. भगवान श्री राम लक्ष्मण और सीता जी पिता दशरथ जी की आज्ञा से वनवास जाने लगे। रास्ते में सभी तीर्थ गंगा, यमुना, गोमती नदियों में पितृ तर्पण कर वन में कंद मूल, फल फूल खाते हुए वन में अपना समय व्यतीत करने लगे। कार्तिक का महीना आया–एकम के दिन लक्ष्मण जी ने राम जी की आज्ञा से फल-फूल लाकर माँ सीता को दिए। माँ सीता ने चार पत्तल परोसी तब लक्ष्मण ने पूछा–‘भाभी माँ हम तीन हैं फिर चार में क्यों परोसा ?’ माँ सीता बोली–‘एक पत्तल गों माता की हैं।’ जब राम जी, लक्ष्मण जी, और गोमाता को पत्तल परोस दी तब राम जी ने पूछा–‘सीता जी आप ने खाना शुरू क्यों नहीं किया ?’ सीता माँ बोली–‘मेरे तो राम कथा सुनने का नियम हैं राम कथा सुनने के बाद ही में फल ग्रहण करूँगी।’ रामजी बोले–‘मुझे कथा सुना दो’, लक्ष्मण जी बोले–‘मुझे सुना दो’ तब माँ सीता बोली–‘औरत की बात औरत ही सुने–आप मेरे आप मेरे पति हो, आप मेरे देवर हो आपसे कैसे कहूँ ?’ लक्ष्मणजी ने सोचा इस जंगल में कौन औरत मिलेगी ? फिर लक्ष्मणजी ने अपनी माया से एक नगरी का निर्माण किया। वह नगरी में सब सुख सुविधाओं से युक्त थी। उस नगरी में सब चीजे सोने की थीं इसलिये नगरी का नाम सोन नगरी रखा। सभी नगर निवासियों को घमण्ड हो गया उस नगरी में कोई गरीब नहीं था। जब सीता जी कुँऐ पर पानी लेने गई और पनिहारिनों से राम-राम किया तो कोई नहीं बोली। थोड़ी देर में एक छोटी कन्या आई। सीता जी उससे राम-राम बोली और कहा कि बाई राम कथा सुनेगी क्या ?’ वह बोली–‘मेरे तो घर पर काम हैं।’ सीता जी ने कहा–‘मेरे पति राम और देवर लक्ष्मण भूखे हैं।’ लडकी बोली–‘मेरी माँ मेरा इन्तजार कर रही हैं।’ वह लडकी वहाँ से जानी लगी तब माँ सीता के क्रोध से सारी नगरी साधारण सी हो गई। जब लडकी घर गई तो माँ बोली–‘बाई ये क्या हुआ ?’ तब लडकी बोली–‘मेरे को तो पता नहीं हैं। वहाँ पर एक साध्वी बैठी थी मुझे राम कथा सुनने के लिए बोली पर मैं तो कथा नहीं सुनी। यदि उसने कुछ किया हो तो पता नहीं।’ तब उसकी माँ ने उसको वापस जाकर कथा सुनने को कहा। लडकी ने वापस जाकर कथा सुनने से मना कर दिया तब उसकी बहु बोली–‘आपकी आज्ञा हो तो मैं कहानी सुन कर आती हूँ।’ जब बहु कुँऐ पर गई तो पानी भरे और खाली करे। तब सीताजी ने कहा–‘आपके घर पर कुछ काम नहीं हैं क्या ?’ वह बोली माताजी मैं तो सारा काम करके आई हूँ।’ माँ सीता बोली–‘तू मुझे माँ कहकर बुलाई यदि तुझे समय हो तो क्या मेरी राम कहानी सुन लेगी ?’ वह बोली–‘माताजी कहानी सुनाओ मैं प्रेम से कहानी सुनूँगी।’ सीताजी ने कहा–‘हे बाई ! तूने मेरी मृत्युलोक में मदद करी भगवान तेरी स्वर्ग लोक में रक्षा करेंगे।’ राम कथा पूर्ण हुई तो सीता जी ने कहा–‘हे बाई ! तूने मेरी राम कथा सुनी, मेरी सहायता की राम जी लक्ष्मण को जिमाया हैं भगवान तेरी भी रक्षा करेंगे। तुझे स्वर्ग का सुख मिलेगा।’ सीता माता ने उपहार स्वरूप अपने गले का हार दे दिया। जब वह घर गयी तो उसके मटके सब सोने के हो गये। सासु जी ने कहा–‘ये सब तू कहाँ से लाई ?’ बहु बोली–‘मैंने माँ सीता से राम कथा सुनी ये इसी का फल हैं।’ सासुजी ने कहा–‘प्रतिदिन राम कथा सुन आना।’ बहु को रामकथा सुनते बहुत दिन हो गये तब उसने माँ सीता से पूछा–‘इसका उद्यापन विधि बतलाओ।’ तब सीता जी ने कहा–‘सात लड्डू लाना, एक नारियल लाना उसके सात भाग करना, एक भाग मन्दिर में चढ़ाना जिससे मन्दिर बनवाने जितना फल होता है। एक भाग सरोवर के किनारे गाड़ देना जिससे सरोवर खुदवाने जितना फल होता है। एक भाग भगवद्गीता पर चढ़ाना जिससे भगवद्गीता पाठ करवाने जितना फल होगा। एक भाग तुलसी माता पर चढ़ाना जिससे तुलसी विवाह जितना फल होगा। एक भाग कुँवारी कन्या को देना जिससे कन्या विवाह जितना फल होगा। एक भाग सूरज भगवान को चढ़ाना जिससे तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं को भोग लगाने जितना फल होगा।’ ‘ बहु ने विधि पूर्वक उद्यापन कर दिया। माता सीता के पास आकर बोली–‘माता मैंने तो विधिपूर्वक उद्यापन कर दिया।’ सीता जी ने कहा–‘अब सात दिन बाद वैकुण्ठ से विमान आएगा।’ सात दिन पूरे हुए विमान आया तो बहु ने कहा–‘सासुजी स्वर्ग से विमान आया है।’ सासुजी ने कहा–‘बहु तेरे ससुरजी को और मेरे को भी ले चल, तेरे माता पिता को ले चल सारे कुटुम्ब परिवार को ले चल, अड़ोसी-पड़ोसियों को ले चल।’ बहु ने सबको बिठा लिया पर विमान खाली था। थोड़ी देर में उसकी नन्द आई और देखते-ही-देखते विमान भर गया। तब बहु ने कहा–‘माँ सीता नन्द बाईसा को भी बिठा लो।’ माँ सीता ने कहा–‘इसने कभी कोई धर्म पुण्य नहीं किया।’ बहु ने कहा–‘बाईसा आप पहले कार्तिक मास में राम लक्ष्मण की कथा सुनना उसके बाद आप के लिए वैकुण्ठ से विमान आएगा।’ गाँव के सारे लोग एकत्र हो गये और पूछने लगे–‘बाई तूने ऐसा कौन-सा धर्म पुण्य किया, हमें भी बताओं ?’ बहु ने कहा–‘मैंने तो माता सीता से प्रतिदिन राम कथा सुनी और नियम से उद्यापन किया।’ तब समस्त ग्रामीण राम कथा सुनने की जिद्द करने लगे। तब बाई राम कथा कहने लगी और सब नर-नारी सुनने लगे, राम कथा सम्पूर्ण होते ही समस्त नगरी सोने की हो गई। बाई ने कहा–‘जो कोई राम कथा सुनेगा उसको मेरे समान ही फल मिलेगा।’ सब राम लक्ष्मण जी की जय जयकार करने लगे और विमान स्वर्ग में चला गया। सात स्वर्ग के दरवाजे खुल गये। पहले द्वार पर नाग देवता, समस्त देवी देवता पुष्प वर्षा करने लगे देवताओं ने पूछा–‘तूने क्या पुण्य किया ?’ बहु ने कहा–‘मैंने तो राम लक्ष्मण जानकी की कहानी सुनी।’ समस्त देवताओं ने कहा–‘वर मांग।’ तब वह बोली–‘मेरे पास सब सिद्धियाँ हैं। मुझे यह वर दो की जो भी श्रद्धा एवं भक्ति से राम कथा, राम लक्ष्मण जानकी की कहानी सुनेगा उसको मेरे समान ही फल मिले।’ सभी देवताओं ने पुष्प वर्षा करते हुए तथास्तु कहा। चारों और राम-राम की जय जयकार होने लगी। औ
. भगवान श्री राम लक्ष्मण और सीता जी पिता दशरथ जी की आज्ञा से वनवास जाने लगे। रास्ते में सभी तीर्थ गंगा, यमुना, गोमती नदियों में पितृ तर्पण कर वन में कंद मूल, फल फूल खाते हुए वन में अपना समय व्यतीत करने लगे। कार्तिक का महीना आया-एकम के दिन लक्ष्मण जी ने राम जी की आज्ञा से फल-फूल लाकर माँ सीता को दिए। माँ सीता ने चार पत्तल परोसी तब लक्ष्मण ने पूछा-‘भाभी माँ हम तीन हैं फिर चार में क्यों परोसा ?’ माँ सीता बोली-‘एक पत्तल गों माता की हैं।’ जब राम जी, लक्ष्मण जी, और गोमाता को पत्तल परोस दी तब राम जी ने पूछा-‘सीता जी आप ने खाना शुरू क्यों नहीं किया ?’ सीता माँ बोली-‘मेरे तो राम कथा सुनने का नियम हैं राम कथा सुनने के बाद ही में फल ग्रहण करूँगी।’ रामजी बोले-‘मुझे कथा सुना दो’, लक्ष्मण जी बोले-‘मुझे सुना दो’ तब माँ सीता बोली-‘औरत की बात औरत ही सुने-आप मेरे आप मेरे पति हो, आप मेरे देवर हो आपसे कैसे कहूँ ?’ लक्ष्मणजी ने सोचा इस जंगल में कौन औरत मिलेगी ? फिर लक्ष्मणजी ने अपनी माया से एक नगरी का निर्माण किया। वह नगरी में सब सुख सुविधाओं से युक्त थी। उस नगरी में सब चीजे सोने की थीं इसलिये नगरी का नाम सोन नगरी रखा। सभी नगर निवासियों को घमण्ड हो गया उस नगरी में कोई गरीब नहीं था। जब सीता जी कुँऐ पर पानी लेने गई और पनिहारिनों से राम-राम किया तो कोई नहीं बोली। थोड़ी देर में एक छोटी कन्या आई। सीता जी उससे राम-राम बोली और कहा कि बाई राम कथा सुनेगी क्या ?’ वह बोली-‘मेरे तो घर पर काम हैं।’ सीता जी ने कहा-‘मेरे पति राम और देवर लक्ष्मण भूखे हैं।’ लडकी बोली-‘मेरी माँ मेरा इन्तजार कर रही हैं।’ वह लडकी वहाँ से जानी लगी तब माँ सीता के क्रोध से सारी नगरी साधारण सी हो गई। जब लडकी घर गई तो माँ बोली-‘बाई ये क्या हुआ ?’ तब लडकी बोली-‘मेरे को तो पता नहीं हैं। वहाँ पर एक साध्वी बैठी थी मुझे राम कथा सुनने के लिए बोली पर मैं तो कथा नहीं सुनी। यदि उसने कुछ किया हो तो पता नहीं।’ तब उसकी माँ ने उसको वापस जाकर कथा सुनने को कहा। लडकी ने वापस जाकर कथा सुनने से मना कर दिया तब उसकी बहु बोली-‘आपकी आज्ञा हो तो मैं कहानी सुन कर आती हूँ।’ जब बहु कुँऐ पर गई तो पानी भरे और खाली करे। तब सीताजी ने कहा-‘आपके घर पर कुछ काम नहीं हैं क्या ?’ वह बोली माताजी मैं तो सारा काम करके आई हूँ।’ माँ सीता बोली-‘तू मुझे माँ कहकर बुलाई यदि तुझे समय हो तो क्या मेरी राम कहानी सुन लेगी ?’ वह बोली-‘माताजी कहानी सुनाओ मैं प्रेम से कहानी सुनूँगी।’ सीताजी ने कहा-‘हे बाई ! तूने मेरी मृत्युलोक में मदद करी भगवान तेरी स्वर्ग लोक में रक्षा करेंगे।’ राम कथा पूर्ण हुई तो सीता जी ने कहा-‘हे बाई ! तूने मेरी राम कथा सुनी, मेरी सहायता की राम जी लक्ष्मण को जिमाया हैं भगवान तेरी भी रक्षा करेंगे। तुझे स्वर्ग का सुख मिलेगा।’ सीता माता ने उपहार स्वरूप अपने गले का हार दे दिया। जब वह घर गयी तो उसके मटके सब सोने के हो गये। सासु जी ने कहा-‘ये सब तू कहाँ से लाई ?’ बहु बोली-‘मैंने माँ सीता से राम कथा सुनी ये इसी का फल हैं।’ सासुजी ने कहा-‘प्रतिदिन राम कथा सुन आना।’ बहु को रामकथा सुनते बहुत दिन हो गये तब उसने माँ सीता से पूछा-‘इसका उद्यापन विधि बतलाओ।’ तब सीता जी ने कहा-‘सात लड्डू लाना, एक नारियल लाना उसके सात भाग करना, एक भाग मन्दिर में चढ़ाना जिससे मन्दिर बनवाने जितना फल होता है। एक भाग सरोवर के किनारे गाड़ देना जिससे सरोवर खुदवाने जितना फल होता है। एक भाग भगवद्गीता पर चढ़ाना जिससे भगवद्गीता पाठ करवाने जितना फल होगा। एक भाग तुलसी माता पर चढ़ाना जिससे तुलसी विवाह जितना फल होगा। एक भाग कुँवारी कन्या को देना जिससे कन्या विवाह जितना फल होगा। एक भाग सूरज भगवान को चढ़ाना जिससे तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं को भोग लगाने जितना फल होगा।’ ‘ बहु ने विधि पूर्वक उद्यापन कर दिया। माता सीता के पास आकर बोली-‘माता मैंने तो विधिपूर्वक उद्यापन कर दिया।’ सीता जी ने कहा-‘अब सात दिन बाद वैकुण्ठ से विमान आएगा।’ सात दिन पूरे हुए विमान आया तो बहु ने कहा-‘सासुजी स्वर्ग से विमान आया है।’ सासुजी ने कहा-‘बहु तेरे ससुरजी को और मेरे को भी ले चल, तेरे माता पिता को ले चल सारे कुटुम्ब परिवार को ले चल, अड़ोसी-पड़ोसियों को ले चल।’ बहु ने सबको बिठा लिया पर विमान खाली था। थोड़ी देर में उसकी नन्द आई और देखते-ही-देखते विमान भर गया। तब बहु ने कहा-‘माँ सीता नन्द बाईसा को भी बिठा लो।’ माँ सीता ने कहा-‘इसने कभी कोई धर्म पुण्य नहीं किया।’ बहु ने कहा-‘बाईसा आप पहले कार्तिक मास में राम लक्ष्मण की कथा सुनना उसके बाद आप के लिए वैकुण्ठ से विमान आएगा।’ गाँव के सारे लोग एकत्र हो गये और पूछने लगे-‘बाई तूने ऐसा कौन-सा धर्म पुण्य किया, हमें भी बताओं ?’ बहु ने कहा-‘मैंने तो माता सीता से प्रतिदिन राम कथा सुनी और नियम से उद्यापन किया।’ तब समस्त ग्रामीण राम कथा सुनने की जिद्द करने लगे। तब बाई राम कथा कहने लगी और सब नर-नारी सुनने लगे, राम कथा सम्पूर्ण होते ही समस्त नगरी सोने की हो गई। बाई ने कहा-‘जो कोई राम कथा सुनेगा उसको मेरे समान ही फल मिलेगा।’ सब राम लक्ष्मण जी की जय जयकार करने लगे और विमान स्वर्ग में चला गया। सात स्वर्ग के दरवाजे खुल गये। पहले द्वार पर नाग देवता, समस्त देवी देवता पुष्प वर्षा करने लगे देवताओं ने पूछा-‘तूने क्या पुण्य किया ?’ बहु ने कहा-‘मैंने तो राम लक्ष्मण जानकी की कहानी सुनी।’ समस्त देवताओं ने कहा-‘वर मांग।’ तब वह बोली-‘मेरे पास सब सिद्धियाँ हैं। मुझे यह वर दो की जो भी श्रद्धा एवं भक्ति से राम कथा, राम लक्ष्मण जानकी की कहानी सुनेगा उसको मेरे समान ही फल मिले।’ सभी देवताओं ने पुष्प वर्षा करते हुए तथास्तु कहा। चारों और राम-राम की जय जयकार होने लगी। औ