श्रीवृन्दावन धाम

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रसिक ब्रजवासियों ने श्री वृन्दावन धाम की उपासना मूल रूप से बतायी है। श्री वृन्दावन के प्रति अनन्य भाव इस दोहे में दिखाई पड़ता हैसर्वप्रथम कहा श्री वृन्दावन को नाम रट अर्थात नाम सर्वप्रथम।
नाम
रूप
लीला
गुण
धाम
की। वृन्दावन प्रिया प्रियतम का निज घर है। तभी यह धाम है इसे छोड़ कर श्यामा श्याम एक पल के लिए कही और नही जाते। वृन्दावन की उपासना अर्थात श्यामा श्याम की उपासना। उपासना उप समीप आसन रहना। जो सतत श्री वृन्दावन का नाम रटता है श्री वृन्दावन श्री वृन्दावन श्री वृन्दावन…. उसके इस शरीर रूपी ब्रज में ही ह्रदय स्वरूप वृन्दावन प्रत्यक्ष होने लगता है। क्योंकि ब्रजवासियों ने इस शरीर को ही ब्रज कहा है। और इसमे ह्रदय जो है वह वृन्दावन ही है। लेकिन प्रकट कैसे होता है जैसे श्री हित ध्रुवदास जी महाराज बता रहे है


सर्वप्रथम नाम सतत वृन्दावन का रटिए। भोर में आंख खुलते ही श्री वृन्दावन श्री वृन्दावन श्री वृन्दावन धीरे धीरे वृन्दावन इसी शरीर रूपी ब्रज के इन नेत्रो से दृष्टिगोचर होने लगेगा अर्थात नाम के बाद रूप दर्शन होगा वृन्दावन का स्वरूप दिखने लगेगा इन्ही नेत्रो से तब कहा वृन्दावन सो प्रीति कर वृन्दावन अर्थात प्रिया प्रियतम प्रिया प्रियतम अर्थात साक्षात मूर्तिमान 🌹प्रेम🌹 तो वृन्दावन क्या हुआ उस प्रेम की भूमि अब यहां प्रेम कर नही कहा प्रीति कर कहा क्योंकि प्रेम अपने मे पूर्ण है। और प्रीति अर्थात प्रीत की रीत तो वृन्दावन अर्थात प्रेम देश मे या प्रेम देश से प्रीत की रीति प्रीति कीजिये रखिये मोहे प्रीति की रीति सीखा दीजिये निज नेह का मंत्र बता दीजिए गाते है ना रसिक जन प्रीति कर अर्थात श्यामा श्याम के लीला गुणों का दर्शन होने लगेगा ह्रदय में ही तब कहा वृन्दावन उर लेख अर्थात अपने ह्रदय की खाली स्लेट पर श्री वृन्दावन का नाम लिख लो जो ह्रदय है ही वृन्दावन बस अब सतत उसके नाम रूप लीला गुण चिंतन से उस ह्रदय की name plate मिल गयी समझो 🌹श्री वृन्दावन🌹 बाहर नही भीतर ही अपना ही ह्रदय जो अब निर्मल निश्छल निरवैर निर्लेप निर्द्वन्द्व हो गया। श्री वृन्दावन प्रेम देश की उपासना से ये विधा उन सबके लिए है। जो भौतिक वृन्दावन में रहते भले ना हो लेकिन वृन्दावन जिनके सतत स्मरण में रहता है। और किसी भी इष्ट की उपासना अनन्य भाव से की जाए तो फल क्या देती है। उसे अपने जैसा ही बना देती है ठीक इसी प्रकार वृन्दावन प्यारो अधिक अपनो ही गुण देत है जैसे बालक मलिन को मात गोद भर लेत ह

वृन्दावन की अनन्य उपासना इस ह्रदय को प्रेम से भर देती है। बिल्कुल अपनी तरह जैसे माँ के पास बालक कीचड़ से भरा भी आये और माँ माँ पुकारे तो माँ उसे वैसे ही गोद मे उठा लेती है।

जब साधक जन इन रसिक सन्तो के बताए मार्ग पर चल कर श्री वृन्दावन धाम की इस प्रकार उपासना करते है। तो वे शरीर से कही भी रहे वे वृन्दावन में ही है।और भौतिक वृन्दावन में रहते हुए भी कई बार मन यदि वृन्दावन से प्रेम नही कर पाया। क्योंकि जीव वास्तव में जड़ ही है एक प्रकार से ये तो सत्संग और सन्तो की कृपा से यदि विवेक जाग्रत हो जाये तो चैतन्य होता है जीव नही तो अपनी तुच्छ बुद्धि से तो जड़ ही है। तो यदि ऐसा हो तो उस जीव की मृत्यु भले वृन्दावन में हो। उसे युगल शरण नही मिलती।

यह अटल सत्य है और ठीक इसके विपरीत यदि भौतिक वृन्दावन से अन्यत्र कोई रहता हो और सतत अनन्य भाव से श्री वृन्दावन को भजता हो। तो वह युगल शरणागति अवश्यमेव पाता है श्रीजी की कृपा से। यह भी अटल सत्य है इसीलिए तन भले ब्रजवासी हो ना हो इस मन को ब्रजवासी बनाने का प्रयास अवश्य कीजिये।
वृन्दावन जा सके तो भी वृन्दावन ह्रदय में रहे ना जा सके तो भी वृन्दावन ह्रदय में रहे। क्योंकि उर लेख का अर्थ यही है कि नाम वृन्दावन का छप जाए ह्रदय में तब जहां रहेंगे वही वृन्दावन सा प्रेम बाटेंगे।

जय श्री राधे श्याम
✨✨ जय जय श्री वृंदावन धाम

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