ज्येष्ठा कृष्ण एकादशी…
युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है, तथा उसका माहात्म्य क्या है सो कृपा कर कहिए?
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! यह एकादशी “अचला तथा अपरा” दो नामों से जानी जाती है।
पुराणों के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की एकादशी अपरा एकादशी है, क्योंकि यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं।
इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ब्रह्म हत्या, भूत योनि, दूसरे की निंदा आदि के सब पाप दूर हो जाते हैं। इस व्रत के करने से परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना, झूठे शास्त्र पढ़ना या बनाना, झूठा ज्योतिषी बनना तथा झूठा वैद्य बनना आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
जो क्षत्रिय युद्ध से भाग जाए वे नरकगामी होते हैं, परंतु अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी स्वर्ग को प्राप्त होते हैं।
जो शिष्य गुरु से शिक्षा ग्रहण करते हैं, फिर उनकी निंदा करते हैं। वे अवश्य नरक में पड़ते हैं। मगर अपरा एकादशी का व्रत करने से वे भी इस पाप से मुक्त हो जाते हैं।
जो फल पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करने से या गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है।
मकर के सूर्य में प्रयागराज के स्नान से, शिवरात्रि का व्रत करने से, सिंह राशि के बृहस्पति में गोमती नदी के स्नान से, कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में कुरुक्षेत्र के स्नान से, स्वर्णदान करने से अथवा अर्द्ध प्रसूता गौदान से जो फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत से मिलता है।
यह व्रत पापरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। पापरूपी ईंधन को जलाने के लिए अग्नि, पापरूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य के समान, मृगों को मारने के लिए सिंह के समान है। अत: मनुष्य को पापों से डरते हुए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए। अपरा एकादशी का व्रत तथा भगवान का पूजन करने से मनुष्य सब पापों से छूटकर विष्णु लोक को जाता है।
प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।
एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ॠषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।
दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।
हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।
श्री एकादशी महारानी की जय…
Jyeshta Krishna Ekadashi.
Yudhishthira started saying that O Lord! What is the name of Jyeshtha Krishna Ekadashi, and what is its significance, so please tell me?
Lord Shri Krishna started saying that O Rajan! This Ekadashi is known by two names “Achla and Apara”. According to the Puranas, the Ekadashi of the Jyeshtha Krishna Paksha is Apara Ekadashi, because it gives immense wealth. Those who observe this fast, they become famous in the world.
Lord Trivikram is worshiped on this day. With the effect of fasting on Apara Ekadashi, all the sins of killing Brahma, ghostly vagina, blaming others, etc. By observing this fast, all the sins of becoming a foreigner, giving false testimony, lying, reading or making false scriptures, becoming a false astrologer and becoming a false doctor etc. are destroyed.
The Kshatriyas who run away from war go to hell, but by observing the fast of Apara Ekadashi they also reach heaven. The disciples who take instruction from the guru, then condemn them. They must go to hell. But by observing the fast of Apara Ekadashi, they also become free from this sin.
The fruit that is obtained by bathing on Kartik Purnima in Pushkar or by offering Pind Daan to ancestors on the banks of the Ganges, is obtained by observing Apara Ekadashi fast.
By bathing in Prayagraj in the Sun of Capricorn, by fasting on Shivaratri, by bathing in the river Gomti in Jupiter in Leo, by visiting Kedarnath or Badrinath in Kumbh, by bathing in Kurukshetra in a solar eclipse, by donating gold or by donating a half-maternity cow. The same result that one gets from fasting on Apara Ekadashi.
This fast is an ax to cut down the sinful tree. Fire to burn sinful fuel, like the sun to dispel sinful darkness, like a lion to kill deer. Therefore, one must observe this fast without fear of sins. By fasting on Apara Ekadashi and worshiping the Lord, a person gets rid of all sins and goes to Vishnu Lok.
In ancient times there was a godly king named Mahidhwaj. His younger brother Vajradhwaj was very cruel, unrighteous and unjust. He hated his elder brother. That sinner killed his elder brother one day in the night and buried his body under a wild peepal. Due to this premature death, the king started living on the same peepal in the form of a spirit and started doing many troubles.
One day suddenly a sage named Dhaumya passed by. He saw the phantom and learned his past from Tapobal. With his tenacity, he understood the reason for the phantom violence. The sage, being pleased, brought that phantom down from the peepal tree and preached the knowledge of the afterlife.
The merciful sage himself observed Apara Ekadashi fast to get rid of the king’s phantom vagina and offered his virtue to the phantom to free him from the agony. Due to the effect of this virtue, the king was freed from the phantom vagina. Giving thanks to the sage, he assumed the divine body and sat in the Pushpak Vimana and went to heaven.
Hey Rajan! I have told this story of Apara Ekadashi for public interest. By reading or listening to this one gets rid of all sins.
Glory to Shri Ekadashi Maharani…