“एक भोगी राजा की दासी दीवान खंड की सफाई करते करते पलंग की सुंदरता देख दो मिनट के लिये बैठी फिर लेटने का मन हुआ तो लेट गयी दो मिनट नही बीता कि राजा अचानक आ गये देखा तो गुस्सा आ गया और चाबुक से मारने लगे राजा मारते गये दासी हंसती रही !
थककर राजा ने चाबुक फेंक दिया बोले दासी ! तू जीत गयी मैं हार गया पर ये तो बता तू हंसती क्यों है ? दासी बोली महाराज आपके पलंग में ‘जादू’ है दो मिनट लेटी तो दो सौ कोड़े लगे ! इस पलंग मेँ तो आप सालों से सोते आ रहे हैं पता नही आपको कितने कोडे लगेंगे ! ये सोच कर हंसी आ रही है “परवर दीगार सो गयी मैं ! भूल कर दी बड़ी ! छोटे से इस कसूर की सजा मिली बहुत बड़ी होगी ‘उसे’ कैसी सजा ये सोच हंसी आई बेफिक्र है वो जिसने जिंदगी सोने में है बिताई !” सुनते ही राजा का वैराग जागा और भोग से मुक्त हो कर विवेकमय जीवन जीने लगा हम भी तो न जाने कितने जन्म से ‘मोहनिद्रा’ मे सोते आ रहे है अभी तक नही जागे न जाने हमारा क्या हश्र होगा ?