मनुष्य को उसका कर्म ही सुख दुःख देता है।सृष्टि का आधार ही कर्म है। इसलिए ज्ञानी महात्मा किसी को भी दोषी नहीँ मानते |
सुख दुःख का कारण जो अपने अन्दर ही खोजे वह सन्त है| ज्ञानी पुरुष सुख दुःख का कारण बाहर नही खोजते हैँ । मनुष्य के दुख सुख का बाहर से कोई नाता नहीँ है | यह कल्पना करना कि कोई मुझे दुःख या सुख दे रहा है भ्रमात्मक है|ऐसी कल्पना तो दूसरोँ के प्रति वैर भाव जगायेगी|
वस्तुतः सुख या दुःख कोई दे नहीँ सकता है यह मन की कल्पना मात्र है , सुख या दुःख तो कर्म के फल हैँ । सदा सर्वदा मन को समझाना चाहिए कि उसे जो भी सुख दुःखानुभव हो रहा है , वह उसी के कर्मो का फल है —
कोउ न काहु सुख दुःख कर दाता।
निज कृत करम भोगु सब भ्राता।
जय सियाराम जी
Only his karma gives happiness and sorrow to man. Karma is the basis of creation. That’s why the wise Mahatma does not blame anyone.
The one who finds the cause of happiness and sorrow within himself is a saint. Wise men do not seek outside the cause of happiness and sorrow. There is no relation to the happiness of man from outside. To imagine that someone is giving me pain or happiness is delusional. Such imagination will create animosity towards others.
In fact, no one can give happiness or sorrow, it is just the imagination of the mind, happiness or sorrow is the result of karma. Always always explain to the mind that whatever happiness and sorrow it is experiencing is the result of its own actions.
Kou na kahu, the giver of happiness and sorrow. All brothers and sisters are blessed.
jai siyaram ji