‘समस्त जगत् उनके नृत्यसे मोहित होकर नाच रहा है, देव! यदि आप उन्हें न रोकेंगे तो महान् अनर्थ हो सकता है। आप आदिदेव हैं।’ ब्रह्मा एवं अन्य देवताओंने महादेवको वायुद्वारा सुकन्याके गर्भसे उत्पन्न बाल-ब्रह्मचारी महर्षि मङ्कणकके सिद्धिमदोन्मत्त नृत्यकी सूचना दी। भोलानाथ हँस पड़े, मानो उनके लिये यह खेल था।
‘आप इतने उन्मत्त होकर नाच क्यों रहे हैं, महर्षे ? आप तो वेदज्ञ और शास्त्रोंके महान् ज्ञाता हैं, आप परम पवित्र भगवती सरस्वतीमें स्नान करके यज्ञ आदि कृत्यविधिपूर्वक सम्पन्नकर वेद-गान करते रहते हैं, आप सत्यके महान् उपासक हैं, इस नश्वर जगत्की किस वस्तुने आपका मन इस तरह मुग्ध कर लिया है ?’ ब्राह्मणने अमित विनम्रतासे महर्षि मङ्कणकको सचेत किया।
‘रंगमें भंग डालना ठीक नहीं है, ब्राह्मणदेवता! आज सिद्धिने मेरी तपस्या सफल कर दी है। देखते नहीं हैं, अँगुलीमें कुशकी नोक गड़ जानेसे रक्तके स्थानपर शाक- रस निकल रहा है।’ महर्षिके नृत्यका वेग बढ़ गया। ‘पर इतना ही सत्य नहीं है ! वह तो इससे भी आगेहै।’ ब्राह्मणने अपनी अँगुलीके सिरेसे अँगूठेपर आघात किया और रक्तके स्थानपर सफेद भस्म निकलने लगा।
‘मुझे गर्व हो गया था, देवाधिदेव ! मैं आपकी महानता भूल गया था। ऐसी चमत्कारपूर्ण सिद्धि आप ही दिखा सकते हैं। मैंने सिद्धिके असार मदमें अनर्थ कर डाला। आप अपने सत्स्वरूपसे मुझे कृतकृत्य कीजिये, मेरे परमाराध्य!’ महर्षि मङ्कणक स्वस्थ हो गये, उनके सिरसे सिद्धि-पिशाचिनी उतरकर नौ-दो ग्यारह हो गयी। ब्राह्मण वेषधारी भगवान् शङ्कर उनकीसत्यनिष्ठा और निष्कपट पश्चात्तापसे बहुत प्रसन्न हुए । मङ्कणकके रोम-रोममें अद्भुत हर्षोल्लास था । वे परमानन्दमें मग्न थे। सप्तसारस्वत-तीर्थ उनकी उपस्थितिसे दिव्यतर हो उठा।
‘सिद्धिका गर्व पतनकी ओर ले जाता है’ वत्स ! सिद्धिकी परमनिधि – परमेश्वरकी उपासना और भक्ति ही तपस्याका परम फल है, यही सत्य है।’ शङ्करने मङ्कणकके मस्तकपर वरद हस्त रख दिया। महर्षि अपने उपास्यका दर्शन करके आनन्दसे नाच उठे।
-रा0 श्री0 (महाभारत, शल्य0 अ0 38)
‘The whole world is dancing mesmerized by his dance, O God! If you do not stop them, great disaster can happen. You are Adidev.’ Brahma and other deities informed Mahadev about the siddhim-donmatt dance of the child-celibate Maharishi Mankanak born from Sukanya’s womb by Vayu. Bholanath laughed as if it was a game for him.
‘Why are you dancing so madly, Maharshe? You are a great connoisseur of Vedas and scriptures, you bathe in the most holy Goddess Saraswati and perform Yagya etc. ritualistically, you keep singing Vedas, you are a great worshiper of truth, what thing of this mortal world has enchanted your mind like this?’ Brahmin politely alerted Maharishi Mankanak.
‘ It is not right to disturb the color, Brahmin Devta! Today Siddhi has made my penance successful. Don’t you see, vegetable juice is coming out in place of blood due to the tip of the knife getting stuck in the finger.’ The speed of Maharishi’s dance increased. But that’s not all true! He is even further than this. The Brahmin hit the thumb with the tip of his finger and white ash started coming out in place of blood.
‘I was proud, Devadhidev! I had forgotten your greatness. Only you can show such a miraculous achievement. I have caused disaster in the hope of attaining success. You do me a favor in your true form, my supreme!’ Maharishi Mankanak became healthy, Siddhi-Pishachini descended from his head and became nine-two-eleven. Lord Shankar dressed as a Brahmin was greatly pleased by his truthfulness and sincere penance. There was wonderful joy in each and every part of Mankanak. They were engrossed in ecstasy. Saptasaraswat-theertha became more divine by his presence.
‘Pride of Siddhika leads to downfall’ Vats! Siddhiki Paramnidhi – Worship and devotion to God is the ultimate fruit of penance, this is the truth.’ Shankar placed a boon on Mankanak’s head. Maharishi danced with joy after seeing his devotee.
– Ra 0 Shri 0 (Mahabharata, Shalya 0 38)