एक बार सुमेरु पर्वत पर बैठे हुए ब्रह्माजी के पास जाकर देवताओं ने उनसे अविनाशी तत्व बताने का अनुरोध किया। शिवजी की माया से मोहित ब्रह्माजी उस तत्व को न जानते हुए भी इस प्रकार कहने लगे- मैं ही इस संसार को उत्पन्न करने वाला स्वयंभू, अजन्मा, एक मात्र ईश्वर, अनादी भक्ति, ब्रह्म घोर निरंजन आत्मा हूँ।
मैं ही प्रवृति और निवृति का मूलाधार, सर्वलीन पूर्ण ब्रह्म हूँ। ब्रह्मा जी के कहने पर मुनि मंडली में विद्यमान विष्णु जी ने उन्हें समझाते हुए कहा की मेरी आज्ञा से तो तुम सृष्टी के रचयिता बने हो, मेरा अनादर करके तुम अपने प्रभुत्व की बात कैसे कर रहे हो ?
इस प्रकार ब्रह्मा और विष्णु अपना-अपना प्रभुत्व स्थापित करने लगे और अपने पक्ष के समर्थन में शास्त्र वाक्य एक दूसरे को बताने लगे। अंततः वेदों से पूछने का निर्णय हुआ तो स्वरुप धारण करके आये चारों वेदों ने कहा की- जिसके भीतर समस्त काल निहित हैं तथा जिससे सब कुछ समाया हुआ है, जिसको परम तत्व कहा जाता हैं वह तो एक रुद्र ही हैं।
इस पर ब्रह्मा और विष्णु ने कहा- हे वेदो यह तो तुम्हारा अज्ञान है, भला पार्वती से प्रेम करने वाला, नंगा, धूल से नहाये हुये शिव को कैसे परम तत्व कह सकते हैं।
उस समय उन दोनों के मध्य आदि-अंत रहित एक ऐसी विशाल ज्योति प्रकट हुई की उससे ब्रह्मा का पंचवा सिर जलने लगा। इतने में त्रिशूलधारी शिव वहां प्रकट हुए तो अज्ञानतावश ब्रह्मा उन्हें अपना पुत्र समझकर अपनी शरण में आने को कहने लगे।
ब्रह्माजी की संपूर्ण बातें सुनकर शिवजी अत्यंत क्रुद्ध हुए और उन्होंने तत्काल भैरव को प्रकट कर उससे ब्रह्मा पर शासन करने का आदेश दिया।
आज्ञा का पालन करते हुए भैरव ने अपनी बायीं ऊँगली के नाखून से ब्रह्माजी का पंचम सिर काट डाला। भयभीत ब्रह्माजी शतरुद्री का पाठ करते हुए शिवजी के शरण हुए। ब्रह्मा और विष्णु दोनों को सत्य का आभास हो गया और वे दोनों शिवजी की महिमा का गान करने लगे। यह देखकर शिवजी शांत हुए और उन दोनों को अभयदान दिया।
इसके बाद भगवान शिव काल भैरव से कहते हैं कि तुमने ब्रह्मा के पांचवे सिर की हत्या की है इसलिए तुम्हें ब्रह्म हत्या लगी हैं, तुम्हें इस दोष से मुक्ति पानी होगी। ब्रह्मा के पांचवे सिर के कटे उस खोपड़ी को माला की तरह पहन लो और जगतभर मे भ्रमण करो और भिक्षा मांग कर अपना जीवन निर्वाहन करो।
अंत मे जब तुम काशी आओगे तो तुम्हारा पाप समाप्त हो जाएगा और तुम दोष मुक्त हो जयोगे। तब तुम काशी मे ही स्थापित हो जाना। काल भैरव काल से परे हैं, वह शिव के युवा अवतार हैं और जो काम नगर कोतवाल का होता हैं। वही कार्य कालभैरव करते हैं।
।। ॐ नमः शिवाय ।।