एक वृद्ध व्यक्ति बहुत परेशान था कारण शारीरिक बीमारी से ग्रस्त था। वो बैठा कुछ सोच रहा था तभी बहु की आवाज आई– “बैठे रहते है दिन भर। बस बैठे-बैठे खाते है।”
वृद्ध व्यक्ति सुनकर रोने लगा।
ओर याद करने लगा उस पल को जब बचपन में खेल कर बिताया ओर जवानी में मस्त होकर जीवन जिया अब बुढापा आया तो आज शरीर तो दुःख दे रहा है साथ में अपने भी दुःख दे रहे है। क्या जो जीवन मैंने जिया 80 वर्ष वो सब बेकार था
आज मेरे पास क्या है। यह शरीर जिसके लिए न जाने क्या-क्या नही किया आज वही दुःख का कारण बन बैठा है। जिसके लिए किया वो भी आज दुःख के समय दुःखी कर रहे है।
आखिर इतने वर्ष में मैंने क्या पाया अब तो मौत आने वाली है।
यह मानव जीवन इतना दुःख से भरा हुआ है आरम्भ से लेकर अंत तक लेकिन मुझे कभी अफसोस नही हुआ लेकिन आज अफसोस हो रहा है क्योंकि आज मुझे जीवन का कोई लक्ष्य नही दिख रहा है।
पहले धन कमाने का लक्ष्य था, मकान बनाने का लक्ष्य था, बेटों को पढ़ाने का लक्ष्य था बहुत सारे लेकिन ये सब एक जगह आकर रुक गए लेकिन इसमें मेरा क्या लाभ हुआ।
जहाँ से शुरू हुआ वही पर आकर रुक गया हूँ। खाली हाथ आए थे न साथ कोई आया था अब खाली हाथ जाना है न साथ कोई जाएगा।
पता नही क्यों यह मानव तन मिला है❓मौत के बाद मेरा क्या होगा❓
हे भगवान इतनी पूजा-पाठ की उसका क्या लाभ हुआ जीवन का❓कुछ समझ में नही आया। क्या पाया और क्या खोया।
*जीवन की सत्यता हर बार हमारे दरवाजे पर दस्तक देती है कभी किसी के मौत दिखाकर तो कभी दुःख के द्वारा लेकिन हम् सभी संसार में इतने व्यस्त हो जाते है कि कभी जानने का मौका नही मिलता है।
मानव जीवन बहुत भाग्य से मिलता है सभी को चाहे आपका परिवार हो या हमारा बस कुछ समय के लिए सभी मेहमान है। अगर अपने से ओर अपने परिवार से अपने समाज से प्रेम करते है तो उस सत्यता को स्वयं जाने और समाज को भी बताए क्योंकि न जाने कब वो घड़ी आ जाए जब अपने भी छूट जाएंगे और संसार भी छूट जाएगा।🙏🏻😞
🙏🏻ॐ श्री आशुतोषाय नमः🙏🏻