हम सत्संग में परमात्मा को अनेकों भावों से मनाते हैं। परमात्मा की विनती करते हुए कहते हैं कि हे परमात्मा तुम मेरे स्वामी हो। मै तुम्हारे चरणों की दासी हूं ।सांस सांस से सिमर लुगी। दिल मे बिठा लुगी। नैनो में समा लुगी। तुम्हारी ज्योति मेरे रोम रोम में समाई है। तुम ही मेरे राम हो तुम मेरे कृष्ण हो। हे भगवान् तुमने अनेक रूप धारण कर रखे हैं। तुम सत्य स्वरूप हो जिसका न आदि हैं न अन्त है। तुम प्रकाश का पूंज मेरे परम पिता परमात्मा हो। तुम मात पिता बन्धु और सखा हो। मेरे स्वामी मेरे हाथ को थामे रखना। मुझे केवल आस तुम्हारी। तुम मेरे प्राण अधार हो। ये सब भाव हमारे अन्दर प्रेम, भक्ति, विनय और शान्ति स्थापित करते हैं। परमात्मा की विनती से हमारा हृदय आनंद से भर जाता है।
