डॉक्टर हो तो ऐसा
सन् 1938 ई0 की बात है, चीन और जापानमें लड़ाई चल रही थी। चीनकी पीली नदीके मोर्चेपर ‘रेड क्रॉस’ का एक अस्पताल था। एक दिन अस्पतालके प्रधानको एक तार मिला- ‘आज ही पहुँच रहा हूँ, विमानसे। पहुँचते ही मोर्चेपर मेरी ड्यूटी लगा दें डोनाल्ड !’
जैसे ही डोनाल्ड विमानसे उतरा, बोला-‘कहाँ लगायी है मेरी ड्यूटी ?’
6 फुट 4 इंचके हट्टे-कट्टे नौजवानको देखकर
प्रधान तो हैरान!
अजीब आदमी है। विमानसे उतरनेकी देर नहीं और काम माँग रहा है। पहले उसने सोचा था कि शायद होगा कोई बूढ़ा मनहूस डॉक्टर डॉक्टरी न चलती देखकर आया होगा ‘बहते दरियामें हाथ धोने।’ पर जब डोनाल्डको देखा तो लगा कि यह तो अजीब आदमी है।
X X X
डोनाल्ड बच्चोंकी तरह सरल, सीधा। बच्चोंकी सी बातें करता। दिन-पर-दिन यह बात साफ होती गयी कि डॉक्टरीके फनमें, हर बातमें डोनाल्ड उस्ताद है। पैनी आँख, सधा हाथ। ऑपरेशनमें सबसें निपुण। इंग्लैण्डके सर्वोत्तम मेडिकल कॉलेजका स्नातक था वह।
X X X
12 घण्टे पूरी ड्यूटी देनेके बाद डोनाल्ड खाली होता तो गायब हो जाता अपने डेरेसे।
वह पहुँच जाता पहाड़ीपर, जहाँ वे चीनी घायल पड़े होते, जो मौतकी अन्तिम घड़ियाँ गिननेके लिये वहाँ छोड़ दिये जाते- ‘मर्ज लाइलाज’ समझकर उनकी यथाशक्ति सेवा करता डोनाल्ड ।
X X X
Vबम गिरते। बम बरसते। डोनाल्डको कोई परवाह नहीं। सेवाके आगे उसे अपनी जानकी रत्तीभर परवाह न थी। कोई कुछ कहता तो डोनाल्ड हँसकर एक ही जवाब देता- ‘डरना किस बातका? बहुत होगा, मर हीन जाऊँगा? कोई अच्छा काम करता है तो मौतका उसे क्या डर? है न ?’
X X X
एक दिन बड़े जोरकी बमवर्षा हुई। अस्पतालपर
ही 18 बम गिरे। दूसरी जगहोंका तो हिसाब ही क्या?
कुछ खाइयाँ पट गयीं। ‘खतरा दूर’ होनेका भोंपा बजते ही लोग दौड़े खाइयाँ खोदनेको, सात मिनटसे ज्यादा देर होनेपर दबे लोगोंके मर जानेका खतरा था! लोगोंने खोजा तो डोनाल्डका कहीं पता नहीं चला खाई में|
‘तब कहाँ होगा वह ?’
‘शायद अपने वार्डमें हो वह’- ऐसा मानकर लोग दौड़े उसके वार्डकी तरफ।
देखा कि वार्डके बीचो-बीच डोनाल्ड खड़ा है। चुपचाप, शान्त, अडिग लकड़ीके खम्भेसे पीठ टिकाये।
कमरेकी खिड़कियाँ चूर-चूर हैं। शीशेके टुकड़े इधरउधर बिखरे हैं। कुछ टुकड़े खम्भेमें आकर गड़ गये हैं।
एक इंच भी एक टुकड़ा नीचे आ जाता तो डोनाल्डका काम तमाम था। डोनाल्डके ऊपर पलस्तरकी एक चद्दर गिरी है। उसे उसने अपनी बाहोंपर थाम रखा है। उसका सिर बाहर निकला हुआ है।
X X X
साथियोंने उलाहना दिया तो डोनाल्ड बोला- तुम देखते हो इस वार्डमें ऐसे मरीज हैं, जिनकी जाँघोंका ऑपरेशन हुआ है। जरा हटे नहीं कि फिर उनकी हड्डियाँ ठिकाने पर बैठाना मुश्किल। इसलिये खतरेका भोंपा बजते ही मैं आकर खड़ा हो गया इनके बीच।’ मैंने कहा ‘ठीक है, घबड़ाना मत भाई चिन्ताकी कोई बात नहीं।’
चीनी मरीज डोनाल्डकी अंग्रेजी तो नहीं समझते थे, पर हृदयकी भाषा कौन नहीं समझता ? वे कहते’महान् डॉक्टर है वह अटूट विश्वास भरा है उसमें । उसका विश्वास ही हमारा सम्बल
उन्होंने उसे नाम दे रखा था- ‘कन्फ्यूसियस।’
डॉक्टर हो तो ऐसा
सन् 1938 ई0 की बात है, चीन और जापानमें लड़ाई चल रही थी। चीनकी पीली नदीके मोर्चेपर ‘रेड क्रॉस’ का एक अस्पताल था। एक दिन अस्पतालके प्रधानको एक तार मिला- ‘आज ही पहुँच रहा हूँ, विमानसे। पहुँचते ही मोर्चेपर मेरी ड्यूटी लगा दें डोनाल्ड !’
जैसे ही डोनाल्ड विमानसे उतरा, बोला-‘कहाँ लगायी है मेरी ड्यूटी ?’
6 फुट 4 इंचके हट्टे-कट्टे नौजवानको देखकर
प्रधान तो हैरान!
अजीब आदमी है। विमानसे उतरनेकी देर नहीं और काम माँग रहा है। पहले उसने सोचा था कि शायद होगा कोई बूढ़ा मनहूस डॉक्टर डॉक्टरी न चलती देखकर आया होगा ‘बहते दरियामें हाथ धोने।’ पर जब डोनाल्डको देखा तो लगा कि यह तो अजीब आदमी है।
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डोनाल्ड बच्चोंकी तरह सरल, सीधा। बच्चोंकी सी बातें करता। दिन-पर-दिन यह बात साफ होती गयी कि डॉक्टरीके फनमें, हर बातमें डोनाल्ड उस्ताद है। पैनी आँख, सधा हाथ। ऑपरेशनमें सबसें निपुण। इंग्लैण्डके सर्वोत्तम मेडिकल कॉलेजका स्नातक था वह।
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12 घण्टे पूरी ड्यूटी देनेके बाद डोनाल्ड खाली होता तो गायब हो जाता अपने डेरेसे।
वह पहुँच जाता पहाड़ीपर, जहाँ वे चीनी घायल पड़े होते, जो मौतकी अन्तिम घड़ियाँ गिननेके लिये वहाँ छोड़ दिये जाते- ‘मर्ज लाइलाज’ समझकर उनकी यथाशक्ति सेवा करता डोनाल्ड ।
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Vबम गिरते। बम बरसते। डोनाल्डको कोई परवाह नहीं। सेवाके आगे उसे अपनी जानकी रत्तीभर परवाह न थी। कोई कुछ कहता तो डोनाल्ड हँसकर एक ही जवाब देता- ‘डरना किस बातका? बहुत होगा, मर हीन जाऊँगा? कोई अच्छा काम करता है तो मौतका उसे क्या डर? है न ?’
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एक दिन बड़े जोरकी बमवर्षा हुई। अस्पतालपर
ही 18 बम गिरे। दूसरी जगहोंका तो हिसाब ही क्या?
कुछ खाइयाँ पट गयीं। ‘खतरा दूर’ होनेका भोंपा बजते ही लोग दौड़े खाइयाँ खोदनेको, सात मिनटसे ज्यादा देर होनेपर दबे लोगोंके मर जानेका खतरा था! लोगोंने खोजा तो डोनाल्डका कहीं पता नहीं चला खाई में|
‘तब कहाँ होगा वह ?’
‘शायद अपने वार्डमें हो वह’- ऐसा मानकर लोग दौड़े उसके वार्डकी तरफ।
देखा कि वार्डके बीचो-बीच डोनाल्ड खड़ा है। चुपचाप, शान्त, अडिग लकड़ीके खम्भेसे पीठ टिकाये।
कमरेकी खिड़कियाँ चूर-चूर हैं। शीशेके टुकड़े इधरउधर बिखरे हैं। कुछ टुकड़े खम्भेमें आकर गड़ गये हैं।
एक इंच भी एक टुकड़ा नीचे आ जाता तो डोनाल्डका काम तमाम था। डोनाल्डके ऊपर पलस्तरकी एक चद्दर गिरी है। उसे उसने अपनी बाहोंपर थाम रखा है। उसका सिर बाहर निकला हुआ है।
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साथियोंने उलाहना दिया तो डोनाल्ड बोला- तुम देखते हो इस वार्डमें ऐसे मरीज हैं, जिनकी जाँघोंका ऑपरेशन हुआ है। जरा हटे नहीं कि फिर उनकी हड्डियाँ ठिकाने पर बैठाना मुश्किल। इसलिये खतरेका भोंपा बजते ही मैं आकर खड़ा हो गया इनके बीच।’ मैंने कहा ‘ठीक है, घबड़ाना मत भाई चिन्ताकी कोई बात नहीं।’
चीनी मरीज डोनाल्डकी अंग्रेजी तो नहीं समझते थे, पर हृदयकी भाषा कौन नहीं समझता ? वे कहते’महान् डॉक्टर है वह अटूट विश्वास भरा है उसमें । उसका विश्वास ही हमारा सम्बल
उन्होंने उसे नाम दे रखा था- ‘कन्फ्यूसियस।’