सुमिरन कर ले मना
सुमिरन कर ले मना,
छिन छिन राधारमणा।
हरि गुरु दोई अपना,
गहु इनकेई शरना।
यह जग मायका मना,
जाना होगा घर सजना।
जग में न कोई अपना,
इक दिन होगा तजना।
जग तन हित है बना,
जग का पिता है अपना।
जग तो है माया का बना,
इक हरि ही है अपना।
जग कोई तेरा न मना,
तन भी न तेरा अपना ।
साँचो सुख जग न मना,
सुखघन राधारमना।
तन सुख जग में मना,
जीव सुख हरि में घना।
जग सुख झूठा है मना,
हरि में ही सुख अपना।
जग अनुरागी जो मना,
वो दे बिनु मौत मरना।
हरि अनुरागी जो मना,
वो तो मिलवा दे सजना।
जग सुख चट्टू घुनघुना,
साँचो सुख हरि चरना।
जग सब स्वार्थी मना,
हरि ही हितैषी अपना।
जग तो विनाशी है मना,
जीव अविनाशी अपना।
जग सत्य नहिं सपना,
पै है अनित्य मना।
स्वर्ग भी है माया का बना,
वह भी विनाशी है मना।
जग सुख क्षणिक मना,
हरि सुख भूमा अपना।
जग जल में न घी मना,
श्रम ही है याको मथना।
तेरा स्वामी आत्मा मना,
वाको सुख नँदनंदना।
आत्मा को मानो ‘मैं’ मना,
मेरा मानो राधारमना।
आत्मा तो नित्य मना,
नाना तना चार दिना।
आत्मा का एक अपना,
सोई परमात्मा मना।
‘मैं’ को माने तन क्यों मना,
तन तो है माया का बना।
‘मैं’ तो तन माया का बना,
जग भी है माया का मना ।
‘मैं’ तो दिव्य नित्य है मना,
तन पंचभूत का बना।
‘मैं’ तो हरि का ही है मना,
याते हरि ही है अपना।
‘मैं’ तो अंश श्याम का मना,
याते श्याम ही है अपना।
झूठा जग नाता सपना,
साँचो नाता हरि से मना।
जग नाता क्षणिक मना,
हरि नाता तो सनातन।
चारों नाता हरि से मना,
स्वामी सखा सुत सजना।
नाता जीव नंदनंदना,
भेदाभेद दोनों है मना।
जीवन लक्ष्य भक्ति है मना,
मन की है शुद्धि करना।
हरि सब उर है मना,
यह मानु श्रुति वचना।
बाहर ढूँढ़ते क्यों मना,
उर में है तेरा सजना।
तेरे मध्य बैठा सजना,
मानो यह श्रुति वचना।
कर्म ज्ञान योग से मना,
मिले नहिं कभू सजना।
योग ज्ञान कलि में मना,
नाक से चबाना ज्यों चना।
योगी ज्ञानी कोरी कल्पना,
प्रेमी पावे नंदनंदना।
अन्य पथ धोखा दे मना,
प्रेम से ही मिले सजना।
तजु मनमानी रे मना,
मानु श्रुति गुरु वचना।
तजि छल छन्द मना,
कामना रहित भजना।
तूने ही बिगारा है मना,
तू ही अब बिगरी बना।
तेरे हाथ सब है मना,
हरि गुरु गहु शरना।
यौवन तन औ धना,
चाँदनी है चार दिना।
जोरि जोरि धरे क्यों धना,
तन भी न साथी अपना।
सुर मांगे मनुज तना,
बार बार नहीं मिलना।
तन तो है माटी का बना,
माटी में ही मिलेगा मना।
जाने कब छिने ये तना,
याते हरि भूलो न क्षना।
सब कुछ होगा तजना,
सँग जाय हरि भजना।
शिशु बनि करु क्रंदना,
भज्यो आवे नंदनंदना।
शिशु बनि रो रो के मना,
प्रेम माँगना है साधना।
दे दे आँसू मूल्य मना,
ले ले पिय प्रेमधना।
माँगो वर एक मना,
दे दो हरि प्रेमधना।
प्रेम में न नेम मना,
आँसू दै के ले ले सजना।
नव विधि हरि भजना,
सुमिरन प्रमुख मना।
भाव अनन्य बना,
नित सुमिरन करना।
मन शुद्ध कर तू मना,
गुरु देगा दिव्य बस
दिव्य इन्द्रियों से मना,
मिले तेरा दिव्य सजना।
प्रेम में न नेम मना,
भुक्ति मुक्ति कामना मना।
शुचि या अशुचि मना,
हरि में ही मन रखना।
रीझो खीझो हरि ते मना,
पै कछु नहीं माँगना।
जहँ आओ जाओ या मना,
उर हरि गुरु रखना।
मन भाई छवि रचना,
मन भाई सेवा करना।
निज सुख तजि दे मना,
श्याम सुख हित भजना।
प्रेम है न साध्य मना,
मिले प्रेम कृपा सजना।
देखो प्रेम गोपीजना,
विधि माँगे रज चरना।
गोपी पदरज कामना,
ऊधो माँगे लतन तना।
जीव सुख चाहे जो मना,
सोई तो है नंदनंदना।
हरि ते न कभु डरना,
उन्हें अपना ही मानना।
हरि तो कृपालु अपना,
यह हरि श्रुति वचना।।
राधे राधे
remember and refuse
सुमिरन कर ले मना, छिन छिन राधारमणा। हरि गुरु दोई अपना, गहु इनकेई शरना। यह जग मायका मना, जाना होगा घर सजना। जग में न कोई अपना, इक दिन होगा तजना। जग तन हित है बना, जग का पिता है अपना। जग तो है माया का बना, इक हरि ही है अपना। जग कोई तेरा न मना, तन भी न तेरा अपना । साँचो सुख जग न मना, सुखघन राधारमना। तन सुख जग में मना, जीव सुख हरि में घना। जग सुख झूठा है मना, हरि में ही सुख अपना। जग अनुरागी जो मना, वो दे बिनु मौत मरना। हरि अनुरागी जो मना, वो तो मिलवा दे सजना। जग सुख चट्टू घुनघुना, साँचो सुख हरि चरना। जग सब स्वार्थी मना, हरि ही हितैषी अपना। जग तो विनाशी है मना, जीव अविनाशी अपना। जग सत्य नहिं सपना, पै है अनित्य मना। स्वर्ग भी है माया का बना, वह भी विनाशी है मना। जग सुख क्षणिक मना, हरि सुख भूमा अपना। जग जल में न घी मना, श्रम ही है याको मथना। तेरा स्वामी आत्मा मना, वाको सुख नँदनंदना। आत्मा को मानो ‘मैं’ मना, मेरा मानो राधारमना। आत्मा तो नित्य मना, नाना तना चार दिना। आत्मा का एक अपना, सोई परमात्मा मना। ‘मैं’ को माने तन क्यों मना, तन तो है माया का बना। ‘मैं’ तो तन माया का बना, जग भी है माया का मना । ‘मैं’ तो दिव्य नित्य है मना, तन पंचभूत का बना। ‘मैं’ तो हरि का ही है मना, याते हरि ही है अपना। ‘मैं’ तो अंश श्याम का मना, याते श्याम ही है अपना। झूठा जग नाता सपना, साँचो नाता हरि से मना। जग नाता क्षणिक मना, हरि नाता तो सनातन। चारों नाता हरि से मना, स्वामी सखा सुत सजना। नाता जीव नंदनंदना, भेदाभेद दोनों है मना। जीवन लक्ष्य भक्ति है मना, मन की है शुद्धि करना। हरि सब उर है मना, यह मानु श्रुति वचना। बाहर ढूँढ़ते क्यों मना, उर में है तेरा सजना। तेरे मध्य बैठा सजना, मानो यह श्रुति वचना। कर्म ज्ञान योग से मना, मिले नहिं कभू सजना। योग ज्ञान कलि में मना, नाक से चबाना ज्यों चना। योगी ज्ञानी कोरी कल्पना, प्रेमी पावे नंदनंदना। अन्य पथ धोखा दे मना, प्रेम से ही मिले सजना। तजु मनमानी रे मना, मानु श्रुति गुरु वचना। तजि छल छन्द मना, कामना रहित भजना। तूने ही बिगारा है मना, तू ही अब बिगरी बना। तेरे हाथ सब है मना, हरि गुरु गहु शरना। यौवन तन औ धना, चाँदनी है चार दिना। जोरि जोरि धरे क्यों धना, तन भी न साथी अपना। सुर मांगे मनुज तना, बार बार नहीं मिलना। तन तो है माटी का बना, माटी में ही मिलेगा मना। जाने कब छिने ये तना, याते हरि भूलो न क्षना। सब कुछ होगा तजना, सँग जाय हरि भजना। शिशु बनि करु क्रंदना, भज्यो आवे नंदनंदना। शिशु बनि रो रो के मना, प्रेम माँगना है साधना। दे दे आँसू मूल्य मना, ले ले पिय प्रेमधना। माँगो वर एक मना, दे दो हरि प्रेमधना। प्रेम में न नेम मना, आँसू दै के ले ले सजना। नव विधि हरि भजना, सुमिरन प्रमुख मना। भाव अनन्य बना, नित सुमिरन करना। मन शुद्ध कर तू मना, गुरु देगा दिव्य बस दिव्य इन्द्रियों से मना, मिले तेरा दिव्य सजना। प्रेम में न नेम मना, भुक्ति मुक्ति कामना मना। शुचि या अशुचि मना, हरि में ही मन रखना। रीझो खीझो हरि ते मना, पै कछु नहीं माँगना। जहँ आओ जाओ या मना, उर हरि गुरु रखना। मन भाई छवि रचना, मन भाई सेवा करना। निज सुख तजि दे मना, श्याम सुख हित भजना। प्रेम है न साध्य मना, मिले प्रेम कृपा सजना। देखो प्रेम गोपीजना, विधि माँगे रज चरना। गोपी पदरज कामना, ऊधो माँगे लतन तना। जीव सुख चाहे जो मना, सोई तो है नंदनंदना। हरि ते न कभु डरना, उन्हें अपना ही मानना। हरि तो कृपालु अपना, यह हरि श्रुति वचना।।
Radhe Radhe