have been around sixty or seventy years of age. He was sitting next to me in the window seat.

Next day I had a presentation in Mumbai. So I took out my papers and started reading them for final preparation.

After about 15-20 minutes, when I was done with my work, I put the documents back safely in the bag and looked out the window.

I looked casually at the face of the man sitting next to me.

Suddenly it occurred to me that I have seen this man somewhere before. I was looking at them again and again trying to remember.

He was old and had wrinkles under his eyes and on his forehead. His spectacles were of simple frames.

His suit was a simple dark grey, which didn’t look very impressive.

I ran my eyes over his shoes. They were a very simple pair of formal shoes. He seemed busy answering his mail and looking through his documents.

Suddenly, a thought flashed in my mind while looking at him and I started the conversation by asking, “Are you Sree Narayana Murthy?”

He looked at me, and smiled and replied, “Yes, I am.”

I was shocked and was speechless for a while! I could not understand anything, how to continue the conversation with him further?

I saw him again, but this time from the point of view of being the biggest Indian billionaire :- Narayan Murthy!

His shoes, suit, tie and glasses – everything was very simple. And the fun fact was this guy had a net worth of $2.3 billion and co-founded Infosys.

I always wanted to be very rich so that I could enjoy all the luxuries of this world and travel business class. And this guy next to me, who could have bought an entire airline, was traveling economy class with middle class people like me.

I couldn’t contain myself and asked, “You are traveling in economy class and not business class?”

“Do business class people arrive early?” he replied with a smile.

Well, it was a bizarre response and it made a lot of sense too. And then, I introduced myself and took the conversation forward, “Hello sir, I am a corporate trainer and I work with many multinational companies across India.”

He kept his phone away and started listening to me very attentively. During that two-hour visit, we exchanged many questions. The conversation was getting deeper with each question. And then came a moment that made the flying experience even more memorable.

I questioned, “Sir, you are a role model for so many people in this world. You are known for taking great decisions in your life. But, do you regret anything?”

His face became a bit sad on hearing this. He thought for a while and replied,

“Sometimes, my knee hurts. I guess I should have taken better care of my body. When I was young, I was so busy with work that I didn’t find time to take care of my body and now when I have to work, I can’t. My body doesn’t allow it.”

“You are young, smart and ambitious. Don’t repeat the mistake I made! Take proper care of your body and rest properly. This is the only body you have got as a gift by the grace of God.”

I learned two things that day, one that he told me and the other that he showed me.

We all spend our whole life hoping to do better materially and in this rush our health gets neglected.

Neglecting our body means harming both our physical and mental health.

No luxury in life helps us when our body is suffering. In fact, when the body stops cooperating, everything stops on its own.

This is the only body that we have got as the vehicle of this life journey. We’d better not take it lightly. The Buddha said, “Our body is priceless. It is our vehicle for travel. Treat it with care.”

It was the day I got the lesson I needed the most in my life.

good morning Greetings

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