श्री समर्थ रामदास स्वामी एक दिन अपने शिष्यों के साथ यात्रा पर निकले थे।
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दोपहर के समय एक बड़े कुएँ के निकट एक सघन वृक्ष की छाया में आसन लगाकर वे विश्राम करने लगे। उन्होंने अपने शिष्यो को निकट बुलाया।
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वृक्ष की एक शाखा कुए के ऊपर थी। उसकी ओर संकेत करते हुए पूछा – ‘क्या कोई इस शाखा को काट सकता है?’
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इस शाखा के पत्ते पतझड़ में गिरकर कुएँ का पानी दूषित करते होंगे।
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शाखा को उसके मूल स्थान से ही काटना पड़ेगा।’ वहाँ दूसरी कोई शाखा नहीं थी, जिस पर खड़े होकर कोई उस शाखा को काट सके।
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शाखा को मूल स्थान से काटने का मतलब था कि उसी शाखा पर खड़े होकर उसे काटा जाए। पैरों को टिकाने का कोई स्थान ही न था।
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निश्चय ही शाखा काटने वाला कुएँ में गिरेगा। और उसकी मृत्यु भी निश्चित थी।
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जब बहुत समय तक कोई बड़ा गुरुभाई सामने नहीं आया, तब श्री अम्बादास जी नाम के शिष्य सामने आकर प्रणाम् करके बोले…
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यदि आप आज्ञा दें तो गुरुदेव जरूर काट दूँगा। अम्बादास ने विनम्रता से कहा।
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गुरुदेव ने कहा, क्या तुम्हे यह ज्ञात है कि डाल काटने पर तुम गिर जाओगे।
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अम्बादास जी ने कहा, क्या गुरुदेव की आज्ञा पालन करके आजतक कोई गिरा है?
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समर्थ स्वामी प्रसन्न होकर बोले – तो कुल्हाड़ी लेकर वृक्ष पर चढ़ जाओ और उस शाखा को काट डालो।
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सभी शिष्य यह आज्ञा सुनकर श्री समर्थ के मुख की ओर निहारते, कभी अम्बादास की ओर निहारते, तो कभी उस शाखा की ओर।
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गुरु की आज्ञा पाते ही उसने अपनी धोती बाँधी और कुल्हाड़ी लेकर वृक्ष पर चढ़ गया। उसी शाखा पर खड़े होकर उसने कुल्हाड़ी चलानी शुरू कर दी।
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श्री रामदास स्वामी ने फिर परीक्षा लेने हेतु कहा ‘सोच समझ कर विचार करना, ऐसे डाल काटने में तो तू कुएँ में चला जाएगा।’
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परंतु इस बार भी वह नहीं डरा। उसने कहा-
‘गुरुदेव! आपकी महती कृपा मुझे संसार-सागर से पार उतारने में पूर्ण समर्थ है।’
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यह कूप किस गणना में है। मैं तो आपके आशीर्वाद से सदैव सुरक्षित रहा हूँ।
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‘यदि इतनी श्रद्धा है तो फिर अपना काम करो।’ श्री समर्थ ने आज्ञा प्रदान कर दी।
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शाखा आधी से कुछ ज्यादा ही कट पाई थी कि टूटकर अम्बादास के साथ कुएँ में जा गिरी।
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सभी शिष्य व्याकुल हो उठे, परंतु स्वामी समर्थ रामदास शांत बैठे रहे। उनमें जिसकी इतनी श्रद्धा है, उसका अमंगल संभव ही न था।
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अम्बादास जैसे ही कुँए में गिरा तो श्रीरामजी ने उनको धर लिया। अम्बादासजी को कुएँ में अपने इष्ट देव भगवान राम का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ।
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शिष्यों के प्रयास से अम्बादास को कुएँ से निकाला गया तो वह गुरुदेव के चरणों में लेट गया। आपने तो मेरा कल्याण कर दिया।
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‘कल्याण तो तेरी श्रद्धा ने कर दिया। तू अब कल्याण रूप हो गया’। श्री समर्थ रामदासजी ने कहा। तभी से अम्बादासजी का नाम कल्याण स्वामी हो गया।
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धन्य है महान गुरुभक्त श्री अम्बादासजी महाराज।
श्री समर्थ रामदास स्वामी एक दिन अपने शिष्यों के साथ यात्रा पर निकले थे। . दोपहर के समय एक बड़े कुएँ के निकट एक सघन वृक्ष की छाया में आसन लगाकर वे विश्राम करने लगे। उन्होंने अपने शिष्यो को निकट बुलाया। . वृक्ष की एक शाखा कुए के ऊपर थी। उसकी ओर संकेत करते हुए पूछा – ‘क्या कोई इस शाखा को काट सकता है?’ . इस शाखा के पत्ते पतझड़ में गिरकर कुएँ का पानी दूषित करते होंगे। . शाखा को उसके मूल स्थान से ही काटना पड़ेगा।’ वहाँ दूसरी कोई शाखा नहीं थी, जिस पर खड़े होकर कोई उस शाखा को काट सके। . शाखा को मूल स्थान से काटने का मतलब था कि उसी शाखा पर खड़े होकर उसे काटा जाए। पैरों को टिकाने का कोई स्थान ही न था। . निश्चय ही शाखा काटने वाला कुएँ में गिरेगा। और उसकी मृत्यु भी निश्चित थी। . जब बहुत समय तक कोई बड़ा गुरुभाई सामने नहीं आया, तब श्री अम्बादास जी नाम के शिष्य सामने आकर प्रणाम् करके बोले… . यदि आप आज्ञा दें तो गुरुदेव जरूर काट दूँगा। अम्बादास ने विनम्रता से कहा। . गुरुदेव ने कहा, क्या तुम्हे यह ज्ञात है कि डाल काटने पर तुम गिर जाओगे। . अम्बादास जी ने कहा, क्या गुरुदेव की आज्ञा पालन करके आजतक कोई गिरा है? . समर्थ स्वामी प्रसन्न होकर बोले – तो कुल्हाड़ी लेकर वृक्ष पर चढ़ जाओ और उस शाखा को काट डालो। . सभी शिष्य यह आज्ञा सुनकर श्री समर्थ के मुख की ओर निहारते, कभी अम्बादास की ओर निहारते, तो कभी उस शाखा की ओर। . गुरु की आज्ञा पाते ही उसने अपनी धोती बाँधी और कुल्हाड़ी लेकर वृक्ष पर चढ़ गया। उसी शाखा पर खड़े होकर उसने कुल्हाड़ी चलानी शुरू कर दी। . श्री रामदास स्वामी ने फिर परीक्षा लेने हेतु कहा ‘सोच समझ कर विचार करना, ऐसे डाल काटने में तो तू कुएँ में चला जाएगा।’ . परंतु इस बार भी वह नहीं डरा। उसने कहा- ‘गुरुदेव! आपकी महती कृपा मुझे संसार-सागर से पार उतारने में पूर्ण समर्थ है।’ . यह कूप किस गणना में है। मैं तो आपके आशीर्वाद से सदैव सुरक्षित रहा हूँ। . ‘यदि इतनी श्रद्धा है तो फिर अपना काम करो।’ श्री समर्थ ने आज्ञा प्रदान कर दी। . शाखा आधी से कुछ ज्यादा ही कट पाई थी कि टूटकर अम्बादास के साथ कुएँ में जा गिरी। . सभी शिष्य व्याकुल हो उठे, परंतु स्वामी समर्थ रामदास शांत बैठे रहे। उनमें जिसकी इतनी श्रद्धा है, उसका अमंगल संभव ही न था। . अम्बादास जैसे ही कुँए में गिरा तो श्रीरामजी ने उनको धर लिया। अम्बादासजी को कुएँ में अपने इष्ट देव भगवान राम का प्रत्यक्ष दर्शन हुआ। . शिष्यों के प्रयास से अम्बादास को कुएँ से निकाला गया तो वह गुरुदेव के चरणों में लेट गया। आपने तो मेरा कल्याण कर दिया। . ‘कल्याण तो तेरी श्रद्धा ने कर दिया। तू अब कल्याण रूप हो गया’। श्री समर्थ रामदासजी ने कहा। तभी से अम्बादासजी का नाम कल्याण स्वामी हो गया। . धन्य है महान गुरुभक्त श्री अम्बादासजी महाराज।