” कर्मयोगी बनें “

कर्मयोगी बनो मगर कर्मफल के प्रति आसक्त भाव का सदैव त्याग करो, ये भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की महत्वपूर्ण और प्रमुख सीखों में एक है।जब हमारे भीतर कर्ता भाव आ जाता है और हम ये समझने लगते हैं कि ये कर्म मैंने किया तो निश्चित ही उस कर्मफल के Skirt हमारी सहज आसक्ति हो जायेगी।

उस स्थिति में हमारे लिए कर्म नहीं अपितु फल प्रधान हो जायेगा। अब इच्छानुसार फल प्राप्ति ही हमारे द्वारा संपन्न किसी भी कर्म का उद्देश्य रह जायेगा। ऐसी स्थिति में जब फल हमारे मनोनुकूल प्राप्त नहीं होगा तो निश्चित ही हमारा जीवन दुख, विषाद और तनाव से भर जायेगा।

🕉️ इसके ठीक विपरीत जब हम अपने कर्तापन का अहंकार त्याग कर इस भाव से सदा श्रेष्ठ कर्मों में निरत रहेंगे कि करने – कराने वाला तो एक मात्र वह प्रभु हैं।अब परिणाम की कोई चिंता नहीं रही। इस स्थिति में अब परिणाम चाहे सकारात्मक आये अथवा नकारात्मक हमारा मन विचलित नहीं होगा और एक अखंडत आनंद की अनुभूति हमें सतत होती रहेगी।



Be a Karmayogi but always give up attachment to the fruits of action, this is one of the important and important lessons in the life of Lord Krishna. We will easily become attached to the skirt of the fruit of our actions.

In that situation, not the work but the fruit will become important for us. Now the aim of any action performed by us will be to get the desired result. In such a situation, when the result is not according to our wish, then surely our life will be filled with sorrow, sadness and tension.

🕉️ Just the opposite, when we leave the ego of our doership and will always be engaged in noble deeds with the feeling that only God is the doer. Now there is no worry about the result. In this situation, whether the result is positive or negative, our mind will not be distracted and we will continue to feel an unbroken joy.

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