ऋषि अगस्त्य के जन्म की कथा
एक बार एक समय पर मित्र (सूर्य) और वरुण (बारिश का देवता) अप्सरा उर्वशी के प्रेम में पड़ गए। अप्सरा उर्वशी को देखते ही उनका वीर्य स्राव हो गया, जिसे एक घड़े में संरक्षित कर लिया गया। इस में से दो महान ऋषियों का जन्म हुआ – ऋषि अगस्त्य और ऋषि वशिष्ठ। इन दोनों को एक साथ मैत्र वरुण भी कहा जाता है। चूंकि ऋषि अगस्त्य का जन्म एक घड़े से हुआ था, इस कारण इनको कुंभ संम्भव या कुंभ मुनि नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि कलियुग के शुरू होने से लगभग 4000 वर्ष पूर्व उनका अस्तित्व था और मान्यता यहां तक है कि वे तमिलनाडु में आज भी अपने भक्तों द्वारा वहां जीवित हैं।
ऋषि अगस्त्य के विवाह की कथा
एक दिन ऋषि अगस्त्य जंगल में यात्रा कर रहे थे और उनके पितर देवता (पितर) जंगल के पेड़ों पर उलटे लटके हुए थे। जब उन्होंने उनसे पूछा कि इस प्रकार क्यों लटके हुए हैं? ऐसा दुर्भाग्य उनके पास क्यों आया? तो उनके पितर देवता (पितर) ने उत्तर दिया “चूंकि ऋषि अगस्त्य का कोई पुत्र नहीं है, इसी कारण वह इस भयानक कष्ट भोगने के लिए मजबूर हैं।” यह सुनकर ऋषि अगस्त्य ने उनसे वादा किया कि वह जल्द ही विवाह कर लेंगे। उन्होंने धरती पर मौजूद उन सभी चीजों को इकट्ठा किया जो एक अच्छे इंसान में पाई जाती हैं और एक कन्या का निर्माण किया। उस समय विदर्भ के राजा संतान प्राप्त करने के लिए बहुत तपस्या एवं जप-तप कर रहे थे। ऋषि अगस्त्य उनके पास पहुंचे और अपने द्वारा बनाई गई उस कन्या को राजा को आशीर्वाद स्वरुप दे दी। उस कन्या का नाम लोपमुद्रा रखा गया, साथ ही उस कन्या का लालन-पालन राजसी वैभव और ऐश्वर्य के बीच किया गया। जब कन्या विवाह योग्य आयु की हुई, तो ऋषि अगस्त्य वहां पहुंचे और उन्होंने राजा विदर्भ से उस कन्या से विवाह करने की इच्छा जताई। यद्यपि राजा विदर्भ ऋषि से बहुत डरते थे, परंतु फिर भी उन्होंने ऋषि को संकेत दिया कि वह अपनी पुत्री का विवाह उनसे नहीं करना चाहते। परन्तु इधर लोपमुद्रा ने अपने पिता से कहा कि वह ऋषि अगस्त्य से ही विवाह करना चाहती हैं। पश्चात राजा ने लोपमुद्रा का विवाह ऋषि अगस्त्य से करवा दिया। चूंकि ऋषि अगस्त्य पहाड़ों, जंगलों और कटीले रास्तों की यात्रा करते थे और वे नहीं चाहते थे कि उनकी पत्नी इस कष्ट को सहन करे, इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी को एक सूक्ष्म रूप देकर, उन्हें एक घड़े में रख लिया और वे जहां भी जाते अपने साथ उस घड़े को ले जाते थे। भगवान शिव की इच्छा के कारण ऋषि अगस्त ने दक्षिण की यात्रा की और वहीं बस गए। हालांकि यह यात्रा बहुत ही दुर्गंम थी, परंतु उन्होंने भगवान शिव का आदेश मानकर इसे पूरा किया। भगवान शिव ने ऋषि अगस्त्य को वरदान दिया था कि उनके घड़े में हमेशा पानी भरा रहेगा। उस समय दक्षिण भारत का यह क्षेत्र बेहद शुष्क था, जहां कभी-कभी पानी बरसता था। एक बार जब ऋषि अगस्त्य स्नान करने गए, तो भगवान गणेश ने एक कौए का रूप लेकर ऋषि अगस्त्य के घड़े को पलट दिया। घड़े के अंदर ऋषि की पत्नी लोपमुद्रा थीं, जो घड़े के पलटने के कारण बारहमासी पानी के साथ शक्तिशाली कावेरी नदी में बदल गईं। यह नदी बारहमासी है तथा इस नदी का पानी भगवान शिव के आशीर्वाद के कारण कभी नहीं सूख सकता। इनकी पत्नी लोप मुद्रा का नाम “कावेरी” इसलिए पड़ा क्योंकि उस घड़े का जल एक कौवे द्वारा फैलाया गया, यहां कावेरी का शाब्दिक अर्थ “का” अर्थात “कौवा” और “विरी” अर्थात “फैलाना” है।
ऋषि अगस्त्य के समुंदर पीने की कथा
एक समय जब वृत्रासुर देवताओं को बहुत परेशान कर रहा था तब देवेंद्र ने उसके विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया और छल से उसे मार डाला। परंतु वृत्रासुर के दो सेनापति काल-केय बच गए। इंद्र देव ने अग्नि देव और वायु देव से उनका पीछा करके उन दोनों को मारने के का आदेश दिया परंतु काल-केय समुंदर की गहराई में चले गए और वहां जाकर छुप गए। हर दिन सूर्यास्त के बाद वो दोनों बाहर निकलते और ऋषियों, देवताओं और महान पुरुषों को परेशान करके सूर्योदय होने से पूर्व वापस समंदर की गहराइयों के अंदर छुप जाते। देवता मदद लेने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे।भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि उन दोनों को पकड़ने का केवल एकमात्र तरीका है कि समुद्र को सुखा दिया जाए और यह कार्य केवल एक ही महापुरुष कर सकतें हैं और वह ऋषि अगस्त्य मुनि। भगवान विष्णु की बात सुनकर देवता मदद लेने के लिए ऋषि अगस्त्य मुनि के पास पहुंचे और ऋषि अगस्त्य ने बड़ी सहजता से सहमति व्यक्त की और समुद्र का सारा पानी पी लिया और समुंद्र को सुखा दिया। इससे काल-केय दोनों ही मारे गए। परंतु समुद्र का जल सूख जाने की वजह से स्थिति अकाल की ओर बढ़ गई। देवताओं ने इस विषय में भगवान विष्णु से पूछा कि अब क्या किया जाए, तो भगवान विष्णु ने उन्हें बताया कि “जब राजा भागीरथ धरती पर जन्म लेंगे, तब वे गंगा जी को स्वर्ग से धरती पर लाएंगे और वही समुद्र के जल को भर देंगीं।
अगस्त्य ने राजा नहुष को दिया श्राप
देवेंद्र ने छल से वृत्रासुर का वध किया। इस वजह से उन्हें एक श्राप ने घेर लिया, जिसके कारण उन्हें पृथ्वी में जाकर छिपना पड़ा। इस समय नहुष नामक एक राजा ने सौ अश्वमेध यज्ञ को पूरा किया। जिस वजह से उसे देवराज इंद्र का पद मिल गया। जब नहुष को जब यह पद प्राप्त हो गया तो उसने देवताओं के ऊपर शासन कर हर किसी के साथ दुर्व्यवहार करना शुरू दिया। नहुष चाहता था कि देवराज इंद्र की पत्नी देवी सचि उसके साथ उसकी पत्नी के रूप में रहें। परंतु सचि देवी ने इस अधर्म को करने से पूर्ण रूप से मना कर दिया और बृहस्पति देव से सुरक्षा मांगी। नहुष को जब यह पता चला तो उसने बृहस्पति देव को बुलाया और उन्हें धमकाया। तब बृहस्पति देव ने सचि देवी से कहा कि वह असहाय हैं परन्तु साथ ही उन्होंने उन्हें उनके पति इंद्र का पता लगाने की सलाह दी। सचि देवी ने नहुष से कहा कि वह उसकी इच्छा का पालन करने को तैयार हैं लेकिन इससे पहले वह अपने पति को देखना चाहतीं हैं, जो कि पृथ्वी पर कहीं छिपे हुए हैं। नहुष इसके लिए तुरंत तैयार हो गया। देवी पार्वती की मदद से सचि देवी को इंद्रदेव का पता चल गया। इंद्रदेव ने कहा जब तक वह अपने पाप से मुक्त नहीं हो जाते वापस नहीं आ सकते। लेकिन उन्होंने सचि देवी से कहा कि वह नहुष से छुटकारा पाने के लिए एक चाल चलें। सचि देवी ने वापस जाकर नहुष से कहा कि वह उसकी बात को मान लेंगीं बशर्ते कि वह सप्त ऋषियों (सात बहुत महान ऋषियों) द्वारा उठाई गई पालकी में उनके स्थान तक आए। सप्त ऋषियों में ऋषि अगस्त्य भी शामिल थे। चूंकि नहुष देवों का राजा था, इसी कारण उसके आदेश का पालन करना सभी के लिए अनिवार्य था। चूंकि ऋषि अगस्त्य कद में छोटे और स्वास्थ्य में मोटे थे, अतः वह तेजी से नहीं चल पा रहे थे। पालकी भी ऋषि अगस्त्य के कद में छोटे होने के कारण अंत में झुकी हुई थी। परंतु नहुष को सचि देवी के पास पहुंचने की जल्दी थी। इसलिए उसने सभी को आदेश दिया सर्पा, सर्पा (अर्थात तेज) इससे ऋषि अगस्त्य नाराज हो गए और उन्होंने नहुष को श्राप दे दिया कि वह सचमुच का सर्पा (सांप) बन जाएगा। उसके बाद नहुष को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह ऋषि अगस्त्य से क्षमा मांगने लगा। अंततः ऋषि अगस्त्य ने उससे कहा उसको उस के वंशज पांडवों को जंगल में देखने से मोक्ष की प्राप्ति होगी।
ऋषि अगस्त्य ने की श्रीराम की मदद
वनवास के समय भगवान श्री राम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ ऋषि अगस्त्य के आश्रम में गए थे। वहां जाकर उन्होंने कुछ समय के लिए विश्राम भी किया था। उन्होंने ऋषि अगस्त्य से सलाह की, कि उन्हें जंगलों में किस तरफ जाना चाहिए। रावण से लंका के युद्ध के दौरान भगवान राम ने लंबे समय तक रावण के साथ युद्ध किया और थक गए क्योंकि वे रावण को मारने में सक्षम नहीं हो पा रहे थे। उस समय देवों ने ऋषि अगस्त्य को सलाह देने के लिए भगवान राम के पास भेजा। ऋषि अगस्त्य ने भगवान राम से कहा कि उन्हें भगवान सूर्य के आदित्यहृदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इससे उन्हें रावण को मारने की क्षमता प्राप्त होगी।
✴️महर्षि अगस्त्य एक महान वैज्ञानिक थे
महर्षि अगस्त एक वैदिक ऋषि थे। जिन्होंने बहुत सारे अविष्कार किये। जैसे विद्युत उत्पादन और विद्युत तार एवं सोने का पानी चढ़ाना, वायुपूरण वस्त्र, पानी को ऑक्सीजन एवं हाइड्रोजन में बदलना, हवा भर कर उड़ने वाले गुब्बारे का इत्यादि। इन सभी का वर्णन हमें महर्षि अगस्त्य द्वारा रचित अगस्त्य संहिता में मिलता है।