गुरु नानकदेव अपनी यात्रामें घूमते हुए एक ग्राममें रुके थे। उस दिन उनके पास गाँवका एक लुहार मक्केकी दो मोटी रोटियाँ ले आया। उसी गाँवके जमींदार भी उसी दिन अपने यहाँसे उत्तम पकवान बनवाकर गुरु नानकके पास ले गये। गुरु नानकने जमींदारके पकवानकी ओर देखा ही नहीं। उन्होंने लुहारके लाये मक्केके टिक्कर प्रसन्नतापूर्वक खाकर जल पी लिया।
जमींदारको दुःख हुआ अपना लाया भोजन स्वीकार न होनेसे। उन्होंने इसका कारण पूछा। गुरु नानक देवने लुहारकी रोटियोंका एक टुकड़ा छोड़ दिया था। एक हाथमें उन्होंने उस टुकड़ेको लिया और एक हाथमें जमींदारके लाये भोजनका थोड़ा भाग लेकर दोनों |हाथोंके पदार्थोंको दबाकर निचोड़ा । लुहारकी रोटीके टुकड़ेसे दूधकी कुछ बूँदें टपक; परंतु जमींदारके अन्नसे रक्तके बिन्दु गिरे।
‘यह क्या बात है ?’ जमींदारने पूछा।
गुरु नानकदेवने बताया- ‘लुहारने परिश्रम करके कमाया है। उसका अन्न उसके परिश्रमसे ईमानदारीके साथ आया है। इसलिये वह शुद्ध अन्न है। उसमें सात्त्विकता है। उसका भोजन करनेसे चित्तमें निर्मलता बढ़ेगी। तुम्हारा अन्न दूसरोंको सताकर, दूसरोंका उचित अधिकार (हक) मारकर लाया गया है। यह दूसरोंका रक्त चूसकर एकत्र होनेके समान है। इसलिये यह रक्तान्न है, अपवित्र है। इस भोजनसे चित्तमें पापवृत्तियाँ प्रबल होंगी।’
Guru Nanak Dev stayed in a village while roaming in his journey. That day a blacksmith of the village brought two thick chapatis of maize to him. The zamindar of the same village also made the best dish from his own place and took it to Guru Nanak on the same day. Guru Nanak did not even look at the landlord’s dish. They happily ate the maize tikkas brought by the blacksmith and drank water.
The landlord felt sad because the food brought by him was not accepted. He asked the reason for this. Guru Nanak Dev had left a piece of bread for the blacksmith. He took that piece in one hand and took a small portion of the food brought by the landlord in one hand and squeezed the contents of both the hands. A few drops of milk dripped from the blacksmith’s piece of bread; But drops of blood fell from the landlord’s food.
‘What is it?’ The landlord asked.
Guru Nanak Dev told- ‘The blacksmith has earned by working hard. His food has come from his hard work with honesty. That’s why it is pure food. There is sattvikta in that. By eating it, the purity of the mind will increase. Your food has been brought by torturing others, by killing the right of others. It is like collecting by sucking the blood of others. That’s why it is a blood meal, it is unholy. Sinful tendencies will prevail in the mind with this food.’