।। ।।
(महारुद्र)
यहां हनुमानजी के पंचमुख का रहस्य, सरल पूजा विधान ओर पंचवक्त्र स्तोत्र हिंदी भावार्थ के साथ प्रस्तुत कर रहे है। हनुमानजी की प्रसन्नता का ये सर्वोत्तम विधान है। जीवन की समस्याओं के निराकरण के लिए बाकी सारे विधान करते करते थक गए हैं तो ये विधान अवश्य ही फलदायी होगा। क्योंकि समस्याओं के मूल कारण कर्मदोष, देवदोष, तंत्रबाधा, पितृबाधा, भूमिदोष जैसे सभी कारणों का ये इलाज है।
समस्याओं का निराकरण तो अवश्य होगा साथ ही साथ महावीर हनुमानजी के दर्शन भी अवश्य होंगे, पर एक शर्त सिर्फ और सिर्फ “एकोदेव हनुमंत” का भाव होगा तब ही सफल हो सकते हैं। ज्यादातर लोग अनेक गुरुओ के मार्गदर्शन, अनेक देव पूजन, विविध मंत्र स्तोत्र करने लगते है और फलस्वरूप किसी भी एक देव पर पूर्ण श्रद्धा नही बनती ओर बिना श्रद्धा कभी फल संभव नही है।
हनुमानजी का पांच मुख वाला विराट रूप यानी पंचमुखी अवतार पांच दिशाओं का प्रतिनिधित्व करता है। प्रत्येक स्वरूप में एक मुख, त्रिनेत्र और दो भुजाएं हैं। इन पांच मुखों में नरसिंह, गरुड़, अश्व, वानर और वराह रूप हैं। इनके पांच मुख क्रमश: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रधान माने जाते हैं। पूर्व की तरफ जो मुंह है उसे वानर कहा गया है जिसकी चमक सैकड़ों सूर्यों के वैभव के समान है। इस मुख का पूजन करने से शत्रुओं पर विजय पाई जा सकती है।
रामायण के मुताबिक श्रीहनुमान का विराट स्वरूप पांच मुख पांच दिशाओं में हैं। हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है। यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है। हनुमान के पांच मुख क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित माने गएं हैं। पौराणिक मान्यता के मुताबिक पंचमुखी हनुमान का अवतार भक्तों का कल्याण करने के लिए हुआ हैं। हनुमान के पांच मुख क्रमश: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित हैं। पंचमुखी हनुमानजी का अवतार मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को माना जाता हैं। रुद्र के अवतार हनुमान ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं। इसकी आराधना से बल, कीर्ति, आरोग्य और निर्भीकता बढती है।
पंचमुख हनुमान के पूर्व की ओर का मुख वानर का हैं जिसकी प्रभा करोडों सूर्यों के तेज समान हैं। पूर्व मुख वाले हनुमान का पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है। पश्चिम दिशा वाला मुख गरुड का हैं जो भक्तिप्रद, संकट, विघ्न-बाधा निवारक माने जाते हैं। गरुड की तरह हनुमानजी भी अजर-अमर माने जाते हैं। हनुमानजी का उत्तर की ओर मुख शूकर का है और इनकी आराधना करने से अपार धन-सम्पत्ति,ऐश्वर्य, यश, दिर्धायु प्रदान करने वाल व उत्तम स्वास्थ्य देने में समर्थ हैं। हनुमानजी का दक्षिणमुखी स्वरूप भगवान नृसिंह का है जो भक्तों के भय, चिंता, परेशानी को दूर करता हैं।
अहिरावण जिसे रावण का मायावी भाई माना जाता था, जब रावण परास्त होने कि स्थिति में था, तब उसने अपने मायावी भाई का सहारा लिया और रामजी की सेना को निंद्रा में डाल दिया। इस पर जब हनुमान जी राम और लक्ष्मण को पाताल लोक लेने गए तो उनकी भेट उनके मकरपुत्र से हुई। मकर पुत्र को परास्त करने के बाद उन्हें पाताल लोक में ५ जले हुए दिए दिखे, जिसे बुझाने पर अहिरावण का नाश होना था।
इस स्थिति में हनुमानजी ने, उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख। इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर राम, लक्ष्मण को उस से मुक्त किया। इस प्रकार हनुमानजी को पंचमुखी कहलाया जाने लगा। * ऊँ पंचवक्त्र वीर हनुमते नमः *
हनुमानजी का पूजन और साधना विभिन्न रूपों और स्वरूपों में की जाती है जो कमोवेश सभी भक्त प्रेमी जानते हैं। हनुमानजी के बालरूप और संकटमोचन रूप की वैसे तो ज्यादा ही भक्तों के मध्य महत्ता है पर ‘एक मुखी’ और ‘पंचमुखी’ स्वरूप के साथ हनुमानजी के काफी चमत्कारी रूप और अद्भुत शक्ति का दृष्टांत देखने व सुनने को मिलता हैं। कहते है कि पंचमुखी हनुमानजी की पूजा करने पर भक्तों को बेजोड़ और रहस्यमयी गूढ़ शक्तियां प्राप्त होती हैं।
इनके पांच मुख क्रमशः पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और उर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित हैं। रूद्र अवतार, ऊर्जस्वित, बल और कीर्ति को बढ़ाने वाले तथा निर्भयता प्रदान करने वाले हैं।
इनके पांच मुख- नृसिंह, गरुड़, अश्व, वानर और वराह रूप के परिचायक हैं।
पंचमुखी हनुमानजी का वानर मुख जो पूर्व की ओर है उसे पूजने से शत्रुओं का नाश होता हैं क्योंकि पूर्वमुख वाले हनुमानजी की आभा करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं।
पश्चिम दिशा की ओर जो गरुड़ मुख है जिसे हनुमानजी के सदृश ही अजर-अमर होने का वरदान मिला है। इस मुख के पूजन से सर्व विघ्न बाधाएं कटती हैं, भक्ति, शक्ति का वरदान मिलता हैं।
उत्तर दिशा की ओर शूकर मुख है जिसे आरोग्य, धन, ऐश्वर्य का दानी माना गया है। इसकी आराधना से भक्त दीर्घायु, यश, मान, संपत्ति से परिपूर्ण हो जाता हैं।
दक्षिण मुखी स्वरूप नृसिंह का है जो भक्तों को चिंतारहित, भयरहित जीवनयापन करने का अभयदान देते हैं।
ब्रह्माजी के कारण उत्पन्न हुए उर्ध्व मुख घोड़े के समान है जिसका भक्तों के समस्त दुःखों को दूर करने व उनका हर तरह से कल्याण करने के लिए अवतरण हुआ हैं। * पूजन विधि *
हनुमानजी का पूजन करते समय सबसे पहले कंबल या ऊन के आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। इसके पश्चात हाथ में चावल व फूल लें व इस मंत्र से हनुमानजी का ध्यान करें-
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
ऊँ हनुमते नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि।।
इसके बाद हाथ में लिया हुआ चावल व फूल हनुमानजी को अर्पित कर दें।
आवाहन-
हाथ में फूल लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए श्री हनुमानजी का आवाह्न करें एवं उन फूलों को हनुमानजी को अर्पित कर दें।
उद्यत्कोट्यर्कसंकाशं जगत्प्रक्षोभकारकम्।
श्रीरामड्घ्रिध्याननिष्ठं सुग्रीवप्रमुखार्चितम्।।
विन्नासयन्तं नादेन राक्षसान् मारुतिं भजेत्।।
ऊँ हनुमते नम: आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।।
आसन-
नीचे लिखे मंत्र से हनुमानजी को आसन अर्पित करें (आसन के लिए कमल अथवा गुलाब का फूल अर्पित करें।) अथवा चावल या पत्ते आदि का भी उपयोग हो सकता है।
तप्तकांचनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम्।
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
इसके बाद इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए हनुमानजी के सामने किसी बर्तन अथवा भूमि पर तीन बार जल छोड़ें।
ऊँ हनुमते नम:, पाद्यं समर्पयामि।।
अध्र्यं समर्पयामि। आचमनीयं समर्पयामि।।
इसके बाद हनुमानजी को गंध, सिंदूर, कुंकुम, चावल, फूल व हार अर्पित करें। अब इस मंत्र के साथ हनुमानजी को धूप-दीप दिखाएं-
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।।
त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोस्तु ते।।
ऊँ हनुमते नम:, दीपं दर्शयामि।।
इसके बाद केले के पत्ते पर या किसी कटोरी में पान के पत्ते के ऊपर प्रसाद रखें और हनुमानजी को अर्पित कर दें तत्पश्चात ऋतुफल अर्पित करें। (प्रसाद में चूरमा, भीगे हुए चने या गुड़ चढ़ाना उत्तम रहता है।)
इसके बाद एक थाली में कर्पूर एवं घी का दीपक जलाकर हनुमानजी की आरती करें। इस प्रकार पूजन करने से हनुमानजी अति प्रसन्न होते हैं तथा साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं। * अथ श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचम् *
श्रीगणेशाय नम:।
ॐ अस्य श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषि:।
गायत्री छंद:।
पञ्चमुख-विराट् हनुमान् देवता।
ह्रीम् बीजम्।
श्रीम् शक्ति:।
क्रौम् कीलकम्।
क्रूम् कवचम्।
क्रैम् अस्त्राय फट्।
इति दिग्बन्ध:।।
इस स्तोत्र के ऋषि ब्रह्मा हैं, छंद गायत्री है, देवता पंचमुख-विराट-हनुमानजी हैं, ह्रीम् बीज है, श्रीम् शक्ति है, क्रौम् कीलक है, क्रूम् कवच है और ‘क्रैम् अस्त्राय फट्’ यह दिग्बन्ध है।
श्री गरुड उवाच।
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि शृणु सर्वांगसुंदर।
यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत: प्रियम्।।१।।
गरुडजी ने कहा- हे सर्वांगसुंदर, देवाधिदेव के द्वारा, उन्हें प्रिय रहने वाला जो हनुमानजी का ध्यान किया गया, उसे स्पष्ट करता हूँ, सुनो-
पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम्।
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम्।।२।।
पाँच मुख वाले, अत्यन्त विशाल रहने वाले, तीन गुना पाँच यानी पंद्रह नेत्र (त्रि-पञ्च-नयन) रहने वाले ऐसे ये पंचमुख-हनुमानजी हैं। दस हाथों से युक्त, सकल काम एवं अर्थ इन पुरुषार्थों की सिद्धि कराने वाले ऐसे वे हैं।
पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम्।
दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटिकुटिलेक्षणम्।।३।।
इनका पूर्व दिशा का या पूर्व दिशा की ओर देखने वाला जो मुख है, वह वानरमुख है, जिसकी प्रभा (तेज) कोटि (करोडों) सूर्यों के जितनी है।
उनका यह मुख कराल (कराल- भयकारक) दाढ़ें रहने वाला मुख है। भ्रुकुटि यानी भौंह और कुटिल यानी टेढी। भौंह टेढी करके देखने वाला ऐसा यह मुख है।
अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम्।
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम्।।४।।
वक्त्र यानी चेहरा, मुख, वदन. इनका दक्षिण दिशा का या दक्षिण दिशा की तरफ देखने वाला जो मुख है, वह नारसिंहमुख है और वह बहुत ही अद्भुत है।
अत्यधिक उग्र ऐसा तेज रहने वाला वपु (वपु- शरीर) जिनका है, ऐसे हनुमानजी (अत्युग्रतेजोवपुषं) का यह मुख भय उत्पन्न करने वाला (भीषणं) और भय नष्ट करने वाला मुख है। (हनुमानजी का मुख एक ही समय पर बुरे लोगों के लिए भीषण और भक्तों के लिए भयनाशक है।)
पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम्।
सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्।।५।।
पश्चिम दिशा का अथवा पश्चिम दिशा में देखने वाला जो मुख है, वह गरुडमुख है। वह गरुडमुख वक्रतुण्ड है। साथ ही वह मुख महाबल है, बहुत ही सामर्थ्यवान है।
सारे नागों का प्रशमन करने वाला, विष और भूत आदि का (विषबाधा, भूतबाधा आदि बाधाओं का) कृन्तन करने वाला (उन्हें पूरी तरह नष्ट कर वशने वाला) ऐसा यह (पंचमुख-हनुमानजी का) गरुडानन है।
उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम्।
पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम्।।६।।
उत्तर दिशा का या उत्तर दिशा में देखने वाला मुख यह वराहमुख है। वह कृष्ण वर्ण का (काले रंग का) है, तेजस्वी है, जिसकी उपमा आकाश के साथ की जा सकती है ऐसा है।
पातालनिवासियों का प्रमुख रहने वाला वेताल और भूलोक में कष्ट पहुँचाने वालीं बीमारियों का प्रमुख रहने वाला ज्वर (बुखार) इनका कृन्तन करने वाला, इन्हें समूल नष्ट करने वाला ऐसा यह उत्तर दिशा का वराहमुख है।
ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम्।
येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम्।।७।।
जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम्।
ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम्।।८।।
ऊर्ध्व दिशा का या ऊर्ध्व दिशा में देखने वाला जो मुख है, वह अश्वमुख है। हय यानी घोडा- अश्व। यह दानवों का नाश करने वाला ऐसा श्रेष्ठ मुख है।
हे विप्रेन्द्र (श्रेष्ठ गायत्री उपासक), तारकाख्य नाम के प्रचंड असुर को नष्ट कर देने वाला यह अश्वमुख है। सारे शत्रुओं का हरण करने वाले श्रेष्ठ पंचमुख-हनुमानजी की तुम शरण में रहो।
रुद्र और दयानिधि इन दोनों रूपों में रहने वाले हनुमानजी का ध्यान करें और (अब गरुडजी पंचमुख-हनुमानजी के दस आयुधों के बारे में बता रहे हैं।)
खड़्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम्।
मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम्।।९।।
भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम्।
एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम्।।१०।।
पंचमुख-हनुमानजी के हाथों में तलवार, त्रिशूल, खट्वाङ्ग नाम का आयुध, पाश, अंकुश, पर्वत है। साथ ही मुष्टि नाम का आयुध, कौमोदकी गदा, वृक्ष और कमंडलु इन्हें भी पंचमुख-हनुमानजी ने धारण किया है।
पंचमुख-हनुमानजी ने भिंदिपाल भी धारण किया है। (भिंदिपाल यह लोहे से बना विलक्षण अस्त्र है। इसे फेंककर मारा जाता है, साथ ही इसमें से बाण भी चला सकते हैं। पंचमुख-हनुमानजी का दसवाँ आयुध है, ‘ज्ञानमुद्रा’ इस तरह दस आयुध और इन आयुधों के जाल उन्होंने धारण किये हैं। ऐसे इन मुनिपुंगव (मुनिश्रेष्ठ) पंचमुख-हनुमानजी की मैं (गरुड) स्वयं भक्ति करता हूँ।
प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम्।
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्।।११।।
वे प्रेतासन पर बैठे हैं (प्रेतासनोपविष्ट) (उपविष्ट यानी बैठे हुए), वे सारे आभरणों से भूषित हैं (आभरण यानी अलंकार, गहने), सारे अलंकारों से सुशोभित ऐसे (सारे अलंकारों से- सकल ऐश्वर्यों से विभूषित) हैं।
दिव्य मालाओं एवं दिव्य वस्त्र (अंबर) को उन्होंने धारण किया है। साथ ही दिव्यगंध का लेप उन्होंने बदन पर लगाया है।
सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतो मुखम्
पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं
शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम्।
पीताम्बरादिमुकुटैरुपशोभिताङ्गं
पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि।।१२।।
सकल आश्चर्यों से भरे हुए, आश्चर्यमय ऐसे ये हमारे प्रभु हैं। विश्व में सर्वत्र जिन्होंने मुख किया है, ऐसे ये पंचमुख-हनुमानजी हैं। ऐसे ये पॉंच मुख रहने वाले (पञ्चास्य), अच्युत और अनेक अद्भुत वर्णयुक्त (रंगयुक्त) मुख रहने वाले हैं।
शश यानी खरगोश। शश जिसकी गोद में है ऐसा चन्द्र यानी शशांक। ऐसे शशांक को यानी चन्द्र को जिन्होंने माथे (शिखर) पर धारण किया है, ऐसे ये (शशांकशिखर) हनुमानजी हैं। कपियों में सर्वश्रेष्ठ रहने वाले ऐसे ये हनुमानजी हैं। पीतांबर, मुकुट आदि से जिनका अंग सुशोभित है, ऐसे ये हैं।
पिङ्गाक्षं, आद्यम् और अनिशं ये तीन शब्द यहाँ पर हैं। गुलाबी आभायुक्त पीत वर्ण के अक्ष (इंद्रिय- आँखें) रहने वाले ऐसे ये हैं। ये आद्य यानी पहले हैं। ये अनिश हैं यानी निरंतर हैं अर्थात् शाश्वत हैं। ऐसे इन पंचमुख-हनुमानजी का हम मनःपूर्वक स्मरण करते हैं।
मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम्।
शत्रुं संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर।।१३।।
वानरश्रेष्ठ, प्रचंड उत्साही हनुमानजी सारे शत्रुओं का नि:पात करते हैं। हे श्रीमन् पंचमुख-हनुमानजी, मेरे शत्रुओं का संहार कीजिए। मेरी रक्षा कीजिए। संकट में से मेरा उद्धार कीजिए।
ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले।
यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता।।१४।।
ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा।
महाप्राण हनुमानजी के बाँये पैर के तलवे के नीचे ‘ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा’ यह जो लिखेगा, उसके केवल शत्रु का ही नहीं बल्कि शत्रुकुल का नाश हो जायेगा। वाम यह शब्द यहाँ पर वाममार्ग का यानी कुमार्ग का प्रतिनिधित्व करता है। वाममार्ग पर जाने की प्रवृत्ति, खिंचाव यानी वामलता। (जैसे कोमल-कोमलता, वैसे वामल-वामलता।) इस वामलता को यानी दुरितता को, तिमिरप्रवृत्ति को हनुमानजी समूल नष्ट कर देते हैं।
अब हर एक वदन को ‘स्वाहा’ कहकर नमस्कार किया है।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा।
सकल शत्रुओं का संहार करने वाले पूर्वमुख को, कपिमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा।
दुष्प्रवृत्तियों के प्रति भयानक मुख रहने वाले (करालवदनाय), सारे भूतों का उच्छेद करने वाले, दक्षिणमुख को, नरसिंहमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय सकलविषहराय स्वाहा।
सारे विषों का हरण करने वाले पश्चिममुख को, गरुडमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा।
सकल संपदाएँ प्रदान करने वाले उत्तरमुख को, आदिवराहमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार।
ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा।
सकल जनों को वश में करने वाले, ऊर्ध्वमुख को, अश्वमुख को, भगवान श्री पंचमुख-हनुमानजी को नमस्कार।
ॐ श्रीपञ्चमुखहनुमन्ताय आञ्जनेयाय नमो नम:।।
आञ्जनेय श्री पञ्चमुख-हनुमानजी को पुन: पुन: नमस्कार।
पूजन स्तोत्र के बाद भगवान श्री राम की धुन अवश्य करें। हनुमान चालीसा ओर सीताराम गुणगान से हनुमानजी शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं। पूजा के अन्तमे क्षमापर्ण पढ़े-
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं।
यत पूजितं मया देव, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव।।
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनं।
पूजा चैव न जानामि, क्षमस्व परमेश्वरं।।
शाम संध्या के समय हनुमानजी महाराज के नाम एक तेल का दिया लगाकर हनुमानजी महाराज का आवाहन करें। हनुमान चालीसा का एक पाठ करें और हो सके तो परिवार के सभी सदस्य साथ बैठकर सीताराम सीताराम नाम का जो हो सके इतना जाप करें।
हनुमानजी की प्रसन्नता के दो श्रेष्ठ उपाय हृदय मे हनुमानजी को धारण करके जितने भी हो सके सीताराम नाम के जाप ओर छोटे बच्चों को भोजन करवाना। हम पूर्ण विस्वास के साथ कहते हैं आपकी कोई भी समस्या हो निराकरण अवश्य ही मिलेगा ये रुद्र शक्ति का प्रभाव है।
पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से आप हनुमानजी महाराज की कृपा प्राप्त करें और जीवन मे हरेक प्रकार के सुख समृद्धि प्राप्त करें यही प्रार्थना है।
।। श्रीहनुमते नमः ।।
.. .. (Maharudra)
Here the secret of Hanumanji’s Panchmukh, simple worship method and Panchvaktra stotra are being presented with Hindi meaning. This is the best law for the happiness of Hanumanji. If you are tired of doing all other rituals to solve the problems of life, then this ritual will definitely be fruitful. Because this is the cure for all the causes like Karma Dosh, Dev Dosh, Tantra Badha, Pitri Badha, Bhoomi Dosh, the root cause of the problems.
Problems will definitely be resolved, along with this there will definitely be darshan of Mahaveer Hanumanji, but one condition only and only “Ekodev Hanumant” can be successful only then. Most of the people start following the guidance of many gurus, worshiping many gods, chanting various mantras and as a result there is no complete faith in any one god and without faith no fruit is ever possible.
The five-faced Viraat form of Hanumanji i.e. Panchmukhi Avatar represents the five directions. Each form has one face, three eyes and two arms. These five faces have Narasimha, Garuda, Ashwa, Vanara and Varaha forms. Their five faces are considered to be prime in east, west, north, south and vertical direction respectively. The face towards the east has been called a monkey, whose brightness is like the splendor of hundreds of suns. By worshiping this face one can get victory over the enemies.
According to Ramayana, Lord Hanuman’s great form has five faces in five directions. Every form has one face, Trinetradhari i.e. with three eyes and two arms. These five faces are Narasimha, Garuda, Ashwa, Vanara and Varaha. The five faces of Hanuman are considered prestigious in east, west, north, south and vertical direction respectively. According to mythological belief, the incarnation of Panchmukhi Hanuman has happened for the welfare of the devotees. The five faces of Hanuman are revered in the east, west, north, south and vertical directions respectively. Margashirsha Krishnashtami is considered to be the incarnation of Panchmukhi Hanumanji. Hanuman, the incarnation of Rudra, is considered a symbol of energy. Its worship increases strength, fame, health and fearlessness.
The east side of Panchmukh Hanuman is the face of a monkey whose effulgence is like crores of suns. Worshiping Hanuman facing east destroys all enemies. The west-facing face is of Garuda, which is considered devotional, crisis, obstacle-reliever. Like Garuda, Hanumanji is also considered immortal. Hanumanji’s north-facing face is that of a pig and worshiping him is capable of giving immense wealth, prosperity, fame, longevity and good health. The south-facing form of Hanumanji is that of Lord Narasimha, who removes the fear, anxiety and troubles of the devotees.
Ahiravana who was supposed to be Ravana’s illusory brother, when Ravana was about to be defeated, took the support of his illusory brother and put Ramji’s army to sleep. On this, when Hanuman ji went to take Ram and Lakshman to Patal Lok, he met his son Makar. After defeating Makaraputra, he saw 5 lit lamps in Patal Lok, which were to be extinguished to destroy Ahiravana.
In this situation, Hanumanji has Varaha face in the north, Narasimha face in the south, Garuda face in the west, Hayagriva face towards the sky and Hanuman face in the east. Taking this form, he extinguished those five lamps and killed Ahiravana and freed Rama and Lakshmana from him. Thus Hanumanji came to be known as Panchmukhi. * Om Panchvaktra Veer Hanumate Namah *
Hanumanji is worshiped and worshiped in various forms and forms, which are more or less known to all devotees. Although the form of Hanumanji as a child and the savior of trouble is more important among the devotees, but along with ‘Ek Mukhi’ and ‘Panchmukhi’ form, many miraculous forms and wonderful power of Hanumanji can be seen and heard. It is said that on worshiping Panchmukhi Hanumanji, devotees get unique and mysterious esoteric powers.
Their five faces are established in east, west, north, south and vertical direction respectively. Rudra Avatar is the one who enhances energy, strength and fame and gives fearlessness. His five faces – Narasimha, Garuda, Ashwa, Vanara and Varaha are the introduction of form.
Enemies are destroyed by worshiping Panchmukhi Hanumanji’s monkey face which is towards the east, because the aura of Hanumanji with the east face is as bright as crores of suns.
The eagle’s face towards the west, which has got the boon of being immortal just like Hanumanji. By worshiping this face, all obstacles and obstacles are cut, you get blessings of devotion and power.
There is a pig’s mouth towards the north, which is considered to be the giver of health, wealth and prosperity. By worshiping it, the devotee becomes full of longevity, fame, honor and wealth.
The south facing form is of Narasimha who gives the devotees the abode to lead a carefree, fearless life.
The upward facing horse born because of Brahmaji is like a horse which has descended to remove all the sorrows of the devotees and to do them welfare in every way. * worship method *
While worshiping Hanumanji, first of all sit on a blanket or wool seat facing east. After this, take rice and flowers in hand and meditate on Hanumanji with this mantra-
The abode of incomparable strength, the body like a golden mountain The young and thin of the demon, the foremost of the wise. He is the treasure of all virtues and the lord of the monkeys I offer my obeisances to the dear devotee of Lord Raghu born of the wind.
ऊँ हनुमते नम: I offer flowers for meditation.
After this, offer the rice and flowers taken in hand to Hanumanji.
appeal-
Chanting this mantra with flowers in hand, invoke Shri Hanumanji and offer those flowers to Hanumanji.
It was like a crore of rising suns and it shook the world Devoted to the meditation of the feet of Sri Rama and worshiped by Sugriva in the forefront
One should worship Maruti who destroys the demons with his roar
ऊँ हनुमते नम: I offer flowers for invocation.
Posture-
Offer a seat to Hanumanji with the mantra written below (Offer lotus or rose flower for the seat.) Or rice or leaves etc. can also be used.
It was of the color of burnt gold and studded with pearls Accept this immaculate lotus divine seat
After this, chanting these mantras, release water thrice on any vessel or ground in front of Hanumanji.
ऊँ हनुमते नम:, offer the water for washing feet.
I offer the Adhrya. I offer the Acharya.
After this, offer Gandha, vermilion, kumkum, rice, flowers and necklace to Hanumanji. Now show incense-lamp to Hanumanji with this mantra-
I added the equipment and the pots to the fire. O Lord of the gods accept this lamp which dispels the darkness of the three worlds
With devotion I offer the lamp to the Supreme Soul, the god.
Save me from this dreadful hell O lamp-light I offer my obeisances unto Thee.
ऊँ हनुमते नम:, I offer the lamp.
After this, place prasad on a banana leaf or on a betel leaf in a bowl and offer it to Hanumanji, and then offer Ritufal. (It is best to offer churma, soaked gram or jaggery in Prasad.)
After this, perform aarti of Hanumanji by lighting a lamp of camphor and ghee in a plate. Worshiping in this way makes Hanumanji very happy and fulfills every wish of the seeker. * Ath Shri Panchamukhhanumatkavacham *
SHRI GANESHAYA NAMAH.
ॐ This is the Sri Panchamukha Hanuman Kavacha Mantra, chanted by Brahma. Gayatri Chhanda:. The five-faced giant Hanuman is the deity. Hrim is the seed. Srim Shakti:. Chrome key. Crum shield. Cram weapon phat. This is the directional bond.
The sage of this stotra is Brahma, the verse is Gayatri, the deity is Panchamukh-Virat-Hanuman, Hrim is the seed, Shrim is the power, Krum is the key, Krum is the shield and ‘Kram Astraya Phat’ is the directional bond.
Sri Garuda said. Now I will tell you the meditation, listen, O beautiful one of all limbs. The meditation which was done by the god of gods is pleasing to Hanuman.
Garudji said- Oh all-beautiful, I clarify the meditation done by Devadhidev, who is dear to him, Hanumanji, listen-
He had five faces and was very frightening and had three or five eyes. With ten arms it bestows the fulfillment of all desires and objects.
The one with five faces, the one who lives very big, the one who has three times five i.e. fifteen eyes (tri-panch-nayan) is such a Panchmukh-Hanumanji. With ten hands, gross work and meaning, such are those who make these efforts successful.
In the past the monkey’s face shone like a crore of suns His face was terrible with fangs and his eyes were frowning.
His face facing east or looking towards the east is Vanarmukh, whose effulgence (brightness) is as much as that of crores of suns.
This face of his is the face of Karal (Karaal – fearful). Bhrukuti means brow and kutil means crooked. This is such a face that looks at you with a crooked brow.
The right face of this very one is a great wonderful lion. With a body of extremely fierce splendour, terrible and destroyer of fear.
Vakra means face, mouth, body. His face facing South or looking towards South is Narasimhumukh and it is very wonderful.
The face of Hanumanji (Atyugratejovpusham) who has such a fiery Vapu (Vapu-body) that is extremely fierce, is the fear-inducing (Bheeshanam) and the fear-destroying face. (Hanumanji’s face is at the same time terrifying to the evil people and terrifying to the devotees.)
The western Garuda face is very strong with a curved beak. It relieves all snakes and destroys poisonous beings and others.
The face facing west or looking west is Garudmukh. He is an eagle-faced Vakratunda. Also, that mouth is great power, very powerful.
The one who pacifies all snakes, the one who destroys poison and ghosts etc. (obstacles of poison, ghost etc.)
The north Saukara face was dark and glowing like the sky Cutting off the underworld, the lion, the demon, the fever, the disease and so on.
Varahmukh is the face facing north or north. He is of Krishna Varna (black in color), Tejaswi, who can be compared with the sky.
Vetal, who is the chief of the inhabitants of Hades, and Jwara (fever), who is the chief of the diseases that cause trouble in Bhulok, the one who destroys them completely, this is the Varahmukh of the north direction.
The horse-faced above was terrible and supremely destructive to demons. O best of brāhmaṇas with whose mouth the great demon named Taraka was destroyed.
He killed the refuge that would be the ultimate destroyer of all enemies. Meditate on the five-faced Rudra Hanuman the treasure of mercy.
The face that is in the vertical direction or looking in the vertical direction is Ashwamukh. Hay means horse-horse. This is such an elevated mouth that destroys demons.
O Viprendra (best Gayatri worshipper), this is the ashwamukha who destroys the fierce asura named Tarakakhya. You stay in the shelter of the best Panchmukh-Hanumanji who abducts all the enemies.
Meditate on Hanumanji living in both these forms Rudra and Dayanidhi and (Now Garudji is telling about the ten weapons of Panchmukh-Hanumanji.)
A sword a trident a sword a rope a goad a mountain A fistful of lily water holding a tree and a waterpot.
Bhindipalam, the seal of knowledge, the foremost of ascetics with ten. I worship him who holds these networks of weapons.
In the hands of Panchmukh-Hanumanji is sword, trishul, weapon named Khatwang, noose, curb, mountain. Along with this, the weapon named Mushti, Kaumodaki mace, tree and kamandalu have also been worn by Panchmukh-Hanumanji.
Panchmukh-Hanumanji has also worn Bhindipal. (Bhindipal is a unique weapon made of iron. It can be killed by throwing, as well as arrows can be fired from it. Panchmukh-Hanumanji’s tenth weapon, ‘Gyanmudra’, thus ten weapons and nets of these weapons are worn by him. In this way, I (Garuda) myself do devotion to these Munipungav (munishrestha) Panchmukha-Hanumanji.
He was seated on a funeral throne adorned with all kinds of ornaments Wearing divine garlands and clothes and anointed with divine perfumes.
He is seated on the pretasana (pretasanopavishta) (upavishta i.e. sitting), he is adorned with all ornaments (abharanas i.e. adornments, jewels), he is adorned with all ornaments (adorned with all ornaments – gross opulences).
He has worn divine garlands and divine cloth (amber). Along with this, he has applied divine fragrance on the body.
Hanuman the face of the universe is the god of all wonders Five-faced, infallible, with a face of many strange colours The peak of the moon is the noble king of monkeys. adorned with yellow robes and other crowns I always remember in my mind the beginning of the yellow eyes.
Filled with gross wonders, wonderful is our Lord. The one who has faced everywhere in the world, such is this five-faced Hanumanji. Such are the five-faced (panchasya), infallible and many wonderfully colored (rangyukt) faces.
Shash means rabbit. The one who has Shash in his lap is such a moon i.e. Shashank. Such Shashank i.e. the one who has worn the moon on his forehead, such is this (Shashank Shikhar) Hanumanji. This Hanumanji is the best among the monkeys. Those whose limbs are adorned with Pitambar, crown etc. are such.
Pingakshan, Adhyam and Anisham these three words are here. These are the ones who have pink aura of yellow colour. These are the first ones. They are anish i.e. continuous i.e. eternal. We remember this Panchmukh-Hanumanji with all our heart.
Lord of the monkeys, greatly enthusiastic, supreme destroyer of all enemies. Destroy the enemy, protect me, O prosperous one, rescue me from my distress.
Vanarshrestha, fiercely enthusiastic Hanumanji destroys all the enemies. Oh Lord Panchmukh-Hanumanji, kill my enemies. protect me Save me from trouble.
Om Harimarkata Markata Mantra is written on the left bottom. If it is destroyed the enemy clan is destroyed if it is released the left-handed tree is released.
ॐ Harimarkataya Svaha.
The one who writes ‘Om Harimarkatay Swaha’ under the sole of Mahaprana Hanumanji’s left foot, not only his enemy but also the Shatrukul will be destroyed. The word Vam here represents the left path, that is, the wrong path. Tendency to go on the left path, inclination means left-handedness. (Like soft-softness, so bad-bad.) Hanumanji completely destroys this badness, that is, badness, blackness.
Now every body has been greeted by saying ‘Swaha’.
ॐ Namo Bhagavate Panchavadana Purvakapimukhaya Sakalashatrusamharakaya Svaha.
Salutations to the Purvamukh, Kapimukh, Lord Shri Panchmukh-Hanumanji, the destroyer of all enemies.
Oṁ namo bhagavate pancavadanaya dakshinamukhaya karalavadanaya narasimhaya sakalabhutapramathanaya svaha.
Salutations to Lord Shri Panchmukh-Hanumanji, to the one who has a terrible face towards evil tendencies (Karalavadnaya), the destroyer of all evil spirits, to the south face, to Narasimhamukh.
Oṁ namo bhagavate pancavadanaya paschimamukhaya garudanāya sakalaviṣaharaya svaha.
Salutations to the west-faced, Garudmukh, Lord Shri Panchmukh-Hanumanji, who abducts all poisons.
Oṁ namo bhagavate pancavadanaya uttaramukhaya adivarahaya sakalasampatkaraya svaha.
Salutations to the north face, to Adivarahmukh, Lord Shri Panchmukh-Hanumanji, who bestows gross wealth.
Ome Namo Bhagavate Panchavadana Urdhvamukha Hayagriva Sakalajanavashakaraya Svaha.
Salutations to Lord Shri Panchmukh-Hanumanji, to the vertical-faced, to the horse-faced, the one who controls all the people.
Obeisances to the five-faced Hanuman of the goddess Anjaneya.
Anjaneya Sri Panchamukh-Hanuman again and again.
After worship stotra, do the tune of Lord Shri Ram. Hanumanji is soon pleased by singing Hanuman Chalisa and Sitaram. Read forgiveness at the end of worship-
Without mantras, without action, without devotion, the Lord of the gods. Whatever I have worshipped, O Lord, is perfect in You alone.
I don’t know how to invoke, I don’t know how to dismiss. I don’t even know how to worship, forgive me, Lord.
In the evening invoke Hanumanji Maharaj by lighting an oil lamp in the name of Hanumanji Maharaj. Recite one Hanuman Chalisa and if possible all the family members sit together and chant the name Sitaram Sitaram as much as possible.
The two best ways for Hanumanji’s happiness are chanting the name of Sitaram as much as possible and feeding small children by holding Hanumanji in the heart. We say with full confidence that whatever your problem may be, it will definitely be solved, this is the effect of Rudra Shakti.
With full devotion and faith, you get the blessings of Hanumanji Maharaj and get all kinds of happiness and prosperity in life, this is my prayer.
।। Ome Sri Hanuman.