जीवन में शुभ और अशुभ विचारों एवं कर्मों के संस्कार भूमि में देर तक समाये रहते हैं। इसीलिए ऐसी भूमि में ही निवास करना चाहिए जहां शुभ विचारों और शुभ कार्यों का समावेश रहा हो। पढ़िए। भगवान श्री कृष्ण ने क्यों चुना था कुरुक्षेत्र की भूमि को महाभारत युद्ध के लिए?
कुरुक्षेत्र को महाभारत के युद्ध के लिए भगवान श्री कृष्ण ने ही चुना था, लेकिन उन्होंने कुरुक्षेत्र को ही महाभारत युद्ध के लिए क्यों चुना इसकी दास्तां भी अजब है।
शास्त्रों के मुताबिक महाभारत का युद्ध जब तय हो गया तो उसके लिये जमीन तलाश की जाने लगी। श्रीकृष्ण जी बढ़ी हुई असुरता से ग्रसित व्यक्तियों को उस युद्ध के द्वारा नष्ट कराना चाहते थे।
क्रूरता और द्वेष से संस्कारित भूमि चाहते थे श्री कृष्ण!
भगवान कृष्ण को डर था कि भाई-भाइयों के, गुरु शिष्यों के व संबंधी कुटुंबियों के इस युद्ध में एक दूसरे को मरते देखकर कहीं ये संधि न कर बैठें। इसलिए ऐसी भूमि युद्ध के लिए चुनने का फैसला लिया गया जहां क्रोध और द्वेष के संस्कार पर्याप्त मात्रा में हों। श्री कृष्ण ने कई दूत अनेकों दिशाओं में भेजे और उन्हें वहाँ की घटनाओं का जायजा लेने को कहा।
कुरूक्षेत्र ऐसी जगह मिली जहां छोटी छोटी बात पर भाई ने भाई को छूरा घोंपा।
कहते हैं कि एक दूत ने सुनाया कि कुरूक्षेत्र में बड़े भाई ने छोटे भाई को खेत की मेंड़ टूटने पर बहते हुए वर्षा के पानी को रोकने के लिए कहा। उसने साफ इनकार कर दिया। इस पर बड़ा भाई आग बबूला हो गया। उसने छोटे भाई को छुरे से गोद डाला और उसकी लाश को पैर पकड़कर घसीटता हुआ उस मेंड़ के पास ले गया और जहां से पानी निकल रहा था वहाँ उस लाश को पानी रोकने के लिए लगा दिया।
भूमि को उपयुक्त पाकर कुरूक्षेत्र में हुआ था युद्ध का ऐलान। इस सच्ची कहानी को सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने तय किया कि यही भूमि भाई-भाई के युद्ध के लिए उपयुक्त है।
श्रीकृष्ण आश्वस्त हो गए कि इस भूमि के संस्कार यहां पर भाइयों के युद्ध में एक दूसरे के प्रति प्रेम उत्पन्न नहीं होने देंगे। उन्होंने महाभारत का युद्ध कुरूक्षेत्र में करवाने का ऐलान किया था।
महाभारत की यह कथा हमें प्रेरित करती है कि हमे सदेव शुद्ध विचारों के साथ अपने जीवन का निर्वहन करना चाहिए। क्योंकि इससे हमारी आने वाली पीढ़ियां दूषित नही होगी।जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।