मुझे लगा कि इसे प्रचारित किया जाना भारतीय संस्कृति को बचाये रखनें के लिए आवश्यक हैं
गायत्री_निवास
बच्चों को स्कूल बस में बैठाकर वापस आ शालू खिन्न मन से टैरेस पर जाकर बैठ गई.
सुहावना मौसम, हल्के बादल और पक्षियों का मधुर गान कुछ भी उसके मन को वह सुकून नहीं दे पा रहे थे, जो वो अपने पिछले शहर के घर में छोड़ आई थी.
शालू की इधर-उधर दौड़ती सरसरी नज़रें थोड़ी दूर एक पेड़ की ओट में खड़ी बुढ़िया पर ठहर गईं.
‘ओह! फिर वही बुढ़िया, क्यों इस तरह से उसके घर की ओर ताकती है ?’
शालू की उदासी बेचैनी में तब्दील हो गई, मन में शंकाएं पनपने लगीं. इससे पहले भी शालू उस बुढ़िया को तीन-चार बार नोटिस कर चुकी थी.
दो महीने हो गए थे शालू को पूना से गुड़गांव शिफ्ट हुए, मगर अभी तक एडजस्ट नहीं हो पाई थी.
पति सुधीर का बड़े ही शॉर्ट नोटिस पर तबादला हुआ था, वो तो आते ही अपने काम और ऑफ़िशियल टूर में व्यस्त हो गए. छोटी शैली का तो पहली क्लास में आराम से एडमिशन हो गया, मगर सोनू को बड़ी मुश्किल से पांचवीं क्लास के मिड सेशन में एडमिशन मिला. वो दोनों भी धीरे-धीरे रूटीन में आ रहे थे, लेकिन शालू, उसकी स्थिति तो जड़ से उखाड़कर दूसरी ज़मीन पर रोपे गए पेड़ जैसी हो गई थी, जो अभी भी नई ज़मीन नहीं पकड़ पा रहा था.
सब कुछ कितना सुव्यवस्थित चल रहा था पूना में. उसकी अच्छी जॉब थी. घर संभालने के लिए अच्छी मेड थी, जिसके भरोसे वह घर और रसोई छोड़कर सुकून से ऑफ़िस चली जाती थी. घर के पास ही बच्चों के लिए एक अच्छा-सा डे केयर भी था. स्कूल के बाद दोनों बच्चे शाम को उसके ऑफ़िस से लौटने तक वहीं रहते. लाइफ़ बिल्कुल सेट थी, मगर सुधीर के एक तबादले की वजह से सब गड़बड़ हो गया.
यहां न आस-पास कोई अच्छा डे केयर है और न ही कोई भरोसे लायक मेड ही मिल रही है. उसका केरियर तो चौपट ही समझो और इतनी टेंशन के बीच ये विचित्र बुढ़िया. कहीं छुपकर घर की टोह तो नहीं ले रही? वैसे भी इस इलाके में चोरी और फिरौती के लिए बच्चों का अपहरण कोई नई बात नहीं है. सोचते-सोचते शालू परेशान हो उठी.
दो दिन बाद सुधीर टूर से वापस आए, तो शालू ने उस बुढ़िया के बारे में बताया. सुधीर को भी कुछ चिंता हुई, “ठीक है, अगली बार कुछ ऐसा हो, तो वॉचमैन को बोलना वो उसका ध्यान रखेगा, वरना फिर देखते हैं, पुलिस कम्प्लेन कर सकते हैं.” कुछ दिन ऐसे ही गुज़र गए.
शालू का घर को दोबारा ढर्रे पर लाकर नौकरी करने का संघर्ष जारी था, पर इससे बाहर आने की कोई सूरत नज़र नहीं आ रही थी.
एक दिन सुबह शालू ने टैरेस से देखा, वॉचमैन उस बुढ़िया के साथ उनके मेन गेट पर आया हुआ था. सुधीर उससे कुछ बात कर रहे थे. पास से देखने पर उस बुढ़िया की सूरत कुछ जानी पहचानी-सी लग रही थी. शालू को लगा उसने यह चेहरा कहीं और भी देखा है, मगर कुछ याद नहीं आ रहा था. बात करके सुधीर घर के अंदर आ गए और वह बुढ़िया मेन गेट पर ही खड़ी रही.
“अरे, ये तो वही बुढ़िया है, जिसके बारे में मैंने आपको बताया था. ये यहां क्यों आई है ?” शालू ने चिंतित स्वर में सुधीर से पूछा.
“बताऊंगा तो आश्चर्यचकित रह जाओगी. जैसा तुम उसके बारे में सोच रही थी, वैसा कुछ भी नहीं है. जानती हो वो कौन है ?”
शालू का विस्मित चेहरा आगे की बात सुनने को बेक़रार था.
“वो इस घर की पुरानी मालकिन हैं.”
“क्या ? मगर ये घर तो हमने मिस्टर शांतनु से ख़रीदा है.”
“ये लाचार बेबस बुढ़िया उसी शांतनु की अभागी मां है, जिसने पहले धोखे से सब कुछ अपने नाम करा लिया और फिर ये घर हमें बेचकर विदेश चला गया, अपनी बूढ़ी मां गायत्री देवी को एक वृद्धाश्रम में छोड़कर.
छी… कितना कमीना इंसान है, देखने में तो बड़ा शरीफ़ लग रहा था.”
सुधीर का चेहरा वितृष्णा से भर उठा. वहीं शालू याद्दाश्त पर कुछ ज़ोर डाल रही थी.
“हां, याद आया. स्टोर रूम की सफ़ाई करते हुए इस घर की पुरानी नेमप्लेट दिखी थी. उस पर ‘गायत्री निवास’ लिखा था, वहीं एक राजसी ठाठ-बाटवाली महिला की एक पुरानी फ़ोटो भी थी. उसका चेहरा ही इस बुढ़िया से मिलता था, तभी मुझे लगा था कि इसे कहीं देखा है, मगर अब ये यहां क्यों आई हैं ?
क्या घर वापस लेने ? पर हमने तो इसे पूरी क़ीमत देकर ख़रीदा है.” शालू चिंतित हो उठी.
“नहीं, नहीं. आज इनके पति की पहली बरसी है. ये उस कमरे में दीया जलाकर प्रार्थना करना चाहती हैं, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली थी.”
“इससे क्या होगा, मुझे तो इन बातों में कोई विश्वास नहीं.”
“तुम्हें न सही, उन्हें तो है और अगर हमारी हां से उन्हें थोड़ी-सी ख़ुशी मिल जाती है, तो हमारा क्या घट जाएगा ?”
“ठीक है, आप उन्हें बुला लीजिए.” अनमने मन से ही सही, मगर शालू ने हां कर दी.
गायत्री देवी अंदर आ गईं. क्षीण काया, तन पर पुरानी सूती धोती, बड़ी-बड़ी आंखों के कोरों में कुछ जमे, कुछ पिघले से आंसू. अंदर आकर उन्होंने सुधीर और शालू को ढेरों आशीर्वाद दिए.
नज़रें भर-भरकर उस पराये घर को देख रही थीं, जो कभी उनका अपना था. आंखों में कितनी स्मृतियां, कितने सुख और कितने ही दुख एक साथ तैर आए थे.
वो ऊपरवाले कमरे में गईं. कुछ देर आंखें बंद कर बैठी रहीं. बंद आंखें लगातार रिस रही थीं.
फिर उन्होंने दिया जलाया, प्रार्थना की और फिर वापस से दोनों को आशीर्वाद देते हुए कहने लगीं, “मैं इस घर में दुल्हन बनकर आई थी. सोचा था, अर्थी पर ही जाऊंगी, मगर…” स्वर भर्रा आया था.
“यही कमरा था मेरा. कितने साल हंसी-ख़ुशी बिताए हैं यहां अपनों के साथ, मगर शांतनु के पिता के जाते ही…” आंखें पुनः भर आईं.
शालू और सुधीर नि:शब्द बैठे रहे. थोड़ी देर घर से जुड़ी बातें कर गायत्री देवी भारी क़दमों से उठीं और चलने लगीं.
पैर जैसे इस घर की चौखट छोड़ने को तैयार ही न थे, पर जाना तो था ही. उनकी इस हालत को वो दोनों भी महसूस कर रहे थे.
“आप ज़रा बैठिए, मैं अभी आती हूं.” शालू गायत्री देवी को रोककर कमरे से बाहर चली गई और इशारे से सुधीर को भी बाहर बुलाकर कहने लगी, “सुनिए, मुझे एक बड़ा अच्छा आइडिया आया है, जिससे हमारी लाइफ़ भी सुधर जाएगी और इनके टूटे दिल को भी आराम मिल जाएगा.
क्यों न हम इन्हें यहीं रख लें ?
अकेली हैं, बेसहारा हैं और इस घर में इनकी जान बसी है. यहां से कहीं जाएंगी भी नहीं और हम यहां वृद्धाश्रम से अच्छा ही खाने-पहनने को देंगे उन्हें.”
“तुम्हारा मतलब है, नौकर की तरह ?”
“नहीं, नहीं. नौकर की तरह नहीं. हम इन्हें कोई तनख़्वाह नहीं देंगे. काम के लिए तो मेड भी है. बस, ये घर पर रहेंगी, तो घर के आदमी की तरह मेड पर, आने-जानेवालों पर नज़र रख सकेंगी. बच्चों को देख-संभाल सकेंगी.
ये घर पर रहेंगी, तो मैं भी आराम से नौकरी पर जा सकूंगी. मुझे भी पीछे से घर की, बच्चों के खाने-पीने की टेंशन नहीं रहेगी.”
“आइडिया तो अच्छा है, पर क्या ये मान जाएंगी ?”
“क्यों नहीं. हम इन्हें उस घर में रहने का मौक़ा दे रहे हैं, जिसमें उनके प्राण बसे हैं, जिसे ये छुप-छुपकर देखा करती हैं.”
“और अगर कहीं मालकिन बन घर पर अपना हक़ जमाने लगीं तो ?”
“तो क्या, निकाल बाहर करेंगे. घर तो हमारे नाम ही है. ये बुढ़िया क्या कर सकती है.”
“ठीक है, तुम बात करके देखो.” सुधीर ने सहमति जताई.
शालू ने संभलकर बोलना शुरू किया, “देखिए, अगर आप चाहें, तो यहां रह सकती हैं.”
बुढ़िया की आंखें इस अप्रत्याशित प्रस्ताव से चमक उठीं. क्या वाक़ई वो इस घर में रह सकती हैं, लेकिन फिर बुझ गईं.
आज के ज़माने में जहां सगे बेटे ने ही उन्हें घर से यह कहते हुए बेदख़ल कर दिया कि अकेले बड़े घर में रहने से अच्छा उनके लिए वृद्धाश्रम में रहना होगा. वहां ये पराये लोग उसे बिना किसी स्वार्थ के क्यों रखेंगे ?
“नहीं, नहीं. आपको नाहक ही परेशानी होगी.”
“परेशानी कैसी, इतना बड़ा घर है और आपके रहने से हमें भी आराम हो जाएगा.”
हालांकि दुनियादारी के कटु अनुभवों से गुज़र चुकी गायत्री देवी शालू की आंखों में छिपी मंशा समझ गईं, मगर उस घर में रहने के मोह में वो मना न कर सकीं.
गायत्री देवी उनके साथ रहने आ गईं और आते ही उनके सधे हुए अनुभवी हाथों ने घर की ज़िम्मेदारी बख़ूबी संभाल ली.
सभी उन्हें अम्मा कहकर ही बुलाते. हर काम उनकी निगरानी में सुचारु रूप से चलने लगा.
घर की ज़िम्मेदारी से बेफ़िक्र होकर शालू ने भी नौकरी ज्वॉइन कर ली. सालभर कैसे बीत गया, पता ही नहीं चला.
अम्मा सुबह दोनों बच्चों को उठातीं, तैयार करतीं, मान-मनुहार कर खिलातीं और स्कूल बस तक छोड़तीं. फिर किसी कुशल प्रबंधक की तरह अपनी देखरेख में बाई से सारा काम करातीं. रसोई का वो स्वयं ख़ास ध्यान रखने लगीं, ख़ासकर बच्चों के स्कूल से आने के व़क़्त वो नित नए स्वादिष्ट और पौष्टिक व्यंजन तैयार कर देतीं.
शालू भी हैरान थी कि जो बच्चे चिप्स और पिज़्ज़ा के अलावा कुछ भी मन से न खाते थे, वे उनके बनाए व्यंजन ख़ुशी-ख़ुशी खाने लगे थे.
बच्चे अम्मा से बेहद घुल-मिल गए थे. उनकी कहानियों के लालच में कभी देर तक टीवी से चिपके रहनेवाले बच्चे उनकी हर बात मानने लगे. समय से खाना-पीना और होमवर्क निपटाकर बिस्तर में पहुंच जाते.
अम्मा अपनी कहानियों से बच्चों में एक ओर जहां अच्छे संस्कार डाल रही थीं, वहीं हर व़क़्त टीवी देखने की बुरी आदत से भी दूर ले जा रही थीं.
शालू और सुधीर बच्चों में आए सुखद परिवर्तन को देखकर अभिभूत थे, क्योंकि उन दोनों के पास तो कभी बच्चों के पास बैठ बातें करने का भी समय नहीं होता था.
पहली बार शालू ने महसूस किया कि घर में किसी बड़े-बुज़ुर्ग की उपस्थिति, नानी-दादी का प्यार, बच्चों पर कितना सकारात्मक प्रभाव डालता है. उसके बच्चे तो शुरू से ही इस सुख से वंचित रहे, क्योंकि उनके जन्म से पहले ही उनकी नानी और दादी दोनों गुज़र चुकी थीं.
आज शालू का जन्मदिन था. सुधीर और शालू ने ऑफ़िस से थोड़ा जल्दी निकलकर बाहर डिनर करने का प्लान बनाया था. सोचा था, बच्चों को अम्मा संभाल लेंगी, मगर घर में घुसते ही दोनों हैरान रह गए. बच्चों ने घर को गुब्बारों और झालरों से सजाया हुआ था.
वहीं अम्मा ने शालू की मनपसंद डिशेज़ और केक बनाए हुए थे. इस सरप्राइज़ बर्थडे पार्टी, बच्चों के उत्साह और अम्मा की मेहनत से शालू अभिभूत हो उठी और उसकी आंखें भर आईं.
इस तरह के वीआईपी ट्रीटमेंट की उसे आदत नहीं थी और इससे पहले बच्चों ने कभी उसके लिए ऐसा कुछ ख़ास किया भी नहीं था.
बच्चे दौड़कर शालू के पास आ गए और जन्मदिन की बधाई देते हुए पूछा, “आपको हमारा सरप्राइज़ कैसा लगा ?”
“बहुत अच्छा, इतना अच्छा, इतना अच्छा… कि क्या बताऊं…” कहते हुए उसने बच्चों को बांहों में भरकर चूम लिया.
“हमें पता था आपको अच्छा लगेगा. अम्मा ने बताया कि बच्चों द्वारा किया गया छोटा-सा प्रयास भी मम्मी-पापा को बहुत बड़ी ख़ुशी देता है, इसीलिए हमने आपको ख़ुशी देने के लिए ये सब किया.”
शालू की आंखों में अम्मा के लिए कृतज्ञता छा गई. बच्चों से ऐसा सुख तो उसे पहली बार ही मिला था और वो भी उन्हीं के संस्कारों के कारण.
केक कटने के बाद गायत्री देवी ने अपने पल्लू में बंधी लाल रुमाल में लिपटी एक चीज़ निकाली और शालू की ओर बढ़ा दी.
“ये क्या है अम्मा ?”
“तुम्हारे जन्मदिन का उपहार.”
शालू ने खोलकर देखा तो रुमाल में सोने की चेन थी.
वो चौंक पड़ी, “ये तो सोने की मालूम होती है.”
“हां बेटी, सोने की ही है. बहुत मन था कि तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हें कोई तोहफ़ा दूं. कुछ और तो नहीं है मेरे पास, बस यही एक चेन है, जिसे संभालकर रखा था. मैं अब इसका क्या करूंगी. तुम पहनना, तुम पर बहुत अच्छी लगेगी.”
शालू की अंतरात्मा उसे कचोटने लगी. जिसे उसने लाचार बुढ़िया समझकर स्वार्थ से तत्पर हो अपने यहां आश्रय दिया, उनका इतना बड़ा दिल कि अपने पास बचे इकलौते स्वर्णधन को भी वह उसे सहज ही दे रही हैं.
“नहीं, नहीं अम्मा, मैं इसे नहीं ले सकती.”
“ले ले बेटी, एक मां का आशीर्वाद समझकर रख ले. मेरी तो उम्र भी हो चली. क्या पता तेरे अगले जन्मदिन पर तुझे कुछ देने के लिए मैं रहूं भी या नहीं.”
“नहीं अम्मा, ऐसा मत कहिए. ईश्वर आपका साया हमारे सिर पर सदा बनाए रखे.” कहकर शालू उनसे ऐसे लिपट गई, जैसे बरसों बाद कोई बिछड़ी बेटी अपनी मां से मिल रही हो.
वो जन्मदिन शालू कभी नहीं भूली, क्योंकि उसे उस दिन एक बेशक़ीमती उपहार मिला था, जिसकी क़ीमत कुछ लोग बिल्कुल नहीं समझते और वो है नि:स्वार्थ मानवीय भावनाओं से भरा मां का प्यार. वो जन्मदिन गायत्री देवी भी नहीं भूलीं, क्योंकि उस दिन उनकी उस घर में पुनर्प्रतिष्ठा हुई थी.
घर की बड़ी, आदरणीय, एक मां के रूप में, जिसकी गवाही उस घर के बाहर लगाई गई वो पुरानी नेमप्लेट भी दे रही थी, जिस पर लिखा था.
गायत्री_निवास
यदि आपकी आंखे इस कहानी को पढ़कर थोड़ी सी भी नम हो गई हो तो अकेले में 2 मिनट चिंतन करे कि पाश्चात्य संस्कृति की होड़ में हम अपनी मूल संस्कृति को भुलाकर, बच्चों की उच्च शिक्षा पर तो सभी का ध्यान केंद्रित हैं किन्तु उन्हें संस्कारवान बनाने में हम पिछड़ते जा रहे हैं ।
I felt it is necessary to publicize it to preserve Indian culture
gayatri_nivas
After returning the children to the school bus, Shalu sat down on the terrace with a sad heart.
The pleasant weather, the light clouds and the melodious singing of birds could not give her the peace she had left in her previous city house.
Shalu’s cursory eyes running here and there stopped on the old lady standing in the cover of a tree a short distance away.
‘Oh! Then the same old lady, why is she looking at her house like this?’
Shalu’s sadness turned into restlessness, doubts started growing in his mind. Even before this, Shalu had noticed that old lady three or four times.
It had been two months since Shalu was shifted from Poona to Gurgaon, but the adjustment could not be done yet.
Husband Sudhir was transferred on very short notice, he got busy with his work and official tour as soon as he arrived. Chhoti Shelly got admission in the first class easily, but Sonu got admission in the mid-session of the fifth class with great difficulty. Both of them were slowly coming into the routine, but Shalu, his condition had become like a tree planted on another ground, which was still not able to catch the new land.
Everything was going so well in Poona. He had a good job. There was a good maid to take care of the house, on which she used to leave the house and kitchen and go to the office comfortably. There was also a nice day care for the children near the house. After school, both the children stayed there till he returned from his office in the evening. Life was all set, but a transfer by Sudhir made everything go awry.
There is neither any good day care around here nor is there any reliable meds available. Consider her career to be a disaster and this strange old lady in the midst of so much tension. Are you hiding somewhere and taking reconnaissance of the house? Anyway, kidnapping of children for theft and ransom is not new in this area. Shalu got worried thinking about it.
Two days later, when Sudhir came back from the tour, Shalu told about the old lady. Sudhir also got worried, “Okay, next time something like this happens, he will take care of it by telling the watchman, otherwise let’s see again, the police can complain.” Some days passed like this.
Shalu’s struggle to get the job back on track was going on, but there was no sign of coming out of it.
One morning Shalu saw from the terrace, the watchman had come with the old lady at their main gate. Sudhir was talking to her about something. The old lady’s face looked somewhat familiar on seeing it from close quarters. Shalu thought that he had seen this face elsewhere too, but could not remember anything. After talking, Sudhir came inside the house and the old lady stood at the main gate.
“Oh, this is the same old lady I told you about. Why has she come here?” Shalu asked Sudhir in a worried tone.
“If I tell you, you will be surprised. Nothing is as you were thinking of him. Do you know who she is?”
Shalu’s astonished face was unwilling to hear further.
“She is the old mistress of this house.”
“what ? But we have bought this house from Mr. Shantanu.
“This helpless helpless old lady is the unfortunate mother of the same Shantanu, who first fraudulently got everything in her name and then sold this house to us and went abroad, leaving her old mother Gayatri Devi in an old age home.
Hey… what a bastard human being, it looked very decent to see.”
Sudhir’s face filled with disgust. At the same time, Shalu was putting some emphasis on the memory.
“Yeah, I remembered. The old nameplate of this house was seen while cleaning the store room. It had ‘Gayatri Niwas’ written on it, while there was also an old photo of a lady with a majestic opulence. Her face used to match this old lady, then I thought that I have seen her somewhere, but now why has she come here?
What to take back home? But we have bought it by paying full price. Shalu got worried.
“No. No. Today is the first anniversary of her husband. She wants to offer prayers by lighting a lamp in the room where she breathed her last.”
“What will happen with this, I have no faith in these things.”
“You are not right, they have, and if our yes gives them a little happiness, what will happen to us?”
“Okay, you call them.” Right from my heart, but Shalu said yes.
Gayatri Devi came in. Weak physique, old cotton dhoti on the body, some frozen in the corners of the big eyes, some melted tears. Coming inside, he blessed Sudhir and Shalu with many blessings.
His eyes were looking wide at the alien house, which once belonged to him. How many memories, so many joys and so many sorrows floated together in my eyes.
She went to the upstairs room. She sat for a while with her eyes closed. Closed eyes were leaking continuously.
Then she lit the lamp, prayed and then, blessing both of them, started saying, “I came to this house as a bride. Thought I would go only on the earth, but…” The voice came full.
“This was my room. How many years have been happily spent here with loved ones, but as soon as Shantanu’s father left…” Eyes filled again.
Shalu and Sudhir sat silently. After talking about the house for a while, Gayatri Devi got up with heavy steps and started walking.
As if the feet were not ready to leave the door of this house, but had to go. Both of them were also feeling this condition of theirs.
“Sit down, I’ll come now.” Shalu stopped Gayatri Devi and went out of the room and gestured to Sudhir and started saying, “Listen, I have come up with a very good idea, which will improve our life and his broken heart will also get rest.
Why don’t we keep them here? They are alone, destitute and their lives are settled in this house. Will not go anywhere from here and we will give them only good food and clothes from old age home here.
“You mean, like a servant?” “No. No. Not like a servant. We will not give them any salary. There is a maid for work too. Just, if she stays at home, then she will be able to keep an eye on the maids, visitors like a man of the house. Will be able to look after the children.
If she stays at home, then I will also be able to go to work comfortably. I too will not have the tension of the house from behind, the food and drink of the children.
“The idea is good, but will it be accepted?”
“Why not. We are giving them a chance to live in the house in which their souls have resided, which they secretly see.”
“And what if she became a mistress and started asserting her rights at home?”
“So what, we’ll take it out. The house is in our name only. What can this old lady do?”
“Okay, you talk and see.” Sudhir agreed.
Shalu began to speak calmly, “Look, if you want, you can stay here.”
The old lady’s eyes lit up at this unexpected offer. Can she really live in this house, but then she got extinguished.
In today’s time, where only the real son evicted him from the house saying that it would be better for him to live in an old age home than living in a big house alone. Why would these aliens keep him there without any selfishness?
“No. No. You will be in trouble unnecessarily.”
“What’s the problem, it’s such a big house and we too will be relieved by your stay.”
Although Gayatri Devi, who had gone through the bitter experiences of worldliness, understood the intention hidden in Shalu’s eyes, but she could not refuse in the temptation of living in that house.
Gayatri Devi came to live with them and as soon as they arrived, their experienced hands took over the responsibility of the house very well.
Everyone used to call her as Amma. Everything started going smoothly under his supervision.
Unconcerned with the responsibility of the house, Shalu also joined the job. How the year passed, I do not know.
Amma would pick up both the children in the morning, prepare them, feed them graciously and drop them till the school bus. Then like a skilled manager, she would get all the work done by Bai under her supervision. She herself took special care of the kitchen, especially when the children came from school, she would prepare new delicious and nutritious dishes every day.
Shalu was also surprised that the children who did not eat anything except chips and pizza, started happily eating the dishes prepared by them.
The children got along very well with Amma. In the greed of his stories, the children who were glued to the TV for a long time started obeying him. After eating and drinking on time and doing homework, he would go to bed.
While Amma was instilling good values in the children with her stories, she was also taking away from the bad habit of watching TV all the time.
Shalu and Sudhir were overwhelmed to see the pleasant change in the children, as both of them never even had time to sit and talk with the children.
For the first time, Shalu realized how positive the presence of an elder in the house, the love of grandmother and grandmother, had a positive effect on children. His children were deprived of this happiness from the beginning, because both their maternal grandmother and grandmother had passed away before their birth.
Today was Shalu’s birthday. Sudhir and Shalu had planned to leave the office a little early and have dinner outside. Thought, Amma would take care of the children, but both were surprised as soon as they entered the house. The children had decorated the house with balloons and skirts.
At the same time, Amma had made Shalu’s favorite dishes and cakes. The surprise birthday party, the enthusiasm of the kids and Amma’s hard work left Shalu overwhelmed and her eyes filled with tears.
She was not used to this kind of VIP treatment and children had never done anything special for her before.
The children ran to Shalu and, wishing him a happy birthday, asked, “How did you like our surprise?”
“Very good, so good, so good… what to tell…” he said, filling the children in his arms and kissing.
“We knew you’d love it. Amma told that even a small effort made by the children gives great happiness to the parents, that is why we did all this to make you happy.
Shalu’s eyes filled with gratitude for Amma. He had got such happiness from children only for the first time and that too because of their sanskars.
After cutting the cake, Gayatri Devi took out a thing wrapped in a red handkerchief tied in her pallu and extended it towards Shalu.
“What is this Amma?”
“Your birthday present.” When Shalu opened it, there was a gold chain in the handkerchief.
She was shocked, “It looks like gold.”
“Yes daughter, it’s gold. I wanted to give you some gift on your birthday. I do not have anything else, this is the only chain, which was kept safe. What shall I do with it now? What you wear, will look great on you.”
Shalu’s conscience began to hurt him. Whom she considered as a helpless old lady, ready for selfishness, gave shelter to her, her heart so big that she is easily giving her the only gold money left with her.
“No, no Amma, I can’t take it.”
“Take it daughter, take it as a mother’s blessing. I got old too. Do you know whether I should be there to give you something on your next birthday or not.
“No mom, don’t say that. May God always keep your shadow on our heads. Saying this, Shalu clings to him as if after years a separated daughter is meeting her mother.
Shalu never forgot that birthday, because he had received a priceless gift that day, the value of which some people do not understand at all and that is a mother’s love full of selfless human feelings. Gayatri Devi did not even forget that birthday, because on that day she was reestablished in that house.
The elder of the house, respected, in the form of a mother, whose testimony was put outside that house, she was also giving the old nameplate, which was written on it.
gayatri_nivas
If your eyes have become a little moist after reading this story, then think for 2 minutes alone that in the competition of western culture, forgetting our native culture, everyone’s attention is focused on the higher education of children, but in making them cultured. We are falling behind.