भक्ति-मार्ग की आचार्य गोपियाँ है. उनका आदर्श मन और आँखों के सामने रखो.
ज्ञानमार्ग से योगमार्ग से जिस ईश्वर का आनंद का अनुभव होता है,
उसी आनंद का अनुभव इस भक्ति से सहज प्राप्त होता है.
ज्ञानी योगियों को जो ब्रह्मानंद प्राप्त होता है
वोही इस साधारण जीवात्मा को भी प्राप्त हो ऐसे उदेस्य से श्रीभागवत की रचना की गई है.
इसमें तो भगवान का स्वरुप बताया है. भगवान कैसे है?
परमात्मा के स्वरुप का वर्णन करते हुए कहा गया है – दुःख मन का धर्म है,आत्मा का नहीँ। मनुष्य दुःख में ईश्वर का स्मरण करता है जिससे उसका परमात्मा के साथ अनुसंधान होता है और उसे आनंद मिलता है.
जीव का स्वभाव सुन्दर नहीं है. परमात्मा का शरीर तो हो सकता है कि -कभी सुन्दर न भी हो.
कूर्मावतार,वराहा अवतार के शरीर सुन्दर नहीं थे। परन्तु श्रीपरमात्मा का स्वभाव सुन्दर,अतिशय सुन्दर है,दुसरो के दुःख दूर करने का परमात्मा का स्वभाव है. इसलिए तो भगवान वंदनीय है.
आध्यात्मिक,आधिदैविक तथा आधिभौतिक– तीनों प्रकार के तापो के
नाश करने वाले भगवान श्रीकृष्ण की हम वंदना करते है.
बहुत लोग पूछते है कि वंदना करने से क्या लाभ है? वंदना करने से पाप जलते हैं।
श्रीराधाकृष्ण की वंदना करेंगे तो आपके सारे पाप नष्ट होंगे.
परन्तु वंदना अकेले शरीर से नहीं ,मन से भी करो. अर्थात राधाकृष्ण को ह्रदय में पधराओ और उनको प्रेम से नमन करो. नमन प्रभु को बंधन में डालता हैं।
दुःख में जो साथ दे वह ईश्वर है और सुख में जो साथ दे वह जीव हैं। ईश्वर सर्वदा दुःख में ही साथ देता हैं।
अतः ईश्वर वन्दनीय हैं। ईश्वर ने जिस जिस को सहायता दी हे उसको दुःख में ही सहायता दी हैं।
पांडव जब दुःख में थे तब श्रीकृष्णजी ने उनकी मदद की।
पर पांडव जब सिहांसन में बैठे तब श्रीकृष्ण भी वहा से चले गये.
ईश्वर जिसे भी मिले है,दुःख में ही मिले है.
सुख का साथी जीव है और दुःख का साथी ईश्वर है इस बात का सतत मनन करो.
मनुष्य धन पाने के लिए प्रयत्न करता है (और दुःख सहन करता है)
उससे भी कम प्रयत्न यदि ईश्वर के लिये करे तो उसे ईश्वर अवश्य मिलेंगे.
कन्हैया तो बिना बुलाय गोपियों के घर जाता था,परन्तु वह मेरे घर क्यों नहीं आता हैं ?
ऐसा कभी विचार भी किया है?
आज,अभी ही ऐसा निश्चय कीजिए कि – “मै भी ऐसे सत्कर्म करूँगा कि कन्हैया घर भी आएगा। “
श्रीभगवान के आगे हाथ जोड़ना,मस्तक नमाना इसका क्या अर्थ है.?
हाथ क्रियाशक्ति का प्रतिक है. हाथ जोड़ने का अर्थ है कि -में अपने हाथों से सत्कर्म करूँगा।
मस्तक नमाने का अर्थ है- मैं अपनी बुद्धि-शक्ति को हे नाथ आप को अर्पित करता हूँ।
वंदना करने का अर्थ है – अपनी क्रियाशक्ति और बुद्धि -शक्ति श्रीभगवान को अर्पित करनी चाहिए।
The masters of the path of devotion are the gopis. Put his ideal in front of your mind and eyes. The God whose bliss is experienced through the path of yoga, from the path of knowledge, The experience of the same bliss is easily attained by this devotion. The enlightened yogis who attain Brahmanand Shri Bhagwat has been composed with such a purpose that this ordinary soul should also get the same. In this, the form of God is described. How is God?
Describing the nature of God, it has been said – Suffering is the religion of the mind, not of the soul. Man remembers God in sorrow, due to which he researches with God and gets pleasure. The nature of the creature is not beautiful. The body of God may or may not be beautiful. The bodies of Kurmavtar, Varaha Avatar were not beautiful. But the nature of the Supreme Soul is beautiful, very beautiful, it is the nature of God to remove the sorrows of others. That’s why God is venerable.
Spiritual, Adhidaivik and Adhibhautik – of the three types of heat We worship the destroyer Lord Krishna.
Many people ask that what is the benefit of worshiping? Worship burns sins. If you worship Sri Radhakrishna then all your sins will be destroyed. But do worship not with the body alone, but also with the mind. That is, come to Radhakrishna in your heart and bow down to him with love. Salutation puts the Lord in bondage. The one who accompanies you in sorrow is God and the one who supports you in happiness is a living entity. God always supports in sorrow.
Therefore God is praiseworthy. To whomever God has given help, he has given help only in sorrow. When the Pandavas were in grief, Shri Krishna ji helped them. But when the Pandavas sat on the throne, Shri Krishna also left from there. Whoever has met God, is found only in sorrow. Always contemplate that the companion of happiness is the soul and the companion of sorrow is God.
Man tries to get money (and suffers) If he makes even less effort for God, then he will surely find God. Kanhaiya used to go to the house of the gopis without invitation, but why does he not come to my house? Have you ever thought of this? Today, take this decision right now that – “I will also do such good deeds that Kanhaiya will also come home.”
What does it mean to fold hands in front of Shri Bhagwan, bow your head? The hand is a symbol of power. Joining hands means that I will do good deeds with my hands. Naaming the head means – I offer my intellect-power to you, O Nath. The meaning of worshiping is – one should offer one’s energy and intellect to the Lord.