सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ प्रेमगाथा- शिव-पार्वती का प्रेम…

माता पार्वती शिवजी की केवल अर्धांगिनी ही नहीं शिष्या भी बनीं। शिवजी से अनेक विषयों पर चर्चा करतीं।
एक दिन पार्वतीजी ने पूछा- प्रेम क्या है महादेव?
प्रेम का रहस्य क्या है?
इसका वास्तविक स्वरुप, इसका भविष्य क्या है?

शिवजी बोले- प्रेम क्या है, इसका रहस्य और स्वरुप यह तुम पूछ रही हो पार्वती?
प्रेम का रहस्य क्या है–तुमने ही प्रेम के अनेको रूप उजागर किये हैं !
तुमसे ही प्रेम की अनेक अनुभूतियाँ हुयी!
सती के रूप में जब अपना शरीर त्याग तुम चली गयी, मेरा जीवन, मेरा संसार, मेरा दायित्व, सब निरर्थक और निराधार हो गया।
मेरे नेत्रों से अश्रुओं की धाराएँ बहने लगी. ये ही तो प्रेम है पार्वती!

तुम्हारे अभाव में मेरे अधूरेपन की अति से इस सृष्टि का अपूर्ण हो जाना ये ही प्रेम है!
तुम्हारे और मेरे पुन: मिलन कराने हेतु इस समस्त ब्रह्माण्ड का हर संभव प्रयास करना हर संभव षड्यंत्र रचना, पार्वती रूप में पुन: जन्म लेकर मेरे एकाकीपन और मुझे मेरे वैराग्य से बाहर निकलने पर तुम्हारा विवश करना और मेरा विवश हो जाना यह प्रेम ही तो है !

जब जब अन्नपूर्णा के रूप में तुम मेरी क्षुधा को बिना प्रतिबन्धन के शांत करती हो या कामाख्या के रूप में मेरी कामना करती हो तो वह प्रेम की अनुभूति ही है!
तुम्हारे सौम्य और सहज गौरी रूप में हर प्रकार के अधिकार जब मैं तुम पर व्यक्त करता हूँ और तुम उन अधिकारों को मान्यता देती हो और मुझे विश्वास दिलाती रहती हो कि सिवाए मेरे इस संसार में तुम्हे किसी का वर्चस्व स्वीकार नहीं तो वह प्रेम की अनुभूति ही होती है।
जब तुम मनोरंजन हेतु मुझे चौसर में पराजित करती हो तो भी विजय मेरी ही होती है क्योंकि उस समय तुम्हारे मुख पर आई प्रसन्नता मुझे मेरे दायित्व की पूर्णता का आभास कराती है।
तुम्हें सुखी देखकर मुझे सुख का जो आभास होता है यही तो प्रेम है पार्वती !

जब तुमने अपने अस्त्र वहन कर शक्तिशाली दुर्गा रूप में अपने संरक्षण में मुझे सशक्त बनाया तो वह अनुभूति प्रेम की ही थी !
जब तुमने काली के रूप में संहार कर नृत्य करते हुए मेरे शरीर पर पाँव रखा तो तुम्हें अपनी भूल का आभास हुआ और तुम्हारी जिह्वा बाहर निकली, वही भी प्रेम था पार्वती !

जब तुम अपना सौंदर्यपूर्ण ललिता रूप जो कि अति भयंकर भैरवी रूप भी है, का दर्शन देती हो और जब मैं तुम्हारे अति-भाग्यशाली मंगला रूप जो कि उग्र चंडिका रूप भी है, का अनुभव करता हूँ, जब मैं तुम्हें पूर्णतया देखता हूँ बिना किसी प्रयत्न के, तो मैं अनुभव करता हूँ की मैं सत्य देखने में सक्षम हूँ !
जब तुम मुझे अपने सम्पूर्ण रूपों के दर्शन देती हो और मुझे आभास कराती हो की मैं तुम्हारा विश्वासपात्र हूँ !
इस तरह तुम मेरे लिए एक दर्पण बन जाती हो जिसमें झांक कर में स्वयं को देख पाता हूँ की मैं कौन हूँ !
तुम अपने दर्शन से साक्षात् कराती हो और मैं आनंदविभोर हो नाच उठता हूँ और नटराज कहलाता हूँ !
यही तो प्रेम है..✨

जब तुम बारम्बार स्वयं को मेरे प्रति समर्पित कर मुझे आभास कराती हो की मैं तुम्हारे योग्य हूँ, जब तुमने मेरी वास्तविकता को प्रतिबिम्भित कर मेरे दर्पण के रूपको धारण कर लिया वही तो प्रेम था पार्वती..

जय गौरी शंकर ~ जय उमा महेश्वर ~ जय शिव पार्वती ~ जय गोविंदा

🔱#हरहरमहादेव__ॐ

🙏🚩🙏

Mata Parvati not only became Shiva’s better half but also a disciple. Used to discuss many subjects with Shivji.
One day Parvatiji asked – What is love Mahadev?
What is the secret of love?
What is its real nature, what is its future?

Shivji said – What is love, its secret and form, you are asking Parvati?
What is the secret of love — You have revealed many forms of love!
I have experienced many feelings of love only because of you!
When you left your body as Sati, my life, my world, my responsibilities, everything became meaningless and baseless.
Streams of tears started flowing from my eyes. This is love Parvati!

In your absence this world becomes incomplete because of my incompleteness, this is love!
Making every possible effort of this entire universe to reunite you and me, making every possible conspiracy, forcing you to come out of my loneliness and me out of my disinterest by being reborn as Parvati and me being compelled, this is love. Is !

Whenever in the form of Annapurna you calm my appetite without restriction or wish me in the form of Kamakhya, it is a feeling of love!
When I express all kinds of rights on you in your gentle and spontaneous form, and you recognize those rights and keep on assuring me that you do not accept anyone’s supremacy in this world except me, then it is a feeling of love. it occurs.
Even when you defeat me in Chaucer for entertainment, the victory is mine because the happiness on your face at that time makes me realize the fulfillment of my duty.
The feeling of happiness that I feel seeing you happy, this is love Parvati!

When you armed me with your weapons and empowered me under your protection in the form of mighty Durga, that feeling was only of love!
When you put your foot on my body while dancing in the form of Kali, you realized your mistake and your tongue came out, that too was love Parvati!

When You appear in Your beautiful Lalita form which is also the most fierce Bhairavi form and when I experience Your most fortunate Mangala form which is also the fiery Chandika form, when I see You completely without any effort Well, then I feel that I am able to see the truth!
When you give me darshan of your complete forms and make me feel that I am your confidant!
In this way you become a mirror for me, in which I can peep and see myself who I am!
You make me face to face with your darshan and I am ecstatic and dance and am called Nataraj!
This is love..

When you repeatedly devoted yourself to me and made me feel that I am worthy of you, when you reflected my reality and took the form of my mirror, that was love Parvati..

Hail Gauri Shankar ~ Hail Uma Maheshwar ~ Hail Shiva Parvati ~ Hail Govinda

🔱#HarHarMahadev__Om

🙏🚩🙏

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