।। नमो राघवाय ।।
सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा।
गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा।।
अगुन अरूप अलख अज जोई।
भगत प्रेम बस सगुन सो होई।।
जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें।
जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें।।
जासु नाम भ्रम तिमिर पतंगा।
तेहि किमि कहिअ बिमोह प्रसंगा।।
राम सच्चिदानंद दिनेसा।
नहिं तहँ मोह निसा लवलेसा।।
सहज प्रकासरूप भगवाना।
नहिं तहँ पुनि बिग्यान बिहाना।।
हरष बिषाद ग्यान अग्याना।
जीव धर्म अहमिति अभिमाना।।
राम ब्रह्म ब्यापक जग जाना।
परमानंद परेस पुराना।।
(श्रीरामचरितमानस- १ / ११५ / १ – ८)
सगुण और निर्गुण में कुछ भी भेद नहीं है- मुनि, पुराण, पण्डित और वेद सभी ऐसा कहते हैं।
जो निर्गुण, अरूप (निराकार), अलख (अव्यक्त) और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण हो जाता है।
जो निर्गुण है वही सगुण कैसे है? जैसे जल और ओले में भेद नहीं। (दोनों जल ही हैं, ऐसे ही निर्गुण और सगुण एक ही हैं।)
जिसका नाम भ्रम रूपी अंधकार को मिटाने के लिए सूर्य है, उसके लिए मोह का प्रसंग भी कैसे कहा जा सकता है ?
श्री रामचन्द्रजी सच्चिदानन्दस्वरूप सूर्य हैं। वहाँ मोह रूपी रात्रि का लवलेश भी नहीं है।
वे स्वभाव से ही प्रकाश रूप और (षडैश्वर्ययुक्त) भगवान है, वहाँ तो विज्ञान रूपी प्रातःकाल भी नहीं होता। (अज्ञान रूपी रात्रि हो तब तो विज्ञान रूपी प्रातःकाल हो, भगवान तो नित्य ज्ञान स्वरूप हैं।)
हर्ष, शोक, ज्ञान, अज्ञान, अहंता और अभिमान- ये सब जीव के धर्म हैं।
श्रीरामचन्द्रजी तो व्यापक ब्रह्म, परमानन्दस्वरूप, परात्पर प्रभु और पुराण पुरुष हैं। इस बात को सारा जगत जानता है।
।। श्री रामाय नमः ।।