भरत  तुम्हारे जैसा कोई पुण्यात्मा नहीं


तीन काल त्रिभुवन मत मोरे।
पुण्यसि लोक तात तर तोरे।। और भगवान ने कहा कि भरत! तुम्हारी महिमा तो इतनी है कि तुम कुटिल हो नहीं, फिर भी कोई तुम्हें धोखे से कुटिल समझ ले।

उर आनत तुम पर कुटिलाई।
लोक जाइ परलोक नसाई ।। उसका लोक नष्ट होगा, परलोक नष्ट होगा, भरत! जो तुम्हें कुटिल समझेगा। और जब भगवान राम ने यह बात कही, सभा में बैठे हुए लोगों की आँखों में आँसू आ गये और दो बड़े दुखी थे। एक तो निषादराज और दूसरे श्री लक्ष्मण । निषादराज ने भी कहा था

जो पै जिय न होत कुटिलाई।
तौ कत लीन्ह साथ कटकाई।। निषादराज ने भी कहा था कि भरत जी के मन में अगर कुटिलता नहीं होती, तो ये सेना लेकर क्यों आते? और लक्ष्मण जी ने भी यही कहा

कुटिल कुवंधु कुअवसर ताकी।
जानि राम बनवास एकाकी ।। लक्ष्मण जी ने भरत जी को कुटिल कहा, निषादराज ने भी श्री भरत जी को कुटिल समझा। आज इन दोनों के आँखों से आँसू बहने लगे। ब्रह्मवाक्य है, भगवान ने कह दिया -- लोक जाइ परलोक नसाई। वशिष्ठ जी ने राम जी से कहा-- यह संत का अपराध हो गया, भागवत अपराध हो गया। धोखे से कुटिल समझ लिया, तो इन लोगों का लोक परलोक नष्ट हो गया, तो बनेगा कैसे? जिन्होंने भरत जी को कुटिल समझ लिया, केवल लक्ष्मण और निषादराज ही नहीं, एक भरत कर सम्मत कहहीं। तो इनके लोक परलोक नष्ट हो गये, तो बनेंगे कैसे? मानो गुरुदेव वशिष्ठ यह पूछना चाहते हैं राम जी से। पर राम जी ने गुरुदेव से तो नहीं, भरत जी से कहा-- भरत! भरत जी ने कहा-- हाँ प्रभु! गुरुदेव जो कह रहे हैं, मैं भी वही पूछ रहा हूँ । भगवान ने कहा-- तो सुनो, एक ही उपाय है, केवल एक उपाय।

मिटिहहिं पाप प्रपंच सब
अखिल अमंगल भार। और जो लोक परलोक नष्ट हो गये हैं?

लोक सुजस परलोक सुख , भगवान आपका नाम लेने से? भगवान बोले मेरा नाम नहीं लेने से, भरत! तुम्हारा नाम लेने से। सुमिरत नाम तुम्हार।। जो तुम्हारा नाम स्मरण करेंगे, जो तुम्हारा भक्तिपूर्वक स्मरण करेंगे, उनका लोक और परलोक दोनों बन जायगा। भगवान कहते हैं अवधवासियों से कि देखो! बनवास मैं भी आया और भरत भी तुमको ले के आये, लेकिन मैं रथ पर बैठा था तुम लोग पैदल-पैदल चल रहे थे, पर भरत पैदल चल कर आये हैं तुम्हें रथ में बिठाकर लाये हैं। ऐसे महात्मा की महिमा मुझसे अधिक है, और फिर एक बात और है ।क्या? अयोध्या में जो परिस्थिति बिगड़ी, उसको भगवान नहीं दूर कर सके, भगवान दूर हो गये, पर बिगड़ी हुई परिस्थिति को सुधारने में भगवान सहयोग नहीं कर सके। किसी ने पूछा कि प्रभु! आप जिस नगरी में रहते हैं, उस नगरी में ऐसी स्थिति हो गई, आप क्यों नहीं सुधार सके? भगवान बोले हम तो सबके हृदय में रहते हैं।

सातवं सम मोहिमय जग देखा। हम अयोध्या में ही नहीं रहते हैं, हम अयोध्या में भी रहते हैं, हम सबके भीतर रहते हैं, लेकिन आप देखो कैसी विडम्बना है कि जिस अयोध्या में हम रहते हैं, उसी अयोध्या में मंथरा भी रहती है और उसी अयोध्या में श्री भरत रहते हैं। उसी अयोध्या में कैकेयी माता हैं, उसी अयोध्या में कौशल्या माता हैं। यह क्यों, भगवान कहाँ रहते हैं? सबके हृदय में- -

सबके उर अंतर बसहु
जानहु भाव कुभाव ।। भगवान सबके हृदय में रहते हैं। हृद्दसे अर्जुन तिष्ठति, भगवान श्री कृष्ण भी यही कहते हैं कि हृदय देश में मैं सबके भीतर रहता हूँ । कितनी अद्भुत बात है, जिस उर में भगवान रहते हैं, उसी उर में

सुमति कुमति सबके उर रहहीं।
नाथ पुरान निगम अस कहहीं।। सुमति भी और कुमति भी। तो यह अयोध्या में कुमति कौन सी आ गई। गोस्वामी जी कहते हैं--

काई कुमति कैकेयी केरी।
परी जासु फल बिपति घनेरी।। कुमति भी रहती है उसी हृदय में, और सुमति भी रहती है । भगवान कहते हैं-- सातवं सम मोहिमय जग देखा--- सबमें मुझे देखना, पर संत की महिमा क्या है? भगवान ने कहा कि अयोध्या में इतनी परिस्थिति बिगड़ी। कुमति के कारण बिपति आई, भगवान बोले मैं भी बनवासी हो गया।  तो सुधारा क्यों नहीं? भगवान ने कहा सुधारना परमात्मा का काम नहीं है, सुधारना तो महात्मा का काम है। मैं हूँ तो सबके हृदय में, लेकिन कुमति के कारण व्यक्ति मुझे बनवास दे दे, तो उस बनवासी भगवान को फिर से हृदय की अयोध्या में लौटाकर प्रतिष्ठित कर देना, प्रकट करके रामराज्य जीवन में बना देना संत का ही काम है । इसीलिए- -

मोहि ते अधिक संत करि लेखा। मुझसे अधिक संत को समझना, मैं हूँ तो सबके हृदय में।



Don’t die three times Tribhuvan. Punyasi Lok Tat Tar Tore. And God said Bharat! Your glory is such that you are not crooked, yet someone may mistakenly consider you crooked.

Your inclination turned against you. People go to the afterlife. His world will be destroyed, the next world will be destroyed, Bharat! Who will consider you crooked. And when Lord Rama said this, the people sitting in the assembly had tears in their eyes and two were very sad. One is Nishadraj and the other is Shri Lakshman. Nishadraj had also said.

The one who doesn’t live is crooked. So you cut along the line. Nishadraj had also said that if Bharat ji had no evil in his mind, then why would he have brought the army? And Laxman ji also said the same

Crooked Kuvandhu Kuvasar Taki. Jani Ram, exile is lonely. Lakshman ji called Bharat ji crooked, Nishadraj also considered Shri Bharat ji crooked. Today tears started flowing from both of their eyes. It is a Brahmavakya, God has said – Lok jaai parlok nasai. Vashishtha ji said to Ram ji – This has become a crime of a saint, a crime of Bhagwat. If they are considered crooked by deception, then the afterlife of these people is destroyed, then how will it be rebuilt? Those who thought that Bharat ji was crooked, not only Lakshman and Nishadraj, but one Bharat also said that he agreed. So if their world and the afterlife are destroyed, then how will they be rebuilt? It seems as if Gurudev Vashishtha wants to ask this from Ram ji. But Ram ji said not to Gurudev but to Bharat ji – Bharat! Bharat ji said– Yes Lord! Whatever Gurudev is saying, I am also asking the same. God said– So listen, there is only one solution, only one solution.

all sins are erased All inauspicious burden. And the worlds that have been destroyed?

Lok sujas hereafter happiness, Lord by taking your name? God said, don’t take my name, Bharat! By taking your name. Your name is Sumirat. Those who will remember your name, who will remember you with devotion, both this world and the next world will be transformed for them. God says to the people of Awadh that look! I also came to exile and Bharat also brought you, but I was sitting in the chariot, you people were walking on foot, but Bharat has come on foot and has brought you sitting in the chariot. The glory of such a Mahatma is greater than mine, and then there is one more thing. What? God could not resolve the situation that worsened in Ayodhya, God went away, but God could not help in improving the situation. Someone asked, Lord! Such was the situation in the city where you live, why couldn’t you improve it? God said, we live in everyone’s heart.

Seventh time saw the magical world. We do not live only in Ayodhya, we also live in Ayodhya, we live within everyone, but you see what an irony it is that in the same Ayodhya where we live, Manthara also lives and in the same Ayodhya, Shri Bharat lives. . Kaikeyi Mata is in the same Ayodhya, Kaushalya Mata is in the same Ayodhya. Why this, where does God live? In everyone’s heart –

everyone’s ur difference is there I know the feeling of evil. God lives in everyone’s heart. Hriddse Arjun Tishthati, Lord Shri Krishna also says that in the heart country, I live within everyone. How wonderful it is, in the same urn in which God lives.

Sumati Kumati was the mother of all. Nath Puran Nigam does not say this. Sumati and Kumati too. So which Kumati has come to Ayodhya? Goswami ji says–

Kai Kumati Kaikeyi Kerry. Fairy spy fruit bipati ghaneri. Kumati also lives in the same heart, and Sumati also lives in the same heart. God says– Seventh Sam Mohimaya Jag Dekha— Seeing me in everyone, but what is the glory of a saint? God said that the situation in Ayodhya had deteriorated so much. Due to Kumati, disaster came, God said, I too became a resident of the forest. So why not improve it? God said that it is not God’s job to improve, it is Mahatma’s job to improve. I am present in everyone’s heart, but if a person sends me to exile due to Kumati, then it is the job of a saint to return that exiled God back to the Ayodhya of the heart and establish him, to reveal him and make Ramrajya in his life. That’s why- –

More saints than Mohi. Consider yourself a saint more than me, I am in everyone’s heart.

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