परमात्मा या परमात्मा के भेजे गए पार्षद जन्म से ही दिव्य एवं अलौकिक हुआ करते हैं उनकी दिव्यता अलौकिकता आरम्भ से ही दिखाई देने लगती है जिससे आभास होने लगता है कि कोई साधारण आत्मा नहीं है विशेष आत्मा ही शरीर धारण करके प्रकट हुई है महाप्रभु जी भी जन्म से ही अलौकिक थे। सन्त जन कहते हैं। व्यास मिश्र जी के यहां युगल सेवा थी राधा कृष्ण की इसलिए समय समय पर उत्सव कीर्तन आदि होते रहते थे। जब हित जु 6 , 7 महीने के थे तभी यदि कोई राधे राधे बोलता तो हित जु जोर से किलकारियां मारने लगते थे थोड़े बड़े हुए राधा नाम सुनते ही ताली बजाने लगते जोर जोर से किलकारी लगाते बोलना तो आता नहीं था इसलिए बालक के स्वभाव की तरह किलकारी लगाते। माता पिता परिवारी जन बड़े प्रसन्न होते देख देखकर थोड़े बड़े हुए हित जु तो कीर्तन के समय नाचने लगते उछल उछल कर बड़े लोग कहते है न
*होनहार बिरवान के होत चीकने पात*
*पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं*
कि कैसा बनेगा बालक बड़ा होकर उसमे भी यदि परिवार का सहयोग मिल जाये तो सोना कुंदन बनकर दमकने लगता है। इसलिए सन्त जन कहते हैं यदि बालक में सात्विक गुण दिखाई पड़े बालपन से तो घरवालों को वैसा ही माहौल बालक को बनाकर देना चाहिए कोई विशुद्ध आत्मा आयी है उसका सहयोग करना चाहिए न कि अपने विपरीत व्यवहार में उसे डालकर पाप का भागीदार बनना चाहिए इसलिए साधक परिवारों को सावधानी बरतनी चाहिए। इसलिए सन्त जन कहते हैं पहले माता पिता सुधरे तब ही उम्मीद करें कि हमारी सन्तान सुधरेगी आज का युग तो ऐसा है कि बच्चे देखकर सीखते है कहने से नहीं करते। व्यास मिश्र जी का परिवार तो भक्त वैष्णव परिवार था ही अतः अनुकूल वातावरण मिलने लगा हित जु को थोड़े और बड़े हुए हित जु लगभग 3 या 4 वर्ष के होंगे। एक बार की बात है व्यास मिश्र जी अपने युगल सरकार का श्रृंगार कर रहे थे बड़े भाव से करते थे वैसे ही कर रहे थे लेकिन आज एक विचित्र घटना हो रही थी बार बार श्री कृष्ण का श्रृंगार श्री राधा का होने लगा और श्री राधा का श्रृंगार श्री कृष्ण का होने लगा। व्यास जी बड़े हैरान हुए सावधानी पूर्वक दोबारा तिबारा श्रृंगार किया पुनः पुनः वही दर्शन हो श्रृंगार के बाद समझ नही पा रहे क्या लीला हो रही है इतने में तो बाहर खेल रहे बालको की आवाज आने लगी जय हो जय हो युगल सरकार की जय हो व्यास मिश्र जी भी उत्सुकता पूर्वक सेवा छोड़कर बाहर चले गए देखूँ तो ये बाहर कैसी जयजयकार हो रही है बाहर आये तो क्या देखते है हित जु ने एक बालक जो गौर वर्ण का है उसे कृष्ण का श्रृंगार कराया है एक बालक जो श्याम वर्ण का है उसे श्री राधा का श्रृंगार कराया है और सारे बालक जय जय कार कर रहे हैं हित जु युगल सरकार को देख मुस्कुरा रहे है इतने छोटे से हित जु की ऐसी लीला देख व्यास मिश्र जी भीतर मन्दिर में हुए श्रृंगार के अदला बदली का भेद समझ गए ये तो कोई महान विभूति हमारे घर कृपा पूर्वक पधारी है तभी ऐसी दिव्य लीला हुई जो आज तक नहीं हुई व्यास मिश्र ने प्रेम से हित जु को हृदय से लगा लिया और बार बार मुख चूमने लगे ऐसी ही एक और हित जु की लीला हुई एक बार व्यास मिश्र जी कही काम से बाहर गए उस समय झूलन लीला का समय था युगल की सावन मास तो अपने युगल को व्यास जी नित्य झूला झुलाते थे सारा श्रृंगार धारण कराके जैसे अभी पिछले दिनों हमने दर्शन किये धाम के हिंडोला दर्शन ऐसे ही नित्य हिंडोला सजाते व्यास जी भी एक दिन जब बाहर गए तो हित जु को कहा हितु….. पुत्र आज तुम युगल सरकार को झूला झुलाना हम रात्रि तक आ जाएंगे और झोटा बहुत धीरे धीरे देना रहे होंगे रहे होंगे हित जु उस समय आज्ञा शिरोधार्य करके पिता की हित जु बैठ गए झूला झुलाने व्यास जी चले गए कुछ देर पश्चात युगल सरकार साक्षात प्रकट हुए और अपनी कण्ठ की माला दोनों राधा कृष्ण ने और वंशी चन्द्रिका श्री जी ने अपनी ये सब हित जु को दिया कहा अब हम जोर से झूला झूलेंगे ये सारा श्रृंगार हिलेगा सो तुम इसे पकड़ो गोद मे लेकर बैठे हुए हित जु श्रृंगार जो राधा कृष्ण ने दिया और खूब जोर जोर से युगल सरकार झूला झूले उस दिन हित जु को समय का कोई भान नहीं मंत्रमुग्ध होकर निहारते रहे। सन्ध्या समय बाद व्यास जी लौटे तो क्या देखते हैं कि आज युगल सरकार के भाल पर तो पसीना ही पसीना आया हुआ है और सारा जो श्रृंगार करके गए थे वो हितु लेकर बैठे हुए है जैसे ही आवाज लगाई हितु….. एकदम जैसे भाव समाधि टूटी हित जु की बोले जी पिताजी पूँछा ये श्रृंगार कैसे लिए बैठे हो तुम हित जु बोले युगल की ओर इशारा करते हुए इन्होंने ही दिया और ये पसीना पसीना कैसे है आज ? पूँछा व्यास जी ने तो कहा ये बहुत जोर से आज झूला झूले हैं इन्होंने हमसे कहा तुम ये श्रृंगार पकड़ो अब हम जोर से झूला झूलेंगे रोज धीरे धीरे झूलते हैं व्यास जी के तो प्रेम के अश्रु प्रवाहित होने लगे धन्य है पुत्र हितु इतने वर्षों बीत गये हमें सेवा करते लेकिन आज तक हमे दर्शन नही हुए और तुम आज प्रथम बार सेवा में बैठे तुम्हें प्रभु ने साक्षात दर्शन दे दिए। व्यास मिश्र जी उस दिन के बाद हित जु को सामान्य पुत्र की तरह नही माने अवतारी महापुरुष जानकर ही व्यवहार करते समझ गए थे ये लीला का विस्तार करने प्रभु की पधारे हैं
परमात्मा या परमात्मा के भेजे गए पार्षद जन्म से ही दिव्य एवं अलौकिक हुआ करते हैं उनकी दिव्यता अलौकिकता आरम्भ से ही दिखाई देने लगती है जिससे आभास होने लगता है कि कोई साधारण आत्मा नहीं है विशेष आत्मा ही शरीर धारण करके प्रकट हुई है महाप्रभु जी भी जन्म से ही अलौकिक थे। सन्त जन कहते हैं। व्यास मिश्र जी के यहां युगल सेवा थी राधा कृष्ण की इसलिए समय समय पर उत्सव कीर्तन आदि होते रहते थे। जब हित जु 6 , 7 महीने के थे तभी यदि कोई राधे राधे बोलता तो हित जु जोर से किलकारियां मारने लगते थे थोड़े बड़े हुए राधा नाम सुनते ही ताली बजाने लगते जोर जोर से किलकारी लगाते बोलना तो आता नहीं था इसलिए बालक के स्वभाव की तरह किलकारी लगाते। माता पिता परिवारी जन बड़े प्रसन्न होते देख देखकर थोड़े बड़े हुए हित जु तो कीर्तन के समय नाचने लगते उछल उछल कर बड़े लोग कहते है न *होनहार बिरवान के होत चीकने पात* *पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं* कि कैसा बनेगा बालक बड़ा होकर उसमे भी यदि परिवार का सहयोग मिल जाये तो सोना कुंदन बनकर दमकने लगता है। इसलिए सन्त जन कहते हैं यदि बालक में सात्विक गुण दिखाई पड़े बालपन से तो घरवालों को वैसा ही माहौल बालक को बनाकर देना चाहिए कोई विशुद्ध आत्मा आयी है उसका सहयोग करना चाहिए न कि अपने विपरीत व्यवहार में उसे डालकर पाप का भागीदार बनना चाहिए इसलिए साधक परिवारों को सावधानी बरतनी चाहिए। इसलिए सन्त जन कहते हैं पहले माता पिता सुधरे तब ही उम्मीद करें कि हमारी सन्तान सुधरेगी आज का युग तो ऐसा है कि बच्चे देखकर सीखते है कहने से नहीं करते। व्यास मिश्र जी का परिवार तो भक्त वैष्णव परिवार था ही अतः अनुकूल वातावरण मिलने लगा हित जु को थोड़े और बड़े हुए हित जु लगभग 3 या 4 वर्ष के होंगे। एक बार की बात है व्यास मिश्र जी अपने युगल सरकार का श्रृंगार कर रहे थे बड़े भाव से करते थे वैसे ही कर रहे थे लेकिन आज एक विचित्र घटना हो रही थी बार बार श्री कृष्ण का श्रृंगार श्री राधा का होने लगा और श्री राधा का श्रृंगार श्री कृष्ण का होने लगा। व्यास जी बड़े हैरान हुए सावधानी पूर्वक दोबारा तिबारा श्रृंगार किया पुनः पुनः वही दर्शन हो श्रृंगार के बाद समझ नही पा रहे क्या लीला हो रही है इतने में तो बाहर खेल रहे बालको की आवाज आने लगी जय हो जय हो युगल सरकार की जय हो व्यास मिश्र जी भी उत्सुकता पूर्वक सेवा छोड़कर बाहर चले गए देखूँ तो ये बाहर कैसी जयजयकार हो रही है बाहर आये तो क्या देखते है हित जु ने एक बालक जो गौर वर्ण का है उसे कृष्ण का श्रृंगार कराया है एक बालक जो श्याम वर्ण का है उसे श्री राधा का श्रृंगार कराया है और सारे बालक जय जय कार कर रहे हैं हित जु युगल सरकार को देख मुस्कुरा रहे है इतने छोटे से हित जु की ऐसी लीला देख व्यास मिश्र जी भीतर मन्दिर में हुए श्रृंगार के अदला बदली का भेद समझ गए ये तो कोई महान विभूति हमारे घर कृपा पूर्वक पधारी है तभी ऐसी दिव्य लीला हुई जो आज तक नहीं हुई व्यास मिश्र ने प्रेम से हित जु को हृदय से लगा लिया और बार बार मुख चूमने लगे ऐसी ही एक और हित जु की लीला हुई एक बार व्यास मिश्र जी कही काम से बाहर गए उस समय झूलन लीला का समय था युगल की सावन मास तो अपने युगल को व्यास जी नित्य झूला झुलाते थे सारा श्रृंगार धारण कराके जैसे अभी पिछले दिनों हमने दर्शन किये धाम के हिंडोला दर्शन ऐसे ही नित्य हिंडोला सजाते व्यास जी भी एक दिन जब बाहर गए तो हित जु को कहा हितु….. पुत्र आज तुम युगल सरकार को झूला झुलाना हम रात्रि तक आ जाएंगे और झोटा बहुत धीरे धीरे देना रहे होंगे रहे होंगे हित जु उस समय आज्ञा शिरोधार्य करके पिता की हित जु बैठ गए झूला झुलाने व्यास जी चले गए कुछ देर पश्चात युगल सरकार साक्षात प्रकट हुए और अपनी कण्ठ की माला दोनों राधा कृष्ण ने और वंशी चन्द्रिका श्री जी ने अपनी ये सब हित जु को दिया कहा अब हम जोर से झूला झूलेंगे ये सारा श्रृंगार हिलेगा सो तुम इसे पकड़ो गोद मे लेकर बैठे हुए हित जु श्रृंगार जो राधा कृष्ण ने दिया और खूब जोर जोर से युगल सरकार झूला झूले उस दिन हित जु को समय का कोई भान नहीं मंत्रमुग्ध होकर निहारते रहे। सन्ध्या समय बाद व्यास जी लौटे तो क्या देखते हैं कि आज युगल सरकार के भाल पर तो पसीना ही पसीना आया हुआ है और सारा जो श्रृंगार करके गए थे वो हितु लेकर बैठे हुए है जैसे ही आवाज लगाई हितु….. एकदम जैसे भाव समाधि टूटी हित जु की बोले जी पिताजी पूँछा ये श्रृंगार कैसे लिए बैठे हो तुम हित जु बोले युगल की ओर इशारा करते हुए इन्होंने ही दिया और ये पसीना पसीना कैसे है आज ? पूँछा व्यास जी ने तो कहा ये बहुत जोर से आज झूला झूले हैं इन्होंने हमसे कहा तुम ये श्रृंगार पकड़ो अब हम जोर से झूला झूलेंगे रोज धीरे धीरे झूलते हैं व्यास जी के तो प्रेम के अश्रु प्रवाहित होने लगे धन्य है पुत्र हितु इतने वर्षों बीत गये हमें सेवा करते लेकिन आज तक हमे दर्शन नही हुए और तुम आज प्रथम बार सेवा में बैठे तुम्हें प्रभु ने साक्षात दर्शन दे दिए। व्यास मिश्र जी उस दिन के बाद हित जु को सामान्य पुत्र की तरह नही माने अवतारी महापुरुष जानकर ही व्यवहार करते समझ गए थे ये लीला का विस्तार करने प्रभु की पधारे हैं