आदर्श दण्ड

buddha india ghost

फ्रेडरिककी सेनामें एक मनुष्य कभी लेफ्टनेंट कर्नलके पदपर रहा था। काम न होनेसे उसे अलग कर दिया गया। वह बार-बार फ्रेडरिकके पास आता और उसी पदके लिये उसपर दबाव डालता। फ्रेडरिकने बार-बार उसे समझाया ‘भैया! अभी कोई जगह खाली नहीं है।’ परंतु उसने एक भी नहीं सुनी। आखिर फ्रेडरिकने हैरान होकर उसे बड़ी कड़ाईके साथ वहाँ आनेके लिये मने कर दिया। कुछ समय बाद किसीने फ्रेडरिकके सम्बन्धमें एक बड़ी कड़ी कविता लिखी। शान्तस्वभाव होनेपर भी फ्रेडरिक इस अपमानको न सह सका। उसने मुनादी करवा दी कि इस कविताके लेखकको पकड़कर जो मेरे सामने हाजिर करेगा उसे पचाससोनेकी मोहरें इनाम दी जायँगी। दूसरे दिन फ्रेडरिकने देखा वही आदमी सामने हाजिर है। फ्रेडरिकने क्रोध और आश्चर्यमें भरकर पूछा, ‘तू फिर यहाँ कैसे फूट निकला ?’ उसने कहा ‘सरकार ! आपके विरुद्ध जो कड़ी कविता लिखी गयी थी, उसके लेखकको पकड़ा देनेवालेको आपने पचास सोनेकी मोहरें देनेकी मुनादी करवायी है न ?’ ‘हाँ हाँ, तो इससे क्या ?’ फ्रेडरिकने शान्तभावसे पूछा।

‘तब तो सरकार! वह इनाम मुझे दिये बिना आपका छुटकारा नहीं।’ उसने कहा । ‘क्यों?’ फ्रेडरिकने संकोचसे पूछा ।’इसलिये सरकार ! कि उस कविताका लिखनेवाला यही आपका सेवक है। आप सरकार ! मुझे भले ही दण्ड दें, परंतु क्या मेरे भूखों मरते हुए स्त्री-बच्चोंको अपनी घोषणाके अनुसार इनाम नहीं देंगे मेरे कृपालु स्वामी!’

फ्रेडरिक एकदम लाल-पीला हो उठा। तुरंत ही एक कागजके टुकड़ेपर कुछ लिखकर उसे देते हुए फ्रेडरिकने कहा-‘ले इस परवानेको लेकर स्पाण्डो किलेके कमाण्डरके पास चला जा । वहाँ दूसरोंके साथ कैद करनेका मैंने तुझको दण्ड दिया है।’

‘जैसी मर्जी सरकारकी ! परंतु उस इनामको न भूलियेगा।’

‘अच्छा सुन! कमाण्डरको परवाना देकर उससे ताकीद कर देना कि भोजन करनेसे पहले परवाना पढ़े नहीं। यह मेरी आज्ञा है।’ गरीब बेचारा क्या करता, फ्रेडरिककी आज्ञाके अनुसार उसने स्पाण्डोके किलेपर जाकर परवाना वहाँके कमाण्डरको दिया और कहदिया कि भोजनके बाद परवाना पढ़नेकी आज्ञा है। दोनों खानेको बैठे। वह बेचारा क्या खाता। उसका तो कलेजा काँप रहा था कि जाने परवानेमें क्या लिखा है! किसी तरह भोजन समाप्त हुआ, तब कमाण्डरने परवाना पढ़ा और पढ़ते ही वह प्रसन्न होकर पत्रवाहकको बधाइयों पर बधाइयाँ देने लगा। उसमें लिखा था ‘इस पत्रवाहक पुरुषको आजसे मैं स्पाण्डोके किलेका कमाण्डर नियुक्त करता हूँ । अतएव इसको सब काम सम्हलाकर और सारे अधिकार सौंपकर तुम पोटर्सडमके किलेपर चले जाओ। तुम्हें वहाँका कमाण्डर बनाया जाता है, इससे तुमको भी विशेष लाभ होगा। उसी बीचमें इस नये कमाण्डरके बाल-बच्चे भी सोनेकी पचास मोहरें लेकर पहुँच रहे हैं।’

पत्रवाहक परवाना सुनकर आनन्दसे उछल पड़ा और पुराने कमाण्डरको भी अपनी इस तबदीलीसे बड़ी खुशी हुई!

फ्रेडरिककी सेनामें एक मनुष्य कभी लेफ्टनेंट कर्नलके पदपर रहा था। काम न होनेसे उसे अलग कर दिया गया। वह बार-बार फ्रेडरिकके पास आता और उसी पदके लिये उसपर दबाव डालता। फ्रेडरिकने बार-बार उसे समझाया ‘भैया! अभी कोई जगह खाली नहीं है।’ परंतु उसने एक भी नहीं सुनी। आखिर फ्रेडरिकने हैरान होकर उसे बड़ी कड़ाईके साथ वहाँ आनेके लिये मने कर दिया। कुछ समय बाद किसीने फ्रेडरिकके सम्बन्धमें एक बड़ी कड़ी कविता लिखी। शान्तस्वभाव होनेपर भी फ्रेडरिक इस अपमानको न सह सका। उसने मुनादी करवा दी कि इस कविताके लेखकको पकड़कर जो मेरे सामने हाजिर करेगा उसे पचाससोनेकी मोहरें इनाम दी जायँगी। दूसरे दिन फ्रेडरिकने देखा वही आदमी सामने हाजिर है। फ्रेडरिकने क्रोध और आश्चर्यमें भरकर पूछा, ‘तू फिर यहाँ कैसे फूट निकला ?’ उसने कहा ‘सरकार ! आपके विरुद्ध जो कड़ी कविता लिखी गयी थी, उसके लेखकको पकड़ा देनेवालेको आपने पचास सोनेकी मोहरें देनेकी मुनादी करवायी है न ?’ ‘हाँ हाँ, तो इससे क्या ?’ फ्रेडरिकने शान्तभावसे पूछा।
‘तब तो सरकार! वह इनाम मुझे दिये बिना आपका छुटकारा नहीं।’ उसने कहा । ‘क्यों?’ फ्रेडरिकने संकोचसे पूछा ।’इसलिये सरकार ! कि उस कविताका लिखनेवाला यही आपका सेवक है। आप सरकार ! मुझे भले ही दण्ड दें, परंतु क्या मेरे भूखों मरते हुए स्त्री-बच्चोंको अपनी घोषणाके अनुसार इनाम नहीं देंगे मेरे कृपालु स्वामी!’
फ्रेडरिक एकदम लाल-पीला हो उठा। तुरंत ही एक कागजके टुकड़ेपर कुछ लिखकर उसे देते हुए फ्रेडरिकने कहा-‘ले इस परवानेको लेकर स्पाण्डो किलेके कमाण्डरके पास चला जा । वहाँ दूसरोंके साथ कैद करनेका मैंने तुझको दण्ड दिया है।’
‘जैसी मर्जी सरकारकी ! परंतु उस इनामको न भूलियेगा।’
‘अच्छा सुन! कमाण्डरको परवाना देकर उससे ताकीद कर देना कि भोजन करनेसे पहले परवाना पढ़े नहीं। यह मेरी आज्ञा है।’ गरीब बेचारा क्या करता, फ्रेडरिककी आज्ञाके अनुसार उसने स्पाण्डोके किलेपर जाकर परवाना वहाँके कमाण्डरको दिया और कहदिया कि भोजनके बाद परवाना पढ़नेकी आज्ञा है। दोनों खानेको बैठे। वह बेचारा क्या खाता। उसका तो कलेजा काँप रहा था कि जाने परवानेमें क्या लिखा है! किसी तरह भोजन समाप्त हुआ, तब कमाण्डरने परवाना पढ़ा और पढ़ते ही वह प्रसन्न होकर पत्रवाहकको बधाइयों पर बधाइयाँ देने लगा। उसमें लिखा था ‘इस पत्रवाहक पुरुषको आजसे मैं स्पाण्डोके किलेका कमाण्डर नियुक्त करता हूँ । अतएव इसको सब काम सम्हलाकर और सारे अधिकार सौंपकर तुम पोटर्सडमके किलेपर चले जाओ। तुम्हें वहाँका कमाण्डर बनाया जाता है, इससे तुमको भी विशेष लाभ होगा। उसी बीचमें इस नये कमाण्डरके बाल-बच्चे भी सोनेकी पचास मोहरें लेकर पहुँच रहे हैं।’
पत्रवाहक परवाना सुनकर आनन्दसे उछल पड़ा और पुराने कमाण्डरको भी अपनी इस तबदीलीसे बड़ी खुशी हुई!

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