भरत जी जब भरद्वाज मुनि के आश्रम में पधारे तो मुनि जी ने भरत जी और उनके समाज के स्वागत सत्कार में औलौकि भोग सामग्रियों की रचना रच डाली पर भरद्वाज मुनि द्वारा रची गईं भोग सामग्रियों का उपभोग भरत जी ने मन से भी नहीं किया क्योंकि भरत जी उस दिन से हीं तपस्वियों का जीवन जीना शुरू कर दिया था जिस दिन उन्हें प्रभु श्रीराम के वनगमन की सूचना मिली। भरत जी भाई विरह में इतना विषादयुक्त थे कि उनका विचार था कि प्रभु वन में कंद मूल फल हीं आहार ले रहे हैं फिर मैं कैसे राजसी भोग सामग्रियों का उपभोग करूँ ? जब प्रभु श्रीराम भरद्वाज जी के आश्रम में पधारे थे तब मुनि जी ने प्रभु को कंद मूल फल हीं अर्पित किए थे क्योंकि प्रभु तपस्वी वेष में थे पर उन्होंने भरत जी के लिए अपने तपबल से भोग सामग्रियों का ऐसा वैभव रच डाला जिसे देखकर ब्रह्मा भी चकित हो गए। मुनि जी ने भरत जी के लिए ऐसा इसलिए किया कि भरत जी घोषित राजा थे और जैसा देवता वैसी पूजा।
मुनिहि सोच पाहुन बड़ नेवता। तसि पूजा चाहिय जस देवता।।
मुनि जी ने जो वैभव रचा उसका वर्णन नहीं किया जा सकता जिसे देख कर ज्ञानी लोग भी वैराग्य भूल जाते हैं। आसन, सेज, सुन्दर वस्त्र, वन, बागीचे, सुगंधित फूल, अनेकों प्रकार के निर्मल जलाशय, अमृत के समान खाने पीने के पदार्थ, माला, चंदन, स्त्री आदिक भोग, कामधेनु, कल्पवृक्ष और अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों पदार्थ सब कुछ वहाँ सुलभ था। इन भोग सामग्रियों को देख कर भरत जी और उनका समाज हर्ष और विषाद के वश में हो गए। हर्ष तो मुनि जी के तप प्रभाव को देख कर हुआ और विषाद इस बात का हुआ कि श्रीराम के वियोग में नियम व्रत से रहने वाले हमलोग भोग विलास में क्यों आकर फँस गए ?
संपति चकई भरतु चक मुनि आयस खेलवार।
तेहि निसि आश्रम पिंजराँ राखे भा भिनुसार ।।
रात्रि में चकवा चकवी का वियोग हो जाता है और वे नदी के दो पाटों पर अलग अलग हो जाते हैं। किसी बहेलिये ने दोनों को पकड़ कर पिंजरे में कैद कर दिया और दोनों रात्रि में पिंजरे में एक साथ होते हुए भी संयोग नहीं हुआ। दोनों रात भर पिंजरे के दो किनारे पर अलग अलग रहे। इसी प्रकार भरत जी और उनका समाज अपने अपने कमरों में रात भर भोग सामग्रियों के साथ रहते हुए भी मन से भी उनका स्पर्श नहीं किया।
When Bharat ji came to the ashram of Bhardwaj Muni, Muni ji composed the material for spiritual enjoyment to welcome Bharat ji and his society, but Bharat ji did not consume the food items prepared by Bhardwaj Muni even with his heart because Bharat ji He started living the life of ascetics from the day he got the news of Lord Shri Ram’s departure from the forest. Bharat ji was so sad in his brother’s separation that he thought that the Lord is eating only tubers and fruits in the forest, then how can I consume the royal food items? When Lord Shri Ram had come to Bharadwaj ji’s ashram, the sage had offered only tubers and fruits to the Lord because the Lord was in the guise of an ascetic, but with the power of his penance, he created such a splendor of food items for Bharat ji that even Brahma was astonished to see it. Have become. Muni ji did this for Bharat ji because Bharat ji was the declared king and worshiped as per the deity.
The sage thinks that the guest is a big invitation. The same god should be worshipped.
The splendor created by Muni ji cannot be described, seeing which even wise people forget renunciation. Seats, beds, beautiful clothes, forests, gardens, fragrant flowers, many types of pure water bodies, food items like nectar, garlands, sandalwood, women etc. enjoyment, Kamdhenu, Kalpavriksha and all the four things like Artha, Dharma, Kama, Moksha. Something was available there. Seeing these food items, Bharat ji and his society were overcome with joy and sadness. There was joy after seeing the effect of the sage’s penance and there was sadness because of the separation from Shri Ram, why did we, who were following the rules and fasts, get trapped in pleasures and luxury?
Sampati Chakai Bharatu Chak Muni Ayse Khelwar.
That’s why the ashram keeps the cages as per the requirement.
At night Chakwa Chakvi gets separated and they separate on two banks of the river. Some fowler caught both of them and imprisoned them in a cage and despite both being in the cage together at night, there was no coincidence. Both remained separate on two sides of the cage throughout the night. Similarly, Bharat ji and his community stayed in their rooms all night with the food items, but did not touch them even with their mind.