नही , मैं तुम्हें दीक्षा नही दे सकता …तुम जा सकते हो ।
बिहारी जी बगीचा के सिद्ध महात्मा श्री हरिप्रिया शरण देव ने उन वैराग्यवान युवा को साफ शब्दों में मना कर दिया था ।
पर क्यों ?
वो युवक भी जिद्द पकड़ कर बैठ गया । मुझे आप क्यों दीक्षा नही देंगे ! कारण बताइये ।
तुम्हारा शरीर नेपाल का है ….तुमने जीवन में मांसाहार किया होगा , है ना ?
युवक ने सिर झुका कर कहा – महाराज जी ! अबोध और अज्ञान की अवस्था में मैंने एक बार मांसाहार किया था ….मैंने आपको गुरु रूप में वरण किया है इसलिये झूठ नही बोलूँगा ।
तुम्हारे वरण करने से क्या होता है वत्स ! गुरु वरण करे तो उपलब्धि है ….निम्बार्क सम्प्रदाय के महान सन्त श्रीहरिप्रिया शरण देव ने गम्भीर होकर अपनी बात कही थी ।
तो आप कब वरण करेंगे ? युवक भी जिद्द में उतर आया ।
सदगुरु श्रीहरिप्रिया शरण देव को आनन्द आरहा था …इस युवा की परीक्षा लेते हुये ।
मैं तब वरण करूँगा जब मेरे श्यामा श्याम तुम्हें वरण करेंगे ….इतना कहकर मौन हो गये थे ।
कुछ सोचकर वो नेपाली युवक उठकर खड़ा हो गया था …”ठीक है महाराज जी ! मैं अब तभी आऊँगा आपके पास जब मुझे श्रीश्यामा श्याम अपनायेंगे । वो युवक वहाँ से चला गया था ।
पूर्व नेपाल पर्वतीय क्षेत्र ओखलढ़ूंगा जिले में “तारुके” नामक गाँव में कई ब्राह्मण परिवारों का घर है …..विप्र परिवार वैदिक नियम और शास्त्र अनुसार अपना जीवन चलाता है…..उन्हीं से एक हैं ….श्री विष्णु प्रसाद उपाध्याय , और इनकी पत्नी श्रीमति राधा देवी ….राधा देवी जो भगवदभक्ति से ओत प्रोत थीं उन्हीं के संस्कार बालक पर पड़े ….विवाह के बाद इनके पुत्र हुआ ….सन् 1906 कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को …जिसकी खुशी सबको थी ….समृद्ध और संस्कारी परिवार था ये…..बालक का नाम ज्योतिषीय गणना अनुसार “रामचन्द्र” रखा गया ….पूरा गाँव ही प्रसन्न था ….पर ज्योतिषियों की जो भविष्यवाणी थी उसने माता पिता को दुखी कर दिया था …विशेष माता को ….”बालक जोगी बनेगा” …ओह ! बालक जोगी बनेगा ! पिता तो कोई नही पर माता राधा देवी बहुत दुखी हो गयी थीं । पुत्र हुआ तो पौत्र आदि का सुख देने के लिए ….पर ये तो जोगी बनकर चला जाएगा ! नही …..मैं इसे जोगी बनने नही दूँगी । धर्म- अध्यात्म आदि से इसे दूर रखूँगी ।
बालक को शिक्षा में ही ज़्यादा जोर दिया जाने लगा …माता कीर्तन में जातीं जब आस पड़ोस में कीर्तन होता …पर अपने बालक रामचन्द्र को नही ले जातीं ….”बालक जोगी बनेगा” ये बात उनके मन में गहरे बैठ गयी थी । पर बालक का मन कीर्तन में ही लगता …वो छुप कर चला जाता और कीर्तन सुनकर अकेले में नाचता रहता ….वो नाचते हुये सावधान भी रहता क्यों की माता आएगी तो उसे पीटेगी …..पर बालक जब तन्मय हो जाता तब तो वो देह सुध भूल ही जाता था …वो अकेले में नाचता ..नाचता ..बस नाचता । “कृष्ण” इस शब्द ने बालक को बचपन से ही आकर्षित किया था ….ये कृष्ण कहता …ये केशव , माधव , मुकुंद कहता …पिता विष्णु प्रसाद तो बहुत प्रसन्न होते ..इसे चूमते …इसे पुचकारते पर इसकी माता बहुत नाराज हो जातीं ….अगर ऐसे ही आप चढ़ाते रहे तो ये एक दिन जोगी ही बनेगा ।
राधा ! बालक को जोगी बनना हो तो कैसे भी बन जाएगा …..पिता विष्णु प्रसाद समझाते …..लुम्बिनी के राजा शुद्धोदन ने कितने प्रयास किये पर क्या सिद्धार्थ को बुद्ध बनने से वो रोक सके ? तो विष्णु की पत्नी झुँझला के कहतीं ..मैं कुछ नही जानती ….बस मेरा ये पुत्र जोगी नही बनना चाहिए ….तो राधा ! करोगी क्या ? विष्णु प्रसाद पूछते ।
कुछ भी करूँगी ….भजन नही सुनने दूँगी ….मन्दिर नही जाने दूँगी …किसी जोगी का संगत नही करने दूँगी ….ये कहते हुये वो ममता की मारी माँ रोने लग जाती ….उस समय विष्णु प्रसाद उन्हें समझाते …सम्भालते ….अपने माता के गले से लगते हुये वो बालक आँसुओं को पोंछकर कहता …”आमा ! न रुनु” तब अपने हृदय से लगा लेती वो माँ अपने इस कलेजे के टुकड़े को ।
हे मन ! कृष्ण बिना कोई छैन !
छैन संसार , छैन परिवार , छैन प्रेम परचार ।। हे मन ! कृष्ण बिना…..
चार वर्ष का बालक रामचन्द्र अकेले वन में बैठ कर गाता था …ये भजन इसने दो दिन पहले ही पड़ोस के भजन गायक एक दादा जी द्वारा सुना था ….इसे बहुत अच्छा लगा था …ये चेतावनी का भजन मन को शिक्षा देने वाला भजन , ये गाता था ..बड़े प्रेम से गाता था …सच भी तो है कृष्ण बिना और है क्या ? कृष्ण के बिना कुछ नही है …न तो संसार का अस्तित्व है ….न परिवार का …न कहीं प्रेम है …क्यों की प्रेम के सिन्धु तो यही हैं …कृष्ण । ये झूम जाता …ये रम जाता इस भजन में ।
एक दिन दूर खोला (छोटी नदी) में बैठ कर ये गा रहा था ….अपने आपको भूल गया था कि तभी इसका एक साथी आया और इसको झकझोर कर बोला – राम चन्द्र ! तेरे पिता जी का स्वर्गवास हो गया है ।
ये स्तब्ध हो गया था ….अभी पाँच वर्ष का ही तो था ये …..पिता जी पधार गये ! ओह !
ये धीरे धीरे अपने घर की ओर चला ….ये रो नही रहा था …ये जीवन और मृत्यु को समझना चाह रहा था …..ये क्या है ? आदमी जन्मता है बड़ा होता है और मर जाता है !
घर में आया तो अर्थी बाँधकर उसके पिता जी को लोग ले जा रहे थे …..अपने घर भीतर गया रामचन्द्र ….घर में रोते रोते उसकी माता बेहोश हो गयीं थीं …पड़ोस की महिलायें सिन्दूर पोंछ रहीं थीं चूड़ियाँ तोड़ रही थीं ….राम चन्द्र यहाँ से निकल गया वो गया शमशान में ….वहाँ अर्थी को उतारा गया था …..राम चन्द्र को सब बुलाने वाले थे चिता को अग्नि देने …..उनके पिता को नहलाया गया था ….नये वस्त्र ऊपर से डाला गया …..फिर माथे में चन्दन लगाया …..राम चन्द्र देख रहा है ….उसके पिता को लोगों ने उठाकर लकड़ियों में सुला दिया था ….वो कहने वाला था …मत सुलाओ मेरे पिता जी को …कुछ तो बिछा दो …मेरे पिता जी को ये गढ़ेंगे ….पर फिर सोचने लगा …इनको अब कष्ट नही होता ….क्यों की ये मर गये ! मर गये ! मैंने भी मरूँगा ? सब मरेंगे …जो जन्मा है वो मरेगा …..अग्नि दे रहा है अब रामचन्द्र ……धूं धूं करके जल रहा है पिता का देह …..वो देखता रहा ……अब धीरे धीरे सब जा रहे हैं शमशान से …जाते जाते रामचन्द्र के सिर में हाथ रखते हुए जा रहे हैं ….पर वो पाँच वर्ष का बालक बुझती हुई चिता देखता रहा ….बा ! बा ! कहते हुये कैसे गोद में बैठ जाता था रामचन्द्र पर आज वो जल कर भस्म हो गये !
वो अभी भी बैठा है ……चिता पूरी तरह से बुझ चुकी है …राख को देख रहा है ।
हे मन ! कृष्ण बिना कोई छैन ।
छैन संसार , छैन परिवार , छैन प्रेम परचार ….रे मन ! कृष्ण बिना …..
नीरव रात्रि में बालक रामचन्द्र गा रहा था …….
शेष कल –