अमें श्रेत्र गाँव के पास एक बड़ा बाँध बनाया गया था आसपासके गाँवोंके किसानोंने उसे बनाने में सहयोग किया था। वर्षा समाप्त हो जानेपर किसानोंके खेत बाँधके पानी से सींचे जा सकेंगे, यही आशा थी। परंतु सभी आयोजनोंके साथ भय लगा रहता है। अचानक रात में घोर वृष्टि हुई नदीमें बाढ़ आ गयी। ऐसा प्रतीत होने लगा कि नदीका जल किनारा तोड़कर बाँधमें प्रवेश कर जायगा और यदि बाँध टूट गया—यह सोचकर ही किसानोंके प्राण सूख गये तो बाँसके टहरोंसे बने घर बाढ़के प्रवाहमें कितने क्षण टिकेंगे ? मनुष्य और पशुओंका जो विनाश होगा, वह दृश्य सामने जान पड़ने लगा।
चौकीदारोंने लोगोंको सावधान करनेके लिये हवामें गोलियाँ छोड़ीं गाँवके लोग बाँधकी देख-रेख में जुट गये। मिट्टी, पत्थर, रेत बाँधके किनारे तेजीसे पड़ने लगा।
बाँध कहीं कमजोर तो नहीं है, यह देखनेका काम सौंपा गया माँग नामक व्यक्तिको घूमते हुए माँगने देखा far में एक स्थानपर लंबा पतला छेद हो गया है। और उसमेंसे नदीका जल भीतर आ रहा है। कुछ क्षणका भी समय मिला तो वह छेद इतना बड़ा होजायगा कि उसे बंद करना शक्य नहीं होगा। दूसरा कोई उपाय तो था नहीं, माँग स्वयं उस छेदको अपने शरीर से दबाकर खड़ा हो गया।
ऊपरसे वर्षा हो रही थी, शीतल वायु चल रही थी और जलमें जलके वेगको शरीरसे दबाकर माँग खड़ा था। उसका शरीर शीतसे अकड़ा जाता था, हड्डियोंमें भयंकर दर्द हो रहा था। अन्तमें वह वेदनासे मूर्च्छित हो गया। किंतु उस वीरका देह फिर भी जलके वेगको रोके बाँधसे चिपका रहा ।
‘माँग गया कहाँ ?’ गाँवके दूसरे लोगोंने थोड़ी देरमें खोज की; क्योंकि बाँधके निरीक्षणके सम्बन्धमें उन्हें कोई सूचना माँगने दी नहीं थी। लोग स्वयं बाँध देखने निकले। बाँधसे चिपका माँगका चेतनाहीन शरीर उन्होंने देख लिया।
‘माँग !’ परंतु माँग तो मूच्छित था, उत्तर कौन देता। लोगोंने उसके देहको वहाँसे हटाया तो बाँधमें नदीका प्रवाह आने लगा। दूसरा मनुष्य उस छेदको दबाकर खड़ा हुआ। कुछ लोग मूच्छित माँगको गाँवमें उठा ले गये और दूसरे लोगोंने उस छेदको बंद किया।
माँगकी इस वीरता और त्यागकी कथा बर्मी माताएँ आज भी अपने बालकोंको सुनाया करती हैं।
-सु0 सिं0
A big dam was built near the village of Amen Shretra and the farmers of the surrounding villages helped in building it. It was hoped that after the end of the rains, the fields of the farmers would be able to be irrigated with the water of the dam. But with all events there is fear. Suddenly there was heavy rain in the night and there was flood in the river. It began to appear that the river water would enter the dam after breaking the bank and if the dam broke – the farmers’ lives dried up thinking that how long would the houses made of bamboo shacks survive the flood? The scene of the destruction that would happen to humans and animals began to appear in front of me.
The watchmen fired bullets in the air to warn the people, the people of the village got involved in the maintenance of the dam. Soil, stones and sand started falling rapidly on the banks of the dam.
A person named Maang, who was assigned the task of checking whether the dam is weak, saw a long thin hole at one place in the far distance. And from that the river water is coming inside. If you get time even for a few moments, that hole will become so big that it will not be possible to close it. There was no other solution, Maang himself stood up pressing that hole with his body.
It was raining from above, cool wind was blowing and Maang was standing in the water by pressing the velocity of water with the body. His body was stiff with cold, his bones were aching. At last he fainted from pain. But still the body of that hero stopped the flow of water and stuck to the dam.
‘Where did you ask?’ Other people of the village searched for a while; Because they were not allowed to ask for any information regarding the inspection of the dam. People themselves went out to see the dam. They saw Mang’s unconscious body clinging to the dam.
‘demand !’ But the demand was senseless, who would have answered. When people removed his body from there, the river started flowing in the dam. Another man stood pressing that hole. Some people took the unconscious Mang to the village and others closed the hole.
The story of Mang’s bravery and sacrifice is still narrated by Burmese mothers to their children.
– Su 0 Sin 0