इस शरीर को पालते हुए भी अ प्राणी तु भगवान का बन जब तु चलता है तब अन्तर्मन मे धारण करले परमात्मा चल रहे हैं जब तु भोजन करता है तब दिल में भाव हो भगवान नाथ श्री हरी भोग लगाने आऐ है सन्त महात्मा आए हैं मानसिक रूप से प्रभु प्राण नाथ को भोग लगा रहा हूँ। दिल मे प्रेम की सरीता उमङ रही है अ प्राणी जब तु जल को ग्रहण करता है तब मानसिक रूप से प्रार्थना हो हे नाथ पृथ्वी पर दीन दुखियों तृप्त हो कोई प्यासा न रहे हे नाथ मानसिक रूप से वे तृप्त हो ऐसे प्रभु प्राण नाथ से आत्मिक प्रार्थना करते रहे जय श्री राम
अनीता गर्ग
Even while maintaining this body, you become a creature of God, when you walk, then God is walking by imbibing in your heart, when you eat food, then there is a feeling in the heart, Lord Nath has come to offer green food. I am offering Bhog to Lord Pran Nath. The river of love is rising in the heart, a creature, when you take water, then pray mentally, O Nath, the poor on earth are satisfied, no one is thirsty, O Nath, mentally they are satisfied, spiritual prayer to such Lord Pran Nath Keep doing Jai Shri Ram Anita Garg