धन-धन रसिकन-धन गोवर्धन, जाने ब्रह्म लियो बिरमाय।
जेहि आश्रित असंख्य विधि, हरि, हर।
सोऊ आश्रय लिय येहि गिरिवर।
जेहि पूजति जलजा नित निज कर।
सोऊ ब्रह्म संग ब्रज-परिकर, गिरिवर पूज्यो जाय।
श्रुति-आराध्य ब्रह्म-बनवारी।
ब्रह्माराध्या भानुदुलारी ।
प्राण एक, पै द्वै तनु धारी।
विहरत मंजु निकुंज पुंज नित, लखि कमला ललचाय।
कोउ कर जोग, जुगुत वनवासी।
कोउ मुक्ति-हित सेवत कासी।
लखि दोउन मोहिं आवति हाँसी।
मूर्तिमान नगराज नाग तजि, बाँबी हित भरमाय।
जहाँ वेद नित देत बुहारी। फिरत शंभु गोपी-तनुधारी।
रज याचत विधि बने भिखारी।
जहँ बनि दासी करति खवासी, मुक्ति, मुक्ति-हित आय।
मरकत-मणिमय परम-प्रकासी।
लजवत अमित-इंदु छवि-रासी।
लखि सिहात बैकुंठ-विलासी।
ब्रज-मंडल-मंडन जन-रंजन,
खंडन-मद सुरराय
पुंज-निकुंजनि-मंजुलताई। लख विधि-विधिताहू सकुचाई।
मध्य मानसी-गंग सुहाई। राधा-कुंड आदि की महिमा, वरणत वाणि लजाय।
जो रस निगम ‘अगम’ कहि गायो।
सो गोवर्धन-गलिन बहायो।
रसिक-कृपा बिनु कोउ न पायो।
हम ‘कृपालु’ गिरिराज-भरोसे, निर्भय रहत सदाय।।
भावार्थ- प्रेम-रस के रसिकों का जीवनधन-स्वरूप गोवर्धन धाम बार-बार धन्य है। जिसने सच्चिदानन्द-ब्रह्म-श्रीकृष्ण को भी अपने वश में कर लिया है।
जिन अनंतकोटि ब्रह्मांडनायक पूर्णतम पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण-आश्रित (सहारे) अगणित ब्रह्मा, विष्णु, शंकर रहते हैं, उन श्रीकृष्ण ने भी (जब इंद्र ने अभिमानवश ब्रज को डुबाने के लिए एक सप्ताह तक अविच्छिन्न वृष्टि की थी) इसी गोवर्धन का आश्रय लिया था। जिन त्रिपाद-विभूषित भगवान् के चरणों को महालक्ष्मी स्वयं अपने हाथों से पूजती हैं, उन्हीं पूर्णतम पुरुषोत्तम ब्रह्म श्रीकृष्ण ने अपने समस्त ब्रजवासियों के साथ इस गोवर्धन की पूजा की थी।
वेद ब्रह्म-श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं एवं ब्रह्म-श्रीकृष्ण लीला प्रेम माधुरी में श्रीवृषभानुनन्दिनी की उपासना करते हैं। यद्यपि सिद्धांत से तो इन दोनों के दो शरीर होते हुये भी प्राण एक ही हैं। यह दोनों राधा कृष्ण इस गोवर्धन की सुन्दर लताकुंजों में निरन्तर दिव्य रास-विहार किया करते हैं, जिसे देखकर महालक्ष्मी भी इस रस का पान करने के लिये ललचाती हैं।
संसार में कोई मुक्ति के लिए वन में जाकर अष्टांग योग की साधना करता है एवं कोई काशी में देह त्याग करता है। इन दोनों ही अल्पज्ञों को देखकर मुझे हँसी आती है। ये लोग मूर्तिमान् गोवर्धन नाग को छोड़कर चारों ओर नागों के रहने के घर (बाँबी) के लिये भटकते फिरते हैं। जिस गोवर्धन-धाम में चारों वेद भी झाड़ू लगाते हैं एवं जहाँ भगवान् शंकर भी गोपी शरीर धारण करके दिव्य रास के लिए दौड़े आते हैं एवं जिस गोवर्धन धाम में मुक्ति भी अपनी मुक्ति के लिए दासी बनकर सेवा करती है।
जो गोवर्धन-धाम मरकत मणियों से जटित है एवं परम प्रकाश करने वाला है तथा जो करोड़ों चंद्रमा की रूप-माधुरी लज्जित करता है एवं जिसके माधुर्य को देखकर बैकुंठाधीश महाविष्णु भी अपने लोक के सुख को फीका समझकर संकुचित होते हैं। वह गोवर्धनधाम ब्रजवासियों का आभूषण एवं रसिकों को आनन्द देने वाला तथा सुरपति इन्द्र के भी मद को चूर्ण करने वाला है।
जिस गोवर्धनधाम की सुन्दर लता कुंजों की सुन्दरता को देखकर ब्रह्म की कारीगरी भी लज्जित होती है एवं जिस गोवर्धनधाम के मध्य में मानसी गंगा तथा राधाकुण्ड, कृष्णकुण्ड आदि सुशोभित हो रहे हैं। जिनके माहात्म्य को वर्णन करने में. वाणी अथवा सरस्वती भी लज्जित होती है ।
जिस रस को वेदों ने अप्राप्य बताया है, वही रस इस गोवर्धन की गली-गली में श्रीराधाकृष्ण द्वारा बहाया गया किन्तु रसिकों की कृपा बिना उस रस को आज तक कोई नहीं पा सका। ‘कृपालु’ कहते हैं कि हम तो उस दिव्य चिन्मय गोवर्धन धाम की शरणागति के सहारे सदा ही निर्भय रहते हैं।
Wealth-wealth Rasikan-wealth Govardhan, know Brahma Leo Birmay. Jehi dependent innumerable methods, Hari, Har. Sou shelter liye yehi girivar. Jehi worshiped Jalja every day. Braj-parikar, Girivar go to worship with Sou Brahm. Shruti-Aradhya Brahma-Banawari. Brahmaradhya Bhanudulari. Prana is one, pai dvai tanu dhari. Viharat Manju Nikunj Punj Nit, Lakh Kamala Lalchay. Kou Kar Jog, Jugut forest dweller. What is the benefit of service? Lakh Doun Mohan Aavati Hansi. Idol nagaraja nag taji, bambi interest deceived. Where the Vedas were given by Buhari. Firat Shambhu Gopi-Tanudhari. Beggars become beggars. Where as a slave does, freedom, liberation-interest income. Turquoise-manimy supreme-light. Lajwat Amit-Indu image-rasi. Lakhi Sihat Baikunth-luxury. Braj-Mandal-Mandan Jan-Ranjan, rebuttal item Punj-Nikunjani-Manjulatai. Lakh law-vidhitahu sakuchai. Middle Mansi-Gang Suhai. The glory of Radha-kunda etc., the speech is shameful. Sing whatever juice corporation is called ‘Agam’. So Govardhan-Galin Bahayo. Rasik-Kripa Binu Kou not found. We are ‘Kripalu’ Giriraj – trust, fearless, always.
भावार्थ- प्रेम-रस के रसिकों का जीवनधन-स्वरूप गोवर्धन धाम बार-बार धन्य है। जिसने सच्चिदानन्द-ब्रह्म-श्रीकृष्ण को भी अपने वश में कर लिया है। जिन अनंतकोटि ब्रह्मांडनायक पूर्णतम पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण-आश्रित (सहारे) अगणित ब्रह्मा, विष्णु, शंकर रहते हैं, उन श्रीकृष्ण ने भी (जब इंद्र ने अभिमानवश ब्रज को डुबाने के लिए एक सप्ताह तक अविच्छिन्न वृष्टि की थी) इसी गोवर्धन का आश्रय लिया था। जिन त्रिपाद-विभूषित भगवान् के चरणों को महालक्ष्मी स्वयं अपने हाथों से पूजती हैं, उन्हीं पूर्णतम पुरुषोत्तम ब्रह्म श्रीकृष्ण ने अपने समस्त ब्रजवासियों के साथ इस गोवर्धन की पूजा की थी। वेद ब्रह्म-श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं एवं ब्रह्म-श्रीकृष्ण लीला प्रेम माधुरी में श्रीवृषभानुनन्दिनी की उपासना करते हैं। यद्यपि सिद्धांत से तो इन दोनों के दो शरीर होते हुये भी प्राण एक ही हैं। यह दोनों राधा कृष्ण इस गोवर्धन की सुन्दर लताकुंजों में निरन्तर दिव्य रास-विहार किया करते हैं, जिसे देखकर महालक्ष्मी भी इस रस का पान करने के लिये ललचाती हैं। संसार में कोई मुक्ति के लिए वन में जाकर अष्टांग योग की साधना करता है एवं कोई काशी में देह त्याग करता है। इन दोनों ही अल्पज्ञों को देखकर मुझे हँसी आती है। ये लोग मूर्तिमान् गोवर्धन नाग को छोड़कर चारों ओर नागों के रहने के घर (बाँबी) के लिये भटकते फिरते हैं। जिस गोवर्धन-धाम में चारों वेद भी झाड़ू लगाते हैं एवं जहाँ भगवान् शंकर भी गोपी शरीर धारण करके दिव्य रास के लिए दौड़े आते हैं एवं जिस गोवर्धन धाम में मुक्ति भी अपनी मुक्ति के लिए दासी बनकर सेवा करती है। जो गोवर्धन-धाम मरकत मणियों से जटित है एवं परम प्रकाश करने वाला है तथा जो करोड़ों चंद्रमा की रूप-माधुरी लज्जित करता है एवं जिसके माधुर्य को देखकर बैकुंठाधीश महाविष्णु भी अपने लोक के सुख को फीका समझकर संकुचित होते हैं। वह गोवर्धनधाम ब्रजवासियों का आभूषण एवं रसिकों को आनन्द देने वाला तथा सुरपति इन्द्र के भी मद को चूर्ण करने वाला है। जिस गोवर्धनधाम की सुन्दर लता कुंजों की सुन्दरता को देखकर ब्रह्म की कारीगरी भी लज्जित होती है एवं जिस गोवर्धनधाम के मध्य में मानसी गंगा तथा राधाकुण्ड, कृष्णकुण्ड आदि सुशोभित हो रहे हैं। जिनके माहात्म्य को वर्णन करने में. वाणी अथवा सरस्वती भी लज्जित होती है । जिस रस को वेदों ने अप्राप्य बताया है, वही रस इस गोवर्धन की गली-गली में श्रीराधाकृष्ण द्वारा बहाया गया किन्तु रसिकों की कृपा बिना उस रस को आज तक कोई नहीं पा सका। ‘कृपालु’ कहते हैं कि हम तो उस दिव्य चिन्मय गोवर्धन धाम की शरणागति के सहारे सदा ही निर्भय रहते हैं।