एक उच्च कोटि के संत के श्री मुख से हमने सुना वो कह रहे थे….
हमने 10 साल की आयु मे घर छोड़ा करीब 20 साल हम पैदल ही घूमते रहे !!
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पूरे भारतवर्ष के कोने कोने मे जा कर संतो से मिले व् ज्ञान प्राप्त किया !! .
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हमको हमारे गुरुजनों ने पैसा अपने पास रखने से मना किया था और ये भी कहा था की इस ज्ञान को बेचना नहीं !!
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अगर कोई देता भी तो गंगा जी मे या किसी नदी तालाब मे फैंक देते !!
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हमको एक दिन अचानक मन मे आया की हम कभी रेलगाड़ी मे नहीं बैठे…
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चलो आज रेल द्वारा ही सफ़र करते हैं…
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पर जब टिकेट चेकर आया उसने 2-4 गालियाँ दी हमको और गाडी से उतार दिया साथ मे कहा की…
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महाराज हट्टे कट्टे दीखते हो कुछ काम किया करो…
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कुछ पैसे जोड़ कर टिकेट खरीद कर ही रेल मे सफ़र किया करो !!
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हमको तो हर बात मे प्रभु की इच्छा ही दिखती थी…
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अगले स्टेशन पर हमको उतार दिया गया
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हमने पैदल चलना शुरू किया की इतने मे एक बहुत ही प्यारा गोल मटोल सा छोटा सा बच्चा आया बोला….
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ये लो टिकेट और अगली ट्रेन आएगी उसमे बैठ जाना !!
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हम उससे कुछ और पूछते वो इतनी देर मे जल्दी से भागता हुआ आँखों से ओझल हो गया !!
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पहली बार हमने सोचा ट्रेन मे बैठे किसी सज्जन ने टिकट भिजवा दी होगी…
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उसके बाद भी 2-3 बार ऐसा ही हुआ !!
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हमको शक सा हुआ की ये बच्चा हर जगह कैसे पहुँच जाता है….
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और टिकेट भी उसी जगह की कैसे दे जाता है जहां हमने जाना होता है !!
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हम तो ठहरे फक्कड़ संत हमको अपने प्रोग्रामे का खुद पता नहीं होता एक रात पहले की हम सुबह किधर को जायेंगे !!
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हमने एक बार ठाना की हम जगन्नाथ पुरी जायेंगे सुबह ही हम उत्तरप्रदेश से पैदल ही निकलने वाले थे!!
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सुबह जैसे ही हम निकले थोड़ी दूर वो ही प्यारा सा बच्चा सिर्फ पीली पीताम्बरी पहने हमारे पास आया व् हाथ पकड़ कर बोला ये लो टिकेट….
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हमने भी आज जैसे सोच रक्खा था उसका हाथ कस के पकड़ लिया व् पुछा की तुम कौन हो और तुमको कैसे पता की हमको जाना है???
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तुम्हारे पास पैसे कहाँ से आये कौन तुमको भेजता है ???
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वो बच्चा मुस्कराया और बोला बाबा मे वो ही हूँ जिसको तुम दिन रात रिझाते हो अपने भावो मे
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बाबा तुम्हारे अंतर मे जो छिपा है जो पूरे विश्व को चलाता है मे वो ही हूँ !!
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बाबा तुमने अपना सब भार मुझ पर छोड़ रक्खा है तो क्या मे तुम्हारा योगक्षेम वहन नहीं करूंगा !!
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बाबा कहते हैं काफी मीठे शब्द व् आत्मा
परमात्मा की एकता का ज्ञान करवा के वो बच्चा चला गया !!
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हम भी बहुत दिन वहीँ उसी जगह बेसुध पड़े रहे !!
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आज हम 92 साल के हो गए और शरीर छूटने को है….
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कहीं जाना हो या कुछ किसी साथी संत को जरूरत हो वो बच्चा आज भी उसी रूप मे टिकेट या भोजन या दवाई लेकर आ जाता है !!
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ये भी देखो हम वृद्ध हो गए पर वो बच्चा अभी भी बच्चा ही है उसकी न उम्र बड़ी हुई है न शक्ल बदली है !!
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कुछ समझे वो हमारा सांवर दिलदार ही है !!
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जरूरत है तो उस प्रभु पर विश्वास करने की…
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इंसान सोचता है की मे ही अपनी ताकत दिमाग व् मेहनत से सब कुछ खरीद या पा सकता हूँ….
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आप अपनी सोच बदलिए कर्म करते जाईये फल उस पर छोड़ दीजिये !!
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परम पूज्य श्री प्रभु दत्त ब्रह्मचारी जी महाराज संकीर्तन लगातार करते करवाते थे !!
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उनका रोम रोम संकीर्तन मय हो चुका था !!
