“शरारती श्रीनाथजी”

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        जगतगुरु वल्लभाचार्य जी हमारे श्रीनाथ जी की सेवा करते थे। उन दोनों में पिता पुत्र का अद्भुत प्रेम था।
        एक बार की बात है जब वल्लभाचार्य जी एक दिन अपने लाला को सुला रहे थे तो उन्होंने लाला के लिए सुन्दर सा बिछोना बिछाया किन्तु लाला ने सोने से मना कर दिया। वल्लभाचार्य जी ने पूछा की लाला क्या हुआ सोता क्यों नहीं तो लाला बोले कि “जय जय, देखो ना ये बिछोना चुभता है नींद नहीं आती हमको इसपर।” तब गोसाई जी दूसरा बिछोना लगाते है अच्छे से किन्तु लाला कन्हैया उसपे भी सोने से मना कर देते हैं। ऐसा करके गोसाई जी ने कई बार अलग-अलग तरीके से बिछोना बिछाया फिर भी कन्हैया नहीं सोये। तब गोसाई जी ने डांट के बोला “क्यों रे लाला कैसे सोयेगा”? तब लाला ने गोसाई जी को हाथ पकड़ के अपने बिस्तर पर लिटाया और उनके पेट पर सो गए और बोले “जय जय, ऐसे सोयेंगे हम”।
         वल्लभाचार्य जी ने लाड़ लड़ा-लड़ा के लाला को इतना बिगाड़ रखा था कि लाला का जब जी करता किसी को भी पीट के आ जाता था। एक दिन की बात है लाला ब्रजवासी लडके का रूप धरके दूसरे बच्चों के साथ खेल रहे थे। तभी एक श्रीनाथ जी का जलघडिया वहाँ से निकल रहा था सब बच्चे बोले की भैया सब आगे से हट जाओ श्रीनाथ जी का जलघडिया आ रहा है। कोई छु ना देना अपरस में है ये। लाला कहा मानने वाले थे भीड़ गए जान बुझ के जलघडिये से। जलघडिये को गुस्सा आ गया की मुर्ख बालक अब दुबारा नहाना पड़ेगा और लाला के गाल पे खीच के चाँटा मार दिया, लाला अपनी गाल पे हाथ फेरते रह गए। और सोचने लगे की बेटा इसका बदला तो ये नन्द का लड़का बड़े अच्छे से लेगा, और चले गए।
         एक दिन क्या हुआ गर्मियों का समय था गोसाई जी ने उसी जलघडिये को बुलाया और कहा कि लाला को गर्मी न लगे इसलिए तुमको श्रीनाथ जी को पंखा झलना है। जलघडिये ने हाँ कर दी और गोसाई जी अपने कमरे में चले गए। जलघडिया सेवा तो ठीक करता था किन्तु ठाकुर जी में प्रेम नहीं था। जैसे ही वो श्रीनाथ जी के पास पंखा झलने बैठा तभी उसको नींद आ गई। और पंखा छुटके ठाकुर जी को लग गया। लाला को गुस्सा तो आया किन्तु सोचा शिशुपाल के 100 अपराध क्षमा किये थे इसका एक तो करना बनता है। ठाकुर जी चुपचाप खड़े हो गए। किन्तु जलघडिये की फिर से आँख लगी और पंखा फिर छुटके ठाकुर जी के मुख पे लगा। अबकी बार लाला को आया गुस्सा और अपने गाल पे लगे चाँटे को याद किया। फिर तो लाला ने भी जलघडिये को ऐसा खीचकर चाँटा मारा की सीधा मंदिर के प्रांगण से बाहर जा कर गिरा। चिल्लाने की आवाज सुनी तो गोसाई जी भागे-भागे आये और देखा तो जलघडिया अपनी गाल पे हाथ लगाए कोने में बैठा है। गोसाई जी ने पूछा तो उसने बताया की मैं तो पंखा झल रहा था तभी अचानक किसी ने थप्पड़ मारा मुझे। गोसाई जी सीधे ठाकुर जी के पास गए और पूछा “क्यों रे लाला, तूने मारा उसको”? तब लाला बोले “जय जय, मारता नहीं तो क्या करता मेरी सेवा करते-करते सोता है और दो बार पंखा मेरे मुँह पे मार दिया। मैंने भी ऐसा मारा है की अब कभी सेवा में नहीं सोएगा।”
         ऐसा नही है की ठाकुर जी केवल जगत गुरु या पीठाधीश्वरों के साथ ही ऐसी प्रेम लीला करते हैं। उनको तो सुन्दर कोमल ह्रदय वाले भक्त ही पसंद हैं। जब राजा राम जी मिथिला गए तो वहाँ की गोपिकाओं ने पुरुषो ने बच्चो ने सुमन वर्षा की थी, और जब कन्हैया मथुरा गए थे कंस को मारने तब भी मथुरा वासियों ने सुमन वर्षा की सुमन का अर्थ केवल पुष्प नहीं होता सुन्दर मन भी होता है उसी से ठाकुर इतने प्रसन्न हुए थे।  इसलिए मेरे वन्दनीय भक्तों  बाहरी आड़म्बरों को त्यागकर केवल सुन्दर हृदय से ठाकुर जी से प्रेम करो।
                      

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