यह माँ महाकाली का स्तोत्र, भोग व मोक्ष प्रदायक, मोहिनी शक्ति देने वाला, अघों (पापों) का नाश करने वाला, शत्रु विजय दिलाने वाला अद्भुत स्तोत्र है ।
इस स्तोत्र का रोजाना जाप करने से साधक के अन्दर तेज़ उत्पन्न होता है ! उसके अन्दर वशीभूत करने वाली उर्जा आ जाती है ! महाविद्या महाकाली स्तोत्र माँ काली को अति प्रिय है। * महाकाली स्तोत्रं *
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।
जगन्मोहिनीयं तु वाग्वादिनीयं,
सुहृदपोषिणी शत्रुसंहारणीयं।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।
इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली,
मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।
सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता,
लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवस्ते।
जपध्यान पुजासुधाधौतपंका,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।
चिदानन्दकन्द हसन्मन्दमन्द,
शरच्चन्द्र कोटिप्रभापुन्ज बिम्बं।
मुनिनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।
महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा,
कदाचिद्विचित्रा कृतिर्योगमाया।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।
क्षमास्वापराधं महागुप्तभावं,
मय लोकमध्ये प्रकाशीकृतंयत्।
तवध्यान पूतेन चापल्यभावात्,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।
यदि ध्यान युक्तं पठेद्यो मनुष्य,
स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च।
गृहे चाष्ट सिद्धिर्मृते चापि मुक्ति,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।
।। इति श्री महाकाली स्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
- श्री महाकालिकायै नमो नमः *